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पुराण ]
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[पुराण
हासमाचक्षते' कहा गया है। प्राचीन ग्रंथों में इतिहाम का भी स्वतन्त्ररूप से प्रयोग हुआ है जहां इसका अर्थ है 'प्राचीनकाल में निश्चितरूप से घटित होने वाली घटना का' । निदानभूतः इति ह एवमासीत् इति य उच्यते स इतिहासः, निरुक्त २ । ३ । १ दुर्गाचार्य की वृत्ति । समयान्तर से पुराणों में इतिहास शब्द इतिवृत्त का वाचक होता गया और काल्पनिक कथा के लिए पुराण एवं वास्तविक घटना के लिए इतिहास शब्द का व्यवहार होने लगा तथा इस प्रकार दोनों के अर्थ-भेद की सीमा बाँध दी गई।
राजशेखर ने इतिहास के दो प्रकार मान कर इसे परिक्रिया एवं पुराकल्प कहा है। परिक्रिया में एक नायक की कथा होती है और पुराकल्प में अधिक नायकों की कथा का वर्णन होता है । इस दृष्टि से 'रामायण' को पुराकल्प एवं 'महाभारत' को परिक्रिया कहा गया। आगे चलकर पुराण शब्द का इतना अर्थ-विस्तार हुआ कि उसमें न केवल इतिहास अपितु उन सभी वाङ्मयों का समावेश हो गया जो मानव जाति के कल्याण के साधन होते हैं। शृणु वत्स प्रवक्ष्यामि पुराणानां समुच्चयम् । यस्मिन् ज्ञाते भवेज्जातं वाङ्मयं सचराचरम् ॥ नारदीयपुराण १२९२।२१ ।
पुराणों के प्राचीन उल्लेख-वेदों में पुराण शब्द का प्रयोग मिलता है। प्राचीन साहित्य में पुराण दो अर्थों में प्रयुक्त है। प्रथम अर्थ प्राचीन वृत्त से सम्बद्ध विशिष्ट विद्या या शास्त्र के लिए है तो द्वितीय विशिष्ट साहित्य के लिए। 'ऋग्वेद' में पुराण शब्द केवल प्राचीनता के ही अर्थ में व्यवहृत है, पर 'अथवं. वेद' में इसका प्रयोग इतिहास, गाथा एवं नाराशंसी के रूप में हुआ है । इसमें पुराण को 'उच्छिष्ट' नामक ब्रह्मसे उदित कहा गया है । ऋचः सामानि छन्दांसि पुराणं यजुषा सह । उच्छिष्टाजज्ञिरे सर्वे दिविदेवादिविश्रिताः ।। अथर्ववेद १११७।२४ । वेदों में जो दानस्तुति या नाराशंसी हैं उनका सम्बन्ध पुराण से ही है । येत आसीद भूमिः पूर्वा यामदा तय इद् विदुः । यो वै तो विद्यान्नामथा स मन्येत पुराणवित् ॥ अथर्व वेद ११८७ ब्राह्मण साहित्य में भी पुराण का अनेक स्थलों पर उल्लेख किया गया है । 'गोपथब्राह्मण' में कहा गया है कि कल्प, रहस्य, ब्राह्मण, उपनिषद्, इतिहास, अन्वयाख्यात एवं पुराण के साथ सब वेदों का निर्माण हुआ। इसी प्रकार आरण्यकों एवं उपनिषदों में भी पुराण का उल्लेख है। शतपथब्राह्मण तो पुराण को वेद कहता है-'पुराणं वेदः । सोऽमितिकिञ्चित् पुराणमाचक्षीत, १३॥४, ३३१३ । प्राचीन साहित्य के अध्ययन से जो तथ्य उपलब्ध होते हैं उन्हें इस प्रकार सूचित किया जा सकता है
(क ) वेदशास्त्र की भाति उच्छिष्टब्रह्म या महाभूत ब्रह्म ने ही इतिहास पुराणों को उत्पन्न किया है । (ख ) वेद के समान पुराणों को भी अनित्य माना जाना चाहिए । (ग) इतिहास और पुराण को पन्चम वेद कहा गया है। (घ) पुराण प्राचीन समय में मौखिक न होकर पुराणविद्या के रूप में या पुराण वेद के रूप में प्रचलित थे। (अ) आरण्यक युग तक आकर पुराण एक न होकर अनेक हो गए, भले ही वह ग्रन्थ रूप में न रहे हों पर उनका अस्तित्व आख्यान रूप में निश्चय ही विद्यमान पा। कल्पसूत्रों में भी पुराणों का अस्तित्व है। 'आश्वलायन गृह्मसूत्र' में अनेक