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उत्तरचम्पू.]
[उत्तररामचरित
महावीर तक समाप्त हो जाता है। यह जैनियों २४ पुराणों का ज्ञानकोश माना जाता है जिसमें सभी पुराणों का सार संकलित है। इसमें ३२ उत्तरवर्ती पुराणों की अनुक्रमणिका प्रस्तुत की गयी है। 'आदिपुराण' एवं 'उत्तरपुराण' में प्रत्येक तीर्थकर का जीवनचरित वर्णन करने के पूर्व चक्रवर्ती राजाओं की कथा का वर्णन है। इनके विचार से प्रत्येक तीर्थकर पूर्वजन्म में राजा थे। इसमें कुल मिलाकर ६३ व्यक्तियों का चरित वर्णित है, जिनमें चौबीस तीर्थकर, बारह चक्रवर्ती, नौ वासुदेव, नौ शुक्लबल तथा नौ विष्णुद्विष आते हैं। इस ग्रन्थ की अन्तिम पुष्पिका में यह लिखा गया है कि 'समस्त शास्त्रों का सार स्वरूप यह पुराण ग्रन्थ धर्मवित् श्रेष्ठ व्यक्तिगण द्वारा ८२० शक पिंगल संवत्सर ५ आश्विन शुक्लपक्ष, बृहस्पतिवार को पूजित हुआ।' संस्कृत साहित्य का इतिहास-गैरोला पृ० ३१४।। ___ इसमें सर्वत्र जैनधर्म की शिक्षा का वर्णन है तथा श्रीकृष्ण को त्रिखण्डाधिपति तथा तीर्थकर नेमिनाथ का शिष्य माना गया है।
आधारग्रन्थ-१. जैन साहित्य का इतिहास-श्रीनाथूराम 'प्रेमी' २. संस्कृत साहित्य का इतिहास-गैरोला ३. जैन साहित्य का बृहत् इतिहास-२ खण्डों में बेचरदास पण्डित तथा डॉ० होरालाल जैन ।
उत्तरचम्पू-इस चम्पू काव्य के प्रणेता भगवन्त कवि हैं। इनका समय १६८५ से १७११ के आसपास है। ये नरसिंह के शिष्य तथा एकोजि के मुख्य सचिव गंगाधरामात्य के पुत्र थे। कवि ने 'वाल्मीकि रामायण' के उत्तरकाण्ड को आधार बनाकर अपने ग्रन्थ का प्रणयन किया है और मुख्यतः रामराज्याभिषेक का वर्णन किया है। इसकी रचनाशली साधारण कोटि की है और ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है। इसका विवरण तंजोर कैटलाग, ६,४०२८ में प्राप्त होता है। कवि ने ग्रन्थ में अपना परिचय इस प्रकार दिया है
एकोजिक्षितिपालमुख्यसचिवश्रेष्ठस्य गंगाधरा.
मात्यस्यात्मसमुद्भवेन भगवन्ताख्येन विख्यायते । प्रोक्तं रामचरित्रमार्यनरसिंहस्य प्रसादादिदं
श्रीमत्त्र्यम्बकवयंवंशतिलकस्यास्तां चिरं श्रेयसे । आधारग्रन्थ-चम्पूकाव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ छविनाथ त्रिपाठी।
उत्तररामचरित-महाकवि भवभूति विरचित उनका सर्वोत्तम नाटक । इसमें कवि की नाट्यरचना का प्रौढ़ रूप प्राप्त होता है तथा इसकी गणना संस्कृत के महान् ग्रन्थों में होती है। इस नाटक में कवि ने श्रीरामचन्द्र के जीवन के उत्तर भाग का वर्णन किया है। राज्याभिषेक के पश्चात् इसमें रामचन्द्र का अवशिष्ट जीवन-वृत्तान्त वणित है । इस नाटक की रचना सात अंकों में हुई है।
प्रथम अंक में नान्दी पाठ के अनन्तर सूत्रधार द्वारा नाटककार का परिचय दिया गया है। वन से लौट कर आने पर राम का राज्याभिषेक होता है। प्रस्तावना से विदित होता है कि राज्याभिषेक में सम्मिलित होने के लिए समागत राजे लौट रहे