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मृसिंह पम्पू या प्रह्लाद चम्पू]
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[पञ्चतन्त्र
रस वीर है किन्तु अन्त में रमा को उपस्थित करा कर कवि शृंगार की सृष्टि कर
सौन्दर्येण भृशं दृशोनरहरेः साफल्यमातन्वती सभ्रूभङ्गमपांगवीक्षणवशादाकर्षयन्ती मनः। स्फूर्जत्कंकणकिंकिणीगणक्षणत्कारैः कृतार्थे सुधी.
कुर्वन्ती शनकैर्जगाम जगतामाश्चर्यदात्री रमा १३ इसका प्रकाशन कृष्ण ब्रदर्स जालन्धर से हुआ है सम्पादक हैं डॉ० सूर्यकान्त शास्त्री।
आधारग्रन्थ-चम्पू-काव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ० छविनाथ त्रिपाठी।
नृसिंह चम्पू या प्रहाद चम्पू- इस चम्पू-काव्य के प्रणेता केशव भट्ट हैं। गौलाक्षी परिवार के केशव भट्ट इनके पितामह थे और पिता का नाम अनन्त था। इनका जन्म गोदावरी जिले के पुण्यस्तंब संज्ञक नगर में हुआ था। 'नृसिंह चम्पू का रचना-काल १६८४ ई० है । इसमें छह स्तबकों में नृसिंहावतार की कथा का वर्णन है । यह साधारण कोटि की रचना है और इसमें भमवश प्रह्लाद के पिता को उत्तमपाद कहा गया है । मंगलाचरण इस प्रकार है
कनकरुचिदुकूलः कुमलोलासिगण्ड: शमितभुवनभारः कोपि लीलावतारः । त्रिभुवनसुखकारी शैलधारी मुकुन्दः परिकलितरांगो मंगलं नस्तनोतु ॥ १।१ इसका प्रकाशन कृष्णाजी गणपत प्रेस, बम्बई से १९०९ ई० में हो चुका है। संपा. दक हैं हरिहर प्रसाद भागवत ।
आधारग्रन्थ-चम्पू-काव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ. छविनाथ त्रिपाठी।
पञ्चतन्त्र-संस्कृत पशु-कथा का महान ग्रन्थ । इसके लेखक विष्णुशर्मा हैं। यह अन्य विश्व-पशु आख्यायिका की परम्परा में भारत की एक महान् देन है। इसमें सरल भाषा में अनेक पशु-कथाएं वर्णित हैं जिनमें जीवन की विविध समस्याओं का समाधान किया गया है। ये कथाएँ मूलतः गव में हैं किन्तु बीच-बीच में प्रचुर मात्रा में पद्यों का भी समावेश कर विषय को अधिक स्पष्टता प्रदान की गयी है। 'पंचतन्त्र' की कहानियां नितान्त प्राचीन हैं। इसके विभिन्न शताब्दियों में विभिन्न प्रान्तों में विभिन्न संस्करण हुए हैं। इसका सर्वाधिक प्राचीन संस्करण 'तन्त्राख्यायिका' के नाम से विख्यात है तथा इसका मूल स्थान काश्मीर है। प्रसिद्ध जर्मन विद्वान् डॉ. हर्टेल ने अत्यन्त श्रम के साथ इसके प्रामाणिक संस्करण को खोज निकाला था। इनके अनुसार 'तन्त्राख्यायिका' या 'तन्त्राख्यान' ही पंचतन्त्र का मूल रूप है। इसमें कथा का रूप भी संक्षिप्त है तथा नीतिमय पद्यों के रूप में समावेशित पद्यात्मक उद्धरण भी कम हैं। सम्प्रति 'पंचतन्त्र' के चार भिन्न-भिन्न संस्करण उपलब्ध होते हैं
क-मूलग्रन्थ का पहलवी अनुवाद, जो प्राप्त नहीं होता पर इसका रूप सीरियन एवं अरबी अनुवादों के रूप में सुरक्षित है।