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ज्योतिष पर इनके ग्रंथ उपलब्ध नहीं होते, किन्तु 'मुहूर्त्तचिन्तामणि' की 'पीयूषधारा' टीका में इनके फलितज्योतिषविषयक श्लोक प्राप्त होते हैं।
आधारग्रन्थ-१-भारतीय ज्योतिष-डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री। २-भारतीय ज्योतिष का इतिहास-डॉ० गोरख प्रसाद ।
भास-संस्कृत के प्रसिद्ध नाटककार । इन्होंने तेरह नाटकों की रचना की है जो सभी प्रकाशित हो चुके है। [भास के सभी नाटकों का हिन्ही अनुवाद एवं संस्कृत टीका के साथ प्रकाशन 'भासनाटकचक्रम्' के नाम से 'चौखम्बा संस्कृत सीरीज' से हो चुका है] । विभिन्न ग्रन्थों में भास के सम्बन्ध में अनेक प्रकार के प्रशंसा-वाक्य प्राप्त होते हैं १-सूत्राधारकृतारम्भैर्नाटकैबहुभूमिकः । सपताकैर्यशो लेभे भासो देवकुलैरिव ॥ हर्षचरित १।१५ । २-भासनाटकचक्रेऽपि च्छेकैः क्षिप्ते परीक्षितुम् । स्वप्नवासवदत्तस्य दाहकोऽभून पावकः । राजशेखर । ३-सुविभक्तमुखाद्यङ्गैव्य॑क्त लक्षण-वृत्तिभिः । परतो. ऽपि स्थितो भासः शरीरैरिव नाटकैः ।। दण्डी-अवन्तिसुन्दरीकथा । ४-भासम्मि जलणमित्ते कन्तीदेवे अजस्स रहुआरे । सोबन्धवे अ बन्धम्मि हारियन्दे अ आणन्दो ॥ [ भासे ज्वलनमित्रे कुन्तीदेवे च यस्य रघुकारे। सौबन्धवे च बन्धे हारिचन्द्रे च आनन्दः ॥] गउडवहो, गाथा ८०० । संस्कृत साहित्य के अनेक प्रसिद्ध साहित्यकारों ने भी भास का महत्त्व स्वीकार किया है। महाकवि कालिदास ने 'मालविकाग्निमित्र' नामक नाटक की प्रस्तावना में भास की प्रशंसा की है (पृ० २)। प्रथितयशसा भाससौमिल्लिककविपुत्रादीनां प्रबन्धानतिक्रम्य कथं वर्तमानस्य कवेः कालिदासस्य कृती बहुमानः । महाकवि के इस कथन से ज्ञात होता है कि उनके समय तक भास के नाटक अधिक लोकप्रिय हो चुके थे। कालिदास के परवर्ती कवियों एवं आचार्यों ने भी भास को आदर की दृष्टि से
दुर्भाग्यवश भास के जीवन के सम्बन्ध में अभी तक कुछ भी ज्ञात नहीं हो सका है। इनके नाटक बहुत दिनों तक अज्ञानान्धकार में पड़े हुए थे और उनका स्वरूप लोगों को अज्ञात था। बीसवीं शताब्दी के प्रथम चरण के पूर्व तो भास के सम्बन्ध में कतिपय उक्तियाँ ही प्रचलित थीं-भासो हासः कविकुलगुरुः कालिदासो विलासः । प्रसन्नराधवकार जयदेव । वाक्पतिराज ने अपने महाकाव्य में भास को 'ज्वलनमित्र' कहा है। कतिपय विद्वान इस विशेषण की संगति वासवदत्ता की मिथ्या दाह की क्रिया से जोड़ते हैं। जयदेव इन्हें कविता-कामिनी के हास के रूप में सम्बोधित करते हैं। इस विशेषण के द्वारा भास के हास्य की कुशलता व्यंजित होती है। 'नाट्यदर्पण' ( १२ वीं शती रामचन्द्रगुणचन्द्र रचित ) एवं (शारदातनयकृत ) 'भावप्रकाशन' नामक नाट्शास्त्रीय अन्यों में भी भास का उल्लेख प्राप्त होता है तथा अभिनवभारती एवं 'शृङ्गारप्रकाश' में भी भास रचित सुप्रसिद्ध नाटक 'स्वप्नवासवदत्ता' का निर्देश है। यथा भासकृते स्वप्नवासवदत्ते शेफालिकाशिलातलमवलोक्य वत्सराज-नाट्यदर्पण । क्वचित्क्रीडा । तथावासवदत्तायाम्-अभिनवभारती । वासवदत्ते पद्मावतीमस्वस्था द्रष्टुं राजा समुद्रगृहकं गतः । शृङ्गारप्रकाश । भास के नाटकों का सर्वप्रथम उदार म० म०टी० गणपति