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न्याय-प्रमाण-मीमांसा ]
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[न्याय-प्रमाण-मीमांसा
साध्य होने के कारण बाह्य प्रत्यक्ष पाँच प्रकार का, होता है-चाक्षुष, श्रावण, स्पार्शन, रासन तथा घ्राणज। मानस प्रत्यक्ष एक ही प्रकार का होता है-अतः लौकिक प्रत्यक्ष के कुल ६ प्रकार हुए। अलौकिक प्रत्यक्ष तीन प्रकार का होता है-सामान्य लक्षण, ज्ञान लक्षण तथा योगज । अन्य प्रकार से भी प्रत्यक्ष के तीन भेद किये गए हैं-सविकल्पक, निविकल्पक एवं प्रत्यभिज्ञा। जब किसी वस्तु के स्वरूप की प्रतीति के साथ ही साथ उसके नाम और जाति का भी भान हो सके तो सबिकल्पक प्रत्यक्ष होगा । नाम, जाति आदि की कल्पना से रहित प्रत्यक्षज्ञान निर्विकल्पक होता है।
निर्विकल्पक ज्ञान का उदाहरण बालक एवं गूंगे का ज्ञान है। किसी को देखते ही साक्षात् ज्ञान का होना प्रत्यभिज्ञा है। 'पहचान' को ही प्रत्यभिज्ञा कहते हैं। लौकिक प्रत्यक्ष के लिए इन्द्रिय तथा अर्थ का सन्निकर्ष छह प्रकार का होता है-संयोग, संयुक्तसमवाय, संयुक्त समवेतसमवाय, समवाय, समवेत समवाय तथा विशेष्यविशेषणभाव । "चक्षु से घट के प्रत्यक्ष होने पर संयोग, घट के रूप ( कृष्ण, पीत, रक्त आदि वर्ण) के प्रत्यक्ष में संयुक्तसमवाय, घटरूपत्व के प्रत्यक्ष में संयुक्त-समवेत-समवाय सन्निकर्ष होते हैं। श्रोत आकाशरूप ही है; अतः शब्द के प्रत्यक्ष होने में समवाय-सन्निकर्ष होगा, क्योंकि गुण-गुणी का वास्तव में सम्बन्ध समवाय होता है । शब्दत्व का प्रत्यक्ष समवेतसमवाय से तथा अभाव का प्रत्यक्ष विशेषण-विशेष्यभाव सन्निकर्ष से होता है।" भारतीयदर्शन-पं० बलदेव उपाध्याय पृ० २४४ ।
ख. अनुमान-अनुमान का अर्थ है प्रत्यक्ष प्रमाण से ज्ञात लिङ्ग द्वारा अर्थ के अनु अर्थात् पीछे से उत्पन्न होने वाला ज्ञान-'मितेन लिङ्गेन अर्थस्य अनुपश्चान्मानमनुमानम्' न्यायदर्शन वात्स्यायन भाष्य, १,१,३ । 'अनु' का अर्थ है पश्चात् एवं 'मान' का अर्थ है ज्ञान । अनुमान उस ज्ञान को कहा जायगा जो पूर्वज्ञान के बाद आये। इसमें किसी लिंग या हेतु के द्वारा किसी अन्य पदार्थ का ज्ञान होता है। अर्थात् अत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की सिद्धि ही अनुमान है। अनुमान के ( न्यायशास्त्र में ) तीन प्रकार बतलाये गए हैं-पूर्ववत्, शेषवत् एवं सामान्यतोदृष्ट । कारण से कार्य का अनुमान करना या ज्ञान प्राप्त करना पूर्ववत् है। शेषवत् उसे कहते हैं जहां कार्य से कारण का अनुमान किया जाय । जैसे, आकाश में काले बादलों को देखकर वर्षा होने का अनुमान पूर्ववत् है तथा नदी की बाढ़ को देख कर वर्षा का अनुमान करना शेषवत् है । सामान्यतोदृष्ट का अर्थ है सामान्य मात्र का दर्शन । इसमें वस्तु की विशेष सत्ता का अनुभव नहीं होता बल्कि उसके सामान्य रूप का ही ज्ञान होता है। इसमें सामान्य धारणा ( व्यापक धारणा) के द्वारा चल कर उसे वाद का आधार बनाया जाता है। अनुमान के अन्य दो भेद हैं-स्वार्थानुमान एवं परार्थानुमान । जब अपने ज्ञान के लिए या अपने समझने के लिए अनुमान किया जाय तब स्वानुमान और दूसरे को समझाने के लिए अनुमान का प्रयोग करने पर परार्थानुमान होता है। इसका प्रयोजन दूसरा व्यक्ति होता है।
परार्थानुमान पंच अवयवों द्वारा व्यक्त होता है। इसे पंचावयव वाक्य या न्याय