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वाग्भट प्रथम |
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[ वाग्भट द्वितीय
प्रतिभां मया ।' ( संग्रह, उत्तर अध्याय ५०) वाग्भट स्वयं भी बौद्धधर्मावलम्बी थे । वाग्भट के सम्बन्ध में कहा जाता है कि इन्होंने 'अष्टांगसंग्रह' एवं 'अष्टांगहृदय' नामक ग्रन्थों की रचना की है । पर इनकी एकमात्र रचना 'अष्टांगसंग्रह' ही है जो गद्यपद्यमय है । 'अष्टांगहृदय' स्वतन्त्र रचना न होकर 'अष्टांगहृदय' का पद्यमय संक्षिप्त रूप है । 'अष्टांगसंग्रह' का निर्माण 'चरक' एवं 'सुश्रुत' के आधार पर किया गया है और इसमें आयुर्वेद के प्रसिद्ध आठ अङ्गों का विवेचन है । आयुर्वेद के प्राचीन ग्रन्थों में सर्वाधिक टीकाएँ 'अष्टांगसंग्रह' पर ही प्राप्त होती हैं। 'अष्टांगहृदय' के ऊपर चरक एवं सुश्रुत के टीकाकार जैज्जर ने भी टीका लिखी है । इस पर कुल ३४ टीकाओं के विवरण प्राप्त होते हैं जिनमें आशाधर की उद्योत टोका, चन्द्रचन्दन की पदार्थचन्द्रिका, दामोदर की संकेतमंजरी, अरुणदत्त की सर्वांगसुन्दरी टीका अधिक महत्वपूर्ण हैं । 'अष्टांगहृदय' में १२० अध्याय हैं और इसके छह विभाग किये गए हैं— सूत्रस्थान, शारीरस्थान, निदानस्थान, चिकित्सास्थान, कल्पस्थान तथा उत्तरतन्त्र । दोनों ही ग्रन्थों के हिन्दी अनुवाद हो चुके हैं । अष्टाङ्गसंग्रह - श्री गोवर्द्धन शर्मा छांगणीकृत अर्थप्रकाशिका हिन्दी टीका । अष्टाङ्गहृदय - हिन्दी टीकाकार श्री अत्रिदेव विद्यालङ्कार | प्रकाशनस्थान - चौखम्बा विद्याभवन ।
आधारग्रन्थ - १. आयुर्वेद का बृहत् इतिहास - श्री अत्रिदेव विद्यालंकार । १. वाग्भट विवेचन - पं० प्रियव्रत शर्मा ।
वाग्भट प्रथम - काव्यशास्त्र के आचार्य । इन्होंने 'वाग्भटालंकार' नामक ग्रन्थ का प्रणयन किया है । इनका समय बारहवीं शदाब्दी का पूर्वभाग है । वाग्भट का प्राकृत नाम बाहड़ था और ये सोम के पुत्र थे । इनका सम्बन्ध जयसिंह ( १०९३११४३ ई० ) से था । वाग्भट ने अपने ग्रन्थ में संस्कृत तथा प्राकृत दोनों भाषा के उदाहरण दिये हैं । 'वाग्भटालंकार' की रचना पांच परिच्छेदों में हुई है । इसमें २६० पच हैं जिनमें काव्यशास्त्र के सिद्धान्तों का संक्षिप्त विवेचन है। प्रथम परिच्छेद में काव्य के स्वरूप तथा हेतु का वर्णन है। द्वितीय में काव्य के विविध भेद पद, वाक्य एवं अर्थदोष तथा तृतीय परिच्छेद में दस गुणों का विवेचन है । चतुर्थ में चार शब्दालंकार एवं ३५ अर्थालंकार तथा गोड़ी एवं वैदर्भी रीति का वर्णन है । पंचम परिच्छेद में नवरस एवं नायक-नायिका भेद का निरूपण है । इस पर आठ टीकाओं का विवरण प्राप्त होता है जिनमें दो ही टीकाएं प्रकाशित हैं। इसका हिन्दी अनुवाद चौखम्बा विद्याभवन से प्रकाशित है। अनुवादक हैं डॉ० सत्यव्रत सिंह । वाग्भट जैनधर्मावलम्बी I
आधारग्रन्थ - भारतीय साहित्यशास्त्र भाग १ - आ० बलदेव उपाध्याय ।
वाग्भट द्वितीय - काव्यशास्त्र के आचार्य । इनका समय १४ वीं शताब्दी के लगभग है । इन्होंने 'काव्यानुशासन' नामक लोकप्रिय ग्रन्थ ( काव्यशास्त्रीय ) की रचना की है । ये जैन मतावलम्बी थे। इनके पिता का नाम नेमकुमार था । इन्होंने 'छन्दोऽनुशासन' एवं 'ऋषभदेवचरित' नामक काव्य की भी रचना की थी। 'काव्यानु शासन' सूत्रशैली में रचित काव्यशास्त्रीय ग्रन्थ है जिस पर स्वयं लेखक ने 'अलंकारतिलक नामक '