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नैषधीयचरित ]
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[ नैषधीयचरित
सर्ग में नल अपने को प्रकट कर देता है । वह इन्द्र, यम, वरुण आदि का सन्देश कहता है । नवम सर्ग-नल देवताओं में से किसी एक को दमयन्ती को वरण करने के लिए कहता है, पर वह राजी नहीं होती। वह उसे भाग्य का खेल समझकर दृढ़तापूर्वक देवताओं का सामना करने की बात कहता है। इसी अवसर पर हंस आकर उन्हें देवताओं से भयभीत न होने की बात कहता है। दमयन्ती नल से स्वयंवर में आने की प्रार्थना करती है. और वह उसकी बात मान लेता है। दशम सर्ग में स्वयंवर का उपक्रम वर्णित है। ग्यारहवें एवं बारहवें सर्ग में सरस्वती द्वारा स्वयंवर में आये हुए राजाओं का वर्णन किया गया है। तेरहवें सग में सरस्वती नल सहित चार देवताओं का परिचय श्लेष में देती है। सभी श्लोकों का अर्थ नल तथा देवताओं पर घटित होता है। चौदहवें सर्ग में दमयन्ती वास्तविक नल का वरण करने के लिए देवताओं की स्तुति करती है जिससे देवगण प्रसन्न होकर सरस्वती के श्लेष को समझने की उसमें शक्ति देते हैं। भैमी वास्तविक नल का वरण कर उसके गले में मधूक पुष्प की माला डाल देती है । पंद्रहवें सर्ग में विवाह की तैयारी एवं पाणि-ग्रहण तथा सोलहवें में नल का विवाह एवं उनका राजधानी लौटना वर्णित है। सत्रहवें सर्ग में देवताओं का विमान द्वारा प्रस्थान एवं मार्ग में कलि-सेना का आगमन वर्णित है। सेना में चार्वाक, बोद आदि के द्वारा वेद का खण्डन और उनके अभिमत सिद्धान्तों का वर्णन है। कलि देवताओं द्वारा नल-दमयन्ती के परिणय की बात सुनकर नल को राजच्युत करने की प्रतिज्ञा करता है और नल की राजधानी में चला जाता है । वह उपवन में जाकर विभीतक वृक्ष का आश्रय लेता है और नल को पराजित करने के लिए अवसर की प्रतीक्षा में रहता है । अठारहवें सर्ग में नल-दमयन्ती का विहार तथा पारस्परिक अनुराग वर्णित है। उन्नीसवें सर्ग में प्रभात में वैतालिक द्वारा नल का प्रबोधन सूर्योदय एवं चन्द्रास्त का वर्णन है। बीसवें सर्ग में नल-दमयन्ती का परस्पर प्रेमालाप तथा इक्कीसवें में नल द्वारा विष्णु, शिव, वामन, राम-कृष्ण प्रभृति देवताओं की प्रार्थना का वर्णन है 1 बाईसवें सर्ग में सन्ध्या एवं रात्रि का वर्णन, वैशेषिक के अनुसार अन्धकार का स्वरूप-चित्रण तथा चन्द्रोदय एवं दमयन्ती के सौन्दर्य का वर्णन कर ग्रन्थ की समाप्ति की गयी है ।
'नैषधचरित' महाकाव्य की पूर्णता के प्रश्न को लेकर विद्वानों में मतभेद है। इसमें कवि ने २२ सगों में नल के जीवन का एक ही पक्ष प्रस्तुत किया है। वह केवल दोनों के विवाह एवं प्रणय-क्रीड़ा का ही चित्रण करता है तथा शेष अंश अवणित ही रह जाते हैं। कुछ विद्वान् तो २२ में सर्ग में ही इस काव्य की समाप्ति मानते हैं, पर कुछ के अनुसार यह महाकाव्य अधूरा है। उनके अनुसार इसके शेष भाग या तो लुप्त हो गए हैं या कवि ने अपनी रचना पूर्ण नहीं की है। वर्तमान 'नैषधचरित' को पूर्ण मानने वाले विद्वानों में कीथ, श्री व्यासराज शास्त्री तथा विद्याधर (हर्षचरित के टीकाकार ) है। डॉ. कीथ का कहना है कि संस्कृत के उपलब्ध महाकाव्यों में 'नैषधचरित' सर्वाधिक विस्तृत ग्रन्थ है, पर यह विश्वास करने योग्य नहीं है कि श्रीहर्ष ने