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रघुवंश महाकाव्य ]
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[ रघुवंश महाकाव्य
ऊपर 'दीधिति' नाम्नी विववरणात्मक टीका लिखी है। यह ग्रन्थ मूल ग्रन्थ के समान ही पाण्डित्यपूर्ण एवं रचयिता की मौलिक दृष्टि का परिचायक है।
आधारग्रन्थ-भारतीय दर्शन-आ० बलदेव उपाध्याय ।
रघुवंश महाकाव्य--यह महाकवि कालिदास विरचित महाकाव्य है। इसमें १९ सर्गों में सूर्यवंशी राजाओं का चरित्रं वर्णित है। इसकी सर्गानुसार कथा इस प्रकार है-प्रथम-इसमें विनय-प्रदर्शन करने के पश्चात् कवि ने रघुवंशी राजाओं की विशिष्टता का सामान्य वर्णन किया है। प्रथमतः राजा दीलीप का चरित्र वर्णित है । पुत्रहीन होने के कारण, राजा चिन्तित होकर अपनी पत्नी सुदक्षिणा के साथ कुलगुरु वशिष्ठ के आश्रम में पहुंचते हैं तथा आश्रम में स्थित नन्दिनी गाय की सेवा में संलम हो जाते हैं। द्वितीय सर्ग में राजा दिलीप द्वारा नन्दिनी की सेवा एवं २१ दिनों के पश्चात् उनकी निष्ठा की परीक्षा का वर्णन है। नन्दिनी एक काल्पनिक सिंह के चंगुल में फंस जाती है और राजा गाय के बदले अपने को समर्पित कर देते हैं। इस पर नन्दिनी प्रसन्न होकर उन्हें पुत्र देने का आश्वासन देती है। पत्नी सहित राजा ऋषि की आज्ञा से नन्दिनी का दूध पीकर उत्फुछ चित्त राजधानी लौट आते हैं। तृतीय सर्ग में रानी सुदक्षिणा का गर्भाधान, रघु का जन्म एवं यौवराज्य तथा दिलीप द्वारा अश्वमेध करने का वर्णन है। सर्ग के अन्त में सुदक्षिणा सहित राजा दिलीप के वन जाने का वर्णन है। चतुर्थ सर्ग में रघु का दिग्विजय एवं पंचम में उनकी असीम दानशीलता का वर्णन है। अत्यधिक दान करने के कारण उनका कोष रिक्त हो जाता है। उसी समय कौत्स नामक एक ब्रह्मचारी आकर उनसे १४ करोड़ स्वर्णमुद्रा.की मांग करता है। राजा धनेश कुबेर पर आक्रमण कर उनसे स्वर्णमुद्रा ले आते हैं और कोत्स को समर्पित कर देते हैं, जिसे लेकर वह उन्हें पुत्र-प्राप्ति का वरदान देकर चला जाता है। ६ ठे सर्ग में रघु के पुत्र अज का इन्दुमती के स्वयंवर में जाने एवं सातवें सर्ग में अज-इन्दुमती विवाह एवं अज की ईष्यालु राजाओं पर विजयप्राप्ति का वर्णन है । आठवें सगं में अज की प्रजापालिता, रघु की मृत्यु, दशरथ का जन्म, नारद की पुष्पमाला गिरने से इन्दुमती की मृत्यु एवं बशिष्ठ का शान्ति-उपदेश तथा अज की मृत्यु का वर्णन है। नवम सर्ग में राजा दशरथ के शासन की प्रशंसा, उनका विवाह, विहार, मृगयावर्णन, वसन्तवर्णन तथा धोखे से मुनिपुत्र श्रवण का वध एवं मुनि के शाप का वर्णन है। दसवें सर्ग में राजा दशरथ का पुत्रेष्टि ( यज्ञ) करना तथा रावण के भय से देवताओं का विष्णु के पास जाकर पृथ्वी का भार उतारने के लिए प्रार्थना करने का वर्णन है। ग्यारहवें एवं बारहवें सर्ग में विश्वामित्र एवं ताड़का वध-प्रसंग से लेकर शूर्पणखा-वृत्तान्त एवं रावणवध तक की घटनाएं वर्णित हैं, और तेरहवें सर्ग में विजयी राम का पुष्पक विमान से अयोध्या लौटना एवं भरत-मिलन की घटना का कथन है। चौदहवें सर्ग में राम-राज्याभिषेक एवं सीता-निर्वासन तथा पंद्रहवें में लवणासुर की कथा, शत्रुघ्न द्वारा उसका वध, लव-कुश का जन्म, राम का अश्वमेष करना तथा सुवर्ण सीता की स्थापना, वाल्मीकि द्वारा राम को सीता को ग्रहण करने का आदेश, सीता का पातालप्रवेश एवं रामादि का स्वर्गारोहण वर्णित है।