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भवभूति]
[भवभूति
भवभूति-ये संस्कृत नाट्य साहित्य में युग-प्रवर्तन करने वाले प्रतिभाशाली कलाकार हैं जो कई दृष्टियों से महाकवि कालिदास को भी पीछे छोड़ देते हैं। नाटके भवभूतिर्वा वयं वा वयमेव वा। उत्तरेरामचरिते भवभूतिविशिष्यते ॥ ये अपने युग के सशक्त एवं विशिष्ट नाटककार थे। किन्तु उस युग के बालोचक इनकी प्रतिभा का बास्तविक मूल्यांकन उपस्थित करने में असमर्थ रहे, फलतः कवि के मन में अन्तःक्षोभ की अमि धधकती दिखाई पड़ती है। वे केवल प्रतिभाशाली कवि ही नहीं थे अपितु सांस्य, योग, उपनिषद् और मीमांसा प्रभृति विद्याओं में भी निष्णात थे। इनके आलोचकों ने इनके सम्बन्ध में कटूक्तियों का प्रयोग किया था जिससे मर्माहत होकर कवि ने उन्हें चुनौती दी थी कि निश्चय ही एक युग ऐसा बायेगा अब मेरे समानधर्मा कवि उत्पन्न होकर मेरी कला का बादर करेंगे क्योंकि काल निरवधि या अन्तहीन है और पृथ्वी भी विपुल है-ये नाम केचिदिह नः प्रथयन्त्यवहां जानन्ति ते किमपि तान् प्रतिनैष बलः। उत्पस्यते मम तु कोऽपि समानधर्मा कालो ह्ययं निरवधिविपुला च पृथ्वी ॥६॥ गुणैः सतां न मम को गुणः प्रख्यापितो भवेत् । यर्थाथनामा भगवान् यस्य ज्ञाननिधिगुरुः ॥७॥ यद् वेदाध्ययन तथोपनिषदां सांख्यस्य योगस्य च शानं तत्कथनेन किं न हि सतः कश्चिद गुणो नाटके। यत् प्रौढित्वमुदारता च वचसां यच्चार्थतो गौरवं तच्चेदस्ति ततस्तदेव गमकं पाण्डित्यवैदग्ध्ययोः ।।८ मालतीमाधव अंक-एक । . भवभूति मे अपना पर्याप्त परिचय अपने माटकों की प्रस्तावना में दिया है, फलतः इनका जीवनवृत्त अन्य साहित्यकारों की भांति अन्धकाराछन नहीं है । इनका जन्म कश्यपवंशीय उदुम्बर नामक ब्राह्मण परिवार के घर में हुआ था। ये विदर्भ के अन्तर्गत पपपुर के निवासी थे। इनका कुल 'कृष्णयजुर्वेद' की तेत्तिरीय शाखा का अनुयायी था। इनके पितामह का नाम भट्ट गोपाल था और वे स्वयं महाकवि भी थे। इनके पिता का नाम नीलकण्ड एवं माता का नाम जतुकर्णी था। इन्होंने अपना सर्वाधिक विस्तृत विवरण 'महावीरचरित' की प्रस्तावना में प्रस्तुत किया है-अस्ति दक्षिणापये विदर्भेषु पापपुरनामनगरम् । तत्र केचित् तैत्तिरीयिणः काश्यपाश्चरणगुरपः पंक्तिपावनाः पन्चाग्नयोधूतव्रताः सोमपीथिन उदुम्बरनामातो ब्रह्मवादिनः प्रतिवसन्ति । तदामुष्यायणस्य तत्रभवतो वाजपेयाजिनो महाकवेः पन्चमः सुगृहीतनाम्नो भट्टगोपालस्य पौत्रः पवित्र कोनीलकण्ठस्य आत्मसम्भवः श्रीकष्ठपदलाच्छनः पद वाक्य प्रमाणमो भवतिर्नाम जातूकर्णीपुत्रः कविमित्रधेयमस्माकमित्यत्रभवन्तो विदांकुर्वन्तु ।।
कहा जाता है कि इनका वास्तविक नाम श्रीकण्ठ था और भवभूति उपनाम था। स्वयं कवि ने भी अपने श्रीकण्ठ नाम का संकेत किया है। इसी प्रकार का परिचय किचित् परिवर्तन के साथ 'मालतीमाधव' नामक नाटक में भी प्राप्त होता है। इन्होंने अपने गुरु का नाम ज्ञाननिधि दिया है। कहा जाता है कि देवी पार्वती की प्रार्थना में बनाये गए एक श्लोक पर चमत्कृत होकर तत्कालीन पण्डितमण्डली ने इन्हें भवभूति की उपाधि प्रदान की थी-गिरजायाः स्वनी वन्दे भवभूतिसिताननौ । तपस्वीकां गतोऽवस्थामिति स्मेराननाविवि ॥ इनके टीकाकार वीरराघव ने इस तथ्य का उसाटन किया हैश्रीकण्ठपदलान्छनः पितृकृतनामेदम् ।...."भवभूति म 'साम्बा पुनातु भवभूतिपवित्र