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वेदान्त ]
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[ वेदान्त
व्याकरणं स्मृतम् । तस्मात्साङ्गमधीत्यैव ब्रह्मलोके महीयते ॥ ४२ ॥ छम्द वेदों का पैर, कल्प हाथ, ज्योतिष नेत्र, निरुक्त श्रवण, शिक्षा घ्राण एवं व्याकरण मुख होता है ।
आधारमन्थ-वैदिक साहित्य और संस्कृति-पं० बलदेव उपाध्याय ।
वेदान्त-भारतीयदर्शन का एक महनीय सिद्धान्त । वेदान्त का अर्थ है वेद का अन्त । वेद के तीन विभाग किये गए हैं-ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद् । प्रारम्भ में वेदान्त उपनिषद् का ही बोधक था, क्योंकि उपनिषद् ही वेद का अन्तिम विभाग है। 'वेदान्त' शब्द का प्रयोग उपनिषदों में भी हुआ है-वेदान्तविज्ञानसुनिश्चितार्थाः मुण्डकोपनिषद् ३।२।६। वेद के अध्यात्म-विषयक विचार जो विभिन्न उपनिषदों में बिखरे हुए हैं, उन्हें सूत्ररूप में एकत्र कर वादरायण व्यास ने वेदान्त सूत्र का रूप दिया जिसे ब्रह्मसूत्र भी कहते हैं । 'ब्रह्मसूत्र' में चार अध्याय हैं तथा सूत्रों की संख्या साढ़े पांच सौ है । ब्रह्मसूत्र का रचनाकाल वि० पू० षष्ठ शतक के बाद का नहीं है । 'गीता' में भी इसका उल्लेख प्राप्त होता है-ब्रह्मसूत्रपदैश्चैव हेतुमद्भिवि निश्चितैः १३।४। इसके प्रथम अध्याय को समन्वयाध्याय कहते हैं, जिसमें ब्रह्म-विषयक समस्त वेदान्त वाक्यों का समन्वय है। प्रथम पाद के प्रथम अध्याय के चार सूत्र अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं जिन्हें 'चतुःसूत्री' कहा जाता है। द्वितीय अध्याय में स्मृति, तकं आदि सम्भावित विरोध का परिहार करते हुए अविरोध प्रदर्शित किया गया है। इस अध्याय का नाम अविरोधाध्याय है। तृतीय अध्याय को साधनाध्याय कहते हैं जिसमें वेदान्त-विषयक विभिन्न साधनों का विवेचन है तथा चतुर्थ अध्याय में इनके फल पर विचार किया गया है । 'वेदान्तसूत्र' पर अनेक आचार्यों ने भाष्य लिखकर कई विचारधाराओं का प्रवर्तन किया है। क्रमनाम
भाष्य का नाम
मत १-शंकर-७८८-८८० ई०- शारीरक भाष्य- केवलाद्वैत या
निविशेषाद्वैतवाद २-भास्कर- १००० ई०- भाष्कर भाष्य
भेदाभेद ३-रामानुज- ११४० ई०- श्रीभाष्य
विशिष्टाद्वैतवाद ४-मध्व- १२३८ ई०- पूर्णप्रज्ञभाष्य५.-निम्बार्क- १२५० ई०- वेदान्तपारिजात- द्वैताद्वैत ६-श्रीकण्ठ-- १२७० ई०
शेवभाष्य
शैवविशिष्टाद्वैत ७-श्रीपति- १४०० ई०- श्रीकरभाष्य- वीरशैव विशिष्टाद्वैत ८-वल्लभ- १४७९ ई०- अणुभाष्य
शुद्धाद्वैत ९-विज्ञानभिक्षु- १६००- विज्ञानामृत
अविभागाद्वैत १०-बलदेव- १७२५.-- गोविन्दभाष्य
अचिन्त्यभेदाभेद । शंकराचार्य के पूर्व अनेक अद्वैत वेदान्ती आचार्यों का उल्लेख मिलता है जिनमें गौडपाद का स्थान सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने 'माण्डूक्य उपनिषद्' के ऊपर कारिकाबद्ध भाष्य लिखा है।
द्वैतवाद