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मेषदूत-समस्यालेख]
(१४)
[मेघप्रतिसन्देश कथा
अनुवाद श्री पी० रित्तेर ने अगस्त क्रान्ति के चार वर्ष पूर्व किया था। इसका नेपाली अनुवाद 'मेघदूतछाया' के नाम से प्रकाशित है और अनुवादक हैं श्री चक्रपाणि शर्मा। हिन्दी के अन्य पद्यानुवादकों में राय देवी प्रसाद पूर्ण ( ब्रजी में 'धाराधर-धावन' के नाम से ) श्री लक्ष्मीधर वाजपेयी, संठ कन्हैयालाल पोद्दार एवं महावीर प्रसाद द्विवेदी हैं। श्रीरामदहिन मिश्र का 'मेघदूतविमर्श तथा ललिताप्रसाद सुकूल द्वारा सम्पादित मेघदूत का संस्करण अत्यन्त उपादेय हैं। ____ आधारग्रन्थ-१. मेघदूत-संस्कृत-हिन्दी टीका-चौखम्बा संस्करण । २ मेघदूतहिन्दी टोका सहित-श्रीसंसारचन्द्र । ३. मेघदूत एक अध्ययन-डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल । ४. मेघदूत : एक अनुचिन्तन-श्री रंजनसूरिदेव । ५. मेघदूत-सटीक एवं भूमिका-डॉ. सुरेन्द्रनाथ दीक्षित । ६. कालिदास को सौन्दर्य भावना एवं मेघदूतआचार्य शिवबालक राय । ७. मेघदूत-संस्कृत-हिन्दी टोका-पं शेषराज शर्मा (चौखम्बा) ८. महाकवि-कालिदास-डॉ. रमाशंकर तिवारी। ९. संस्कृत गीतिकाव्य का विकासडॉ. परमानन्द शास्त्री। १०. संस्कृत साहित्य का इतिहास-कीय (हिन्दी अनुवाद)। ... मेघदूत-समस्यालेख-इस सन्देश-काव्य के प्रणेता श्रीमेघ-विजयजी जैन मुनि हैं। इनका समय वि० सं० १७२७ है। इनके गुरु का नाम कृपाविजय जी था जिन्हें अकबर बादशाह ने जगद्गुरु की उपाधि प्रदान की थी। मेघविजय जी ने व्याकरण, ज्योतिष, न्याय, धर्मशास्त्र आदि विषयों पर अनेक ग्रन्थों की रचना की है। इन्होंने सप्तसन्धान, देवनन्दाभ्युदय तथा शान्तिनापचरित नामक काव्यग्रन्थों का भी प्रणयन किया है। 'मेघदूतसमस्यालेख' में कवि ने अपने गुरु तपगणपति श्रीमान विजयप्रभसूरि के पास मेघ द्वारा सन्देश भेजा है। कवि के गुरु नव्यरंगपुरी ( औरंगाबाद ) में चातु. मस्यि का आरम्भ कर रहे हैं और कवि देवपत्तन (गुजरात) में हैं। वह गुरु की कुशलवार्ता के लिए मेघ द्वारा सन्देश भेजता है और देवपत्तन से औरंगाबाद तक के मार्ग का रमणीय वर्णन उपस्थित करता है । सन्देश में गुरुप्रताप, गुरु के वियोग की व्याकुलता एवं अपनी असहायावस्था का वर्णन है। अन्त में कवि ने इच्छा प्रकट की है कि वह कब गुरुदेव का साक्षात्कार कर उनकी वन्दना करेगा । इस काव्य की रचना 'मेघदूत' के श्लोक की अन्तिम पंक्ति की समस्यापूर्ति के रूप में हुई है। इसमें कुल १३१ श्लोक हैं और अन्तिम श्लोक अनुष्टुप् छन्द का है । कच्छदेश का वर्णन देखिएजम्बूद्वीपे भरतवसुधामण्डनं कच्छदेशो यत्राम्भोधिमुंवमनुकलं पूजयत्येव रत्नैः। पृच्छन् पूता जननललनैः सूरिणा येरमूनि कच्चिद्भतुः स्मरसि रसिके त्वं हि तस्य प्रियेति ॥१५॥
आधारग्रन्थ-संस्कृत के सन्देश-काव्य-डॉ० रामकुमार आचार्य ।
मेघप्रतिसन्देश कथा-इस सन्देश-काव्य के रचयिता मन्दिकल रामशास्त्री हैं। ये मैसूर राज्य के अन्तर्गत मन्दिकल संज्ञक नगरी में '१८४९ ई. में उत्पन्न हुए थे। इनके पिता का नाम वेंकट सुब्बाशास्त्री था जो रथीतरगोत्रोत्पन्न ब्राह्मण थे। कवि की माता का नाम अक्काम्बा था। ये धर्मशास्त्र, कर्मकाण्ड, न्याय एवं साहित्यशास्त्र के प्रकाण पण्डित थे तथा ये बहुत दिनों तक शारदा-विलास-संस्कृत पाठशाला, मैसूर में अध्यक्ष पद पर विराजमान थे। इन्होंने कई ग्रन्थों की रचना की है। वे हैं-आर्यधर्म