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बोलचम्पू ]
( १८० )
[ चोलचम्पू
में भगवान् को अनन्त गुणों का निवास तथा विज्ञानानन्दविग्रह कहा गया है । भगवान् में सत्यकामत्व, सत्यसंकल्पत्व, सर्वविद्यत्व, सर्वज्ञत्व आदि गुण उनसे पृथक् नहीं हैं तथा उनका स्वरूप गुणों से भिन्न नहीं हैं । शंकराचार्य की भाँति चैतन्यमत में भी ब्रह्म सजातीय, विजातीय एवं स्वगत भेद से शून्य है तथा उसे अखण्ड और सच्चिदानन्द पदार्थ माना जाता है । भगवान् की अचिन्त्य एवं अनन्त शक्तियाँ हैं जिनमें तीन प्रमुख हैं- स्वरूपशक्ति, तटस्थशक्ति तथा मायाशक्ति । स्वरूपशक्ति चित्शक्ति या अन्तरंगाशक्ति भी कही जाती है । यह भगवद्रूपिणी होती है तथा सत्, चित् और आनन्द के कारण एक होने पर भी तीन रूपों में प्रकट होती है- सन्धिनी, संबित् एवं ह्लादिनी । सन्धिनी शक्ति के द्वारा भगवान् स्वयं सत्ता धारण कर दूसरों को भी सत्ता प्रदान करते हुए स्वतन्त्र, देश, काल एवं द्रव्यों में परिव्याप्त रहते हैं । संवित् शक्ति से भगवान् स्वयं जानते हुए दूसरों को भी ज्ञान देते हैं तथा ह्लादिनी शक्ति से स्वयं आनन्दित होकर दूसरों को भी आनन्दित करते हैं ।
तटस्थशक्ति - परिछिन्न स्वभाव तथा अणुत्व विशिष्ट जीवों के आविर्भाव का जो कारण बनती है उसे तटस्था कहते हैं । यह जीव शक्ति भी कही जाती है । मायाशक्ति प्रकृति एवं जगत् के आविर्भाव का साधन है । जब इन तीनों शक्तियों का समुच्चय होता है तो इनकी संज्ञा 'पराशक्ति' हो जाती है । भगवान् स्वरूपशक्ति से जगत् के उपादान एवं निमित्त दोनों ही कारण होते हैं । चैतन्य मत में जगत् सत्य है क्योंकि वह भगवान् की मायाशक्ति के द्वारा आविर्भूत होता है । भगवान् भक्ति के द्वारा ही भक्त के वश में होते हैं । इस मत में भगवान के दो रूप मान्य हैं - ऐश्वयं एवं माधुयं ।
ऐश्वयं में भगवान् के परमैश्वयं का विकास होता है तथा माधुयं में वे नरतनधारी होकर मनुष्य की तरह चेष्टाएँ किया करते हैं। माधुयं रूप की भक्ति, सहय, वात्सल्य, दास्य एवं दाम्पत्य भाव के रूप में होती है। चैतन्यमत में माधुर्यं रूप से ही भगवद् प्राप्ति पर बल दिया गया है । भगवान् श्रीकृष्ण के चरणारविन्द की सेवा करते हुए आनन्द प्राप्त करना मोक्ष से भी बढ़कर माना गया है ।
आधारग्रन्ध - भागवत सम्प्रदाय - आ० बलवेव उपाध्याय ।
अनुसार कवि का अनुमानित
थे
चोलचम्पू- इस चम्पू-काव्य के प्रणेता विरूपाक्ष कवि हैं। इनकी एक अन्य रचना 'शिवविलासचम्पू' भी है ( अप्रकाशित विवरण तंजोर कैटलाग- ४१६० में प्राप्त ) । 'चोलचम्पू' के संपादक डॉ० बी० राघवन के समय सत्रहवीं शताब्दी है । ये कौशिक गोत्रीय ब्राह्मण और इनकी माता का नाम गोमती एवं पिता का नाम शिवगुरु था। इस चम्पू के वयं विषयों की सूची इस प्रकार है - खयंटग्रामवर्णन, कुलोतुङ्गवर्णन, कुलोतुङ्ग की शिव-भक्ति, वर्षागम, शिवदर्शन, शिव द्वारा कुलोतुङ्ग को राज्यदान, कुबेरागमन तंजासुर की कथा, कुबेर की प्रेरणा से कुलोतुङ्ग का राज्य ग्रहण, राज्य का वर्णन, चन्द्रोदयवर्णन, पत्नी कोमलांगी के साथ संभोग, प्रभाव - वर्णन, पुत्रजन्म, महोत्सव, राजकुमार को अनुशासन, कुमार चोलदेव का विवाह तथा पट्टाभिषेक, अनेक वर्षो तक कुलोतुङ्ग का राज्य करने के पश्चात् सायुज्य प्राप्ति और देवचोल के शासन करने की सूचना । इसमें मुख्यत: शिव