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केरलाभरणम् ]
( १४८ )
[ केशव मिश्र
म में उपास्य ब्रह्म एवं निर्गुण ब्रह्म में अन्तर स्थापित किया गया है तथा द्वितीय खण्ड में ब्रह्म के रहस्यमय रूप का वर्णन है । तृतीय और चतुर्थ खण्डों में उमाहैमवती के आख्यान के माध्यम से परब्रह्म की सर्वशक्तिमत्ता एवं देवताओं की अल्पशक्तिमत्ता निरूपित है । इस उपनिषद् की रचना संवादात्मकशैली — गुरु-शिष्य संवाद के रूप मेंहुई है। प्रथम खण्ड में शिष्य द्वारा यह प्रश्न पूछा गया है कि इन्द्रियों का प्रेरक कौन है ? इसके उत्तर में गुरु ने इन्द्रियादि को प्रेरणा देने वाला परब्रह्म परमात्मा को मानते हुए उनकी अनिर्वचनीयता का प्रतिपादन किया है। द्वितीय खण्ड में जीवात्मा को परमात्मा का अंश बताकर सम्पूर्ण इन्द्रियादि की शक्ति को ब्रह्म की ही शक्ति माना गया है तथा तृतीय एवं चतुर्थ खण्डों में अभि प्रभृति वैदिक देवताओं को ब्रह्ममूलक मानकर उनकी महत्ता स्थापित की गई है। इसमें ब्रह्मविद्या के रहस्य को जानने के साधन तपस्या, मन, इन्द्रियों के दमन तथा कर्तव्यपालन बतलाये गये हैं ।
केरलाभरणम् - इस चम्पू काव्य के प्रणेता रामचन्द्र दीक्षित हैं । ये सत्रहवीं शताब्दी के उत्तरभाग में हुए थे। इनके पिता का नाम केशव दीक्षित था जो रत्नखेट श्रीनिवास दीक्षित के परिवार से सम्बद्ध थे । इसमें इन्द्र की सभा में वशिष्ठ एवं विश्वामित्र के इस विवाद का वर्णन है कि कौन-सा देश अधिक रमणीय हैकतमो देशो रम्यः कस्याचारो मनोहरो महताम् ।
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इति वादिनि देवपती संघर्षोऽभूद्वशिष्ठगाधिजयोः ॥ १८
इन्द्र के आदेशानुसार मिलिन्द एवं मकरन्द नामक दो गन्धवं देशों का भ्रमण करने निकलते हैं और केरल की रमणीय प्रकृति पर मुग्ध होकर उसे ही सर्वश्रेष्ठ देश घोषित करते हैं । इसकी भाषा सरस, सरल, अनुप्रासमयी एवं प्रोढ़ है । यह ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है। इसका विवरण तंजोर कैटलाग संख्या ४०३१ में प्राप्त होता है । मंगलाचरण का वर्णन अत्यन्त मधुर एवं सरस है
उल्लोल मदकल्लोलहल्लोहालित गल्लया ।
लीलया मण्डितं चित्तं मम मोदकलोलया ॥ १ ॥
आधार ग्रन्थ - चम्पू काव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन - डॉ० छविनाथ त्रिपाठी ।
केशव - ज्योतिषशास्त्र के आचार्य । ये पश्चिमी समुद्र तटवर्ती नन्दिग्राम निवासी थे । इनका आविर्भावकाल सन् १४५६ ई० है । इनके पिता एवं गुरु का नाम क्रमशः कमलांकर एवं बैद्यनाथ था । इनके द्वारा रचित ग्रन्थों के नाम हैं - 'ग्रहकौतुक', 'वर्ष ग्रह सिद्धि', 'तिथिसिद्धि', 'जातकपद्धति', 'जातक पद्धति विवृत्ति', 'ताजिकपद्धति', 'सिद्धान्त वासनापाठ', 'मुहूर्ततस्व', 'कायस्थादिधपद्धति', 'कुण्डाष्टकलक्षण' तथा 'गणित - दीपिका' । ये ग्रहगणित एवं फलित ज्योतिष दोनों के ही मर्मज्ञ थे ।
सन्दर्भ - भारतीय ज्योतिष - डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री |
केशव मिश्र - काव्यशास्त्र के आचार्य । इन्होंने 'अलङ्कारशेखर' नामक ग्रन्थ की रचना की है। इनका समय १६वीं शताब्दी का अन्तिम चरण है । 'अलंकारशेखर' की रचना कांगड़ा नरेश माणिक्यचन्द्र के आग्रह पर की गई थी। इस ग्रन्थ में आठ रत्न या