________________
बौधायन धर्मसूत्र ]
( ३११ )
[ बौद्ध दर्शन
विद्या का वर्णन है। इस उपनिषद् के मुख्य दार्शनिक याज्ञवल्क हैं और सर्वत्र उन्हीं की विचारधारा परिप्लावित हो रही है । यह ग्रन्थ गद्यात्मक है और इसमें आरण्यक तथा उपनिषद् दोनों ही अंश मिले हुए हैं ।
इसमें संन्यास की प्रवृत्ति का अत्यन्त विस्तार के साथ वर्णन तथा एषणात्रय ( लोकैषणा, पुत्रैषणा एवं वित्तैषणा ) का परित्याग, प्रव्रजन, ( सन्यास ) और भिक्षाचर्या का उल्लेख है । 'बृहदारण्यक उपनिषद्' में अश्वमेध के रहस्य का विवेचन करते हुए उसे विश्वरूप बताया गया है । प्रथम अध्याय में प्राण को आत्मा का प्रतीक मानकर आत्मा या ब्रह्म जगत् की सृष्टि कही गयी है और उसे ही समस्त प्राणियों का आधार माना गया है ।
आधारग्रन्थ — बृहदारण्यक - गीता प्रेस गोरखपुर का संस्करण ( हिन्दी अनुवाद सहित ) |
।
बौधायन धर्मसूत्र - कृष्ण यजुर्वेद के आचार्य बौधायन द्वारा लिखित यह धर्मशास्त्र उनके कल्पसूत्र का अंश है । बौधायन गृह्यसूत्र में इसका उल्लेख है । यह ग्रन्थ सम्पूर्ण रूप में उपलब्ध नहीं है इसमें आठ अध्याय हैं तथा अधिकांश श्लोकबद्ध हैं । इसमें आपस्तम्ब तथा वसिष्ठ के अनेक सूत्र अक्षरशः प्राप्त होते हैं । यह धर्मसूत्र 'गोतमधर्मसूत्र' से अर्वाचीन माना जाता है। इसका समय वि० पू० ५०० से २०० वर्ष है । इसमें वर्णित विषयों की सूची - धर्म के उपादानों का वर्णन, उत्तर और दक्षिण के विभिन्न आचार-व्यवहार, प्रायश्चित्त, ब्रह्मचारी के कत्र्तव्य, ब्रह्मचयं की महत्ता, शारीरिक तथा मानसिक अशौच, वसीयत के नियम, यज्ञ के लिए पवित्रीकरण, मांस और भोजन का निषेध निषेध, यज्ञ की महत्ता, यज्ञ-पात्र, पुरोहित, याज्ञिक एवं उसकी स्त्री, घी, अन्नदान, सोम तथा अग्नि के विषय में नियम । राजा के कर्तव्य, पंचमहापातक एवं उनके सम्बन्ध में दण्डविधान, पक्षियों के मारने का दण्ड, अष्ट विवाह, ब्रह्महत्या तथा अन्य पापकर्मों के लिए प्रायश्चित्त का विधान, ब्रह्मचयं तोड़ने पर ब्रह्मचारी द्वारा सगोत्र कन्या से विवाह करने का नियम, छोटे-छोटे पाप, कृच्छ्र और अतिकृच्छ्रों का वर्णन, वसीयत का विभाजन, ज्येष्ठ पुत्र का भाग, औरस पुत्र के स्थान पर अन्य प्रति व्यक्ति, वसीयत के निषेध, पुरुष या स्त्री द्वारा व्यभिचार करने पर प्रायश्चित्त, नियोग विधि, अग्निहोत्र, आदि गृहस्थकर्म, सन्यास के नियम आदि । [ गोविन्दस्वामी के भाष्य के साथ काशी संस्कृत सिरीज से प्रकाशित तथा आंग्लानुवाद सेक्रेट बुक्स ऑफ द ईस्ट भाग १४ में ] ।
बौद्ध दर्शन - यह भारत का प्रसिद्ध दार्शनिक सम्प्रदाय है जो बोद्धमतवाद पर आश्रित है । भगवान् बुद्ध ने बौद्धधर्म का प्रवत्तन किया था । उनका समय ईसा पूर्व बट शताब्दी माना जाता है पर अनेक विद्वान इन्हें ईसा से १८०० वर्ष पूर्व मानते हैं । ( श्री पी० एन० ओक रचित एतद्विषयक निबन्ध दैनिक आयावर्त १९१५/६८ ) बुद्ध ( सिद्धार्थ ) का जन्म कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन के यहाँ हुआ था । उनकी माता का नाम मायादेवी एवं पत्नी का नाम यशोधरा था । बचपन से ही जरा-मरण के