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पौष्करसादि ]
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काव्य का उत्कृष्ट रूप व्यक्त हुआ है तथा कवि ने अनेक स्थलों पर श्लेषालंकार के द्वारा चमत्कार भर दिया है। ज्वलन्ति चेत् दुर्जन सूर्यकान्ताः किं कुर्वते सत्कवि-सूर्यभासाम् । महीभृतां दो: "शिखरे तु रूढां पार्श्वस्थितां कीर्तिलतां दहन्ति ॥
पौष्करसादि - संस्कृत व्याकरण के प्राचीन आचार्य, पं० युधिष्ठिर मीमांसक के के अनुसार इनका समय ३१०० वर्ष वि० पू० है । इनका उल्लेख 'महाभाष्य' के एक वार्त्तिक में हुआ है । चयो द्वितीया शरिपोष्करसादेः | ८|४|४८ इनके पिता का नाम 'पुष्करत्' था तथा निवास स्थान अजमेर के निकट 'पुष्कर' नामक स्थान था । 'तैत्तिरीय प्रातिशाख्य' (५।४० ) के माहिषेयभाष्य में कहा गया है कि पोष्करसादि ने 'कृष्ण यजुर्वेद' की एक शाखा का प्रवचन किया था। इनके मत 'हिरण्यकेशीय गृह्यसूत्र' ( १६८ ) एवं 'अग्निवेश्यगृह्यसूत्र' ( १।१ पृ० ९) में भी उल्लिखित हैं तथा 'आपस्तम्ब धर्मसूत्र' में भी ( १।१९।७, ११२८ । १ ) पुष्करसादि आचार्य का नाम आया है । आधारग्रन्थ - संस्कृत व्याकरणशास्त्र का इतिहास भाग १ - पं० युधिष्ठिर
-मीमांसक ।
[ प्रजापतिस्मृति
प्रकरण -- रूपक का एक प्रकार । इसके तत्त्व नाटक से मिलते हैं । नाटक से इसमें अन्तर इस बात में होता है कि इसका नायक धीर प्रशान्त, ब्राह्मण, मन्त्री अथवा वणिक होता है । इसमें दस अंक होते हैं । मृच्छकटिक संस्कृत का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण 'प्रकरण' है । दे० मृच्छकटिक । भवभूतिकृत 'मालतीमाधव' भी संस्कृत का उत्तम प्रकरण है । (दे० मालतीमाधव ) । अन्य प्रकरणों का परिचय दिया जा रहा है
मल्लिका मारुत - इसका प्रकाशन जीवानन्द विद्यासागर द्वारा हो चुका है । इसके प्रणेता उद्दण्ड कवि हैं । इनका समय १७ वीं शताब्दी का मध्य है। ये कालिकट के राजा के दरबार में रहते थे। यह प्रकरण दस अंकों में है और इसका कथानक 'मालतीमाधव' से मिलता-जुलता है ।
कौमुदी मित्रानन्द - इसका प्रकाशन १९१७ ई० में भावनगर से हो चुका है । इसके रचयिता हेमचन्द्र के शिष्य रामचन्द्र हैं। इसका रचनाकाल ११७३-७६ ई० के निकट है । इस प्रकरण में अभिनय के तत्त्वों का अभाव पाया जाता है । प्रबुद्ध रोहिणेय - इस प्रकरण के रचयिता रामभद्रमुनि हैं ( समय १३ वीं -शताब्दी ) । इसमें जैनधर्म के एक प्रसिद्ध आख्यान का वर्णन है ।
मुद्रित कुमुदचन्द्र - इस प्रकरण का प्रकाशन काशी से हो चुका है। इसके रचयिता यशचन्द्र हैं जो पद्मचन्द्र के पुत्र थे । इसमें ११२४ ई० में सम्पन्न एक शास्त्रार्थ का वर्णन है जो श्वेताम्बर मुनि देवसूरि तथा दिगम्बर मुनि कुमुदचन्द्र के बीच हुआ था । शास्त्रार्थं में कुमुदचन्द्र का मुख-मुद्रण हो गया था अतः इसी के आधार पर प्रकरण का नामकरण किया गया ।
आधारग्रन्थ- संस्कृत साहित्य का इतिहास - आ० बलदेव उपाध्याय । प्रजापतिस्मृति - इस स्मृति के रचयिता प्रजापति कहे गए हैं। आनन्दाश्रम संग्रह में 'प्रजापतिस्मृति' के श्राद्ध-विषयक १९८ श्लोक प्राप्त होते हैं । इनमें अधिकांश -श्लोक अनुष्टुप हैं किन्तु यत्रतत्र इन्द्रवज्जा, उपजाति, वसन्ततिलका एवं सग्धरा छन्द