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महाभारत ]
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[ महाभारत
१- देवबोध - इनकी टीका का नाम 'ज्ञानदीपिका' है जो सर्वाधिक प्राचीन उपलब्ध टीका है । यह टीका आदि, सभा, भीष्म तथा उद्योगपर्व पर है । २- वैशम्पायनइनकी टीका मोक्षधमं या शान्तिपर्व पर उपलब्ध होती है । इनका समग्र ११५० ई० से पहले है । ३ - विमलबोध - इनको टीका का नाम 'विषमश्लोकी' या 'दुर्घटाथंप्रकाशिनी' है । यह टीका सम्पूर्ण महाभारत पर है। इसका समय १०५० ई० है । ४ -नारायण सर्वज्ञ - इनकी टीका विराट् एवं उद्योगपर्व पर प्रकाशित है। इनका समय ११३० - १३०० ई० के बीच है । ५ - चतुर्भुज मिश्र – इनका समय १३ वीं शती का अन्तिम भाग है। इनकी टीका का नाम 'भारतोपायप्रकाश' है । ६ - आनन्दपूर्ण विद्यासागर — इनकी टीका आदि, सभा, भीष्म, शान्ति तथा अनुशासनपर्व पर है । इनका समय १४ वीं शती का मध्य है । ७- लीलकण्ठ - इनकी टीका का नाम 'भारतभावदीप' है जो १८ पर्वो पर प्रकाशित एकमात्र टीका है । इनका समय १६५० - १७०० ई० के बीच है । यह टीका अनेक भागों में चित्रशाला प्रेस, पूना से प्रकाशित हो चुकी है ।
'महाभारत' के ऊपर भारतीय तथा यूरोपीय भाषाओं में अनेकानेक ग्रन्थ निकले हैं तथा इसका अनुवाद विश्व की प्रसिद्ध भाषाओं में हो चुका है । सम्पूर्ण 'महाभारत' का अंगरेजी गद्यानुवाद किशोरीमोहन गांगुली तथा प्रतापचन्द्र राय ने (१८८४१८९६ ई० ) किया था। प्रथम दश पर्वो का फ्रेंच अनुवाद श्री एच० फॉके ने पेरिस से ( १८६३ - १८७० ) में प्रकाशित किया । श्री पी० ई० पावलिनी ने इतालवी भाषा में इसके कई अंशों का अनुवाद १९०२ ई० में तथा एफ० बोप्प ने किया । विन्टरनित्स ने जर्मन भाषा में इसका अनुवाद १९१२ ई० में किया है जिसका नाम है'दस स्लैंगनोपफरदेस महाभारत' । हाल्टमैन ने दो खण्डों में जर्मन भाषा में महाभारत पर आलोचनात्मक ग्रन्थ लिखा है । सोरेन्सन ने अंगरेजी में 'महाभारत इन्डेक्स' लिखा जिसमें महाभारत के नामों एवं विषयों की सूची है।
इसका हिन्दी अनुवाद 'महाभारत कोष' के नाम से ५ खण्डों में प्रकाशित है, अनु० श्रीरामकुमार राय ।
'महाभारत' भारत की नैतिक एवं धार्मिक परम्परा का प्रमुखतभ स्रोत है तथा जन-मानस को अधिक प्रभावित करने के कारण, कलात्मक ढंग से जीवन को प्रतिबिम्बित करने के कारण महान् काव्यकृति के रूप में समाहत है । इस ग्रन्थ के प्रारम्भ में इसे काव्य कहा गया है तथा ध्वन्यालोककार आनन्दवर्धन के द्वारा इसे काव्य के ही रूप में शास्त्रीय प्रतिष्ठा प्राप्त हुई है । पर इसमें विशुद्ध काव्य की तरह सौन्दर्यदृष्टि का प्राधान्य न होकर कर्म की प्रधानता है । इसमें प्रकृति चित्रण अथवा किसी नायिका के रूप वर्णन के प्रति लेखक रस लेते हुए नहीं दिखाई पड़ता । 'महाभारत' युगधर्म को चित्रित करने वाला अपूर्व काव्य है । इसमें जिस जीवन का चित्रण है उसमें अनेक प्रकार के अन्तविरोध एवं बाह्य द्वन्द्व का विस्तार है तथा उनकी मार्मिक और तीव्र अभिव्यक्ति है । इसका प्रधान विषय संघर्ष है मोर वह अर्थ एवं काम का संघर्ष है जो धर्म के दायरे में प्रवाहित हुआ है । 'महाभारत' में स्थान-स्थान पर नैतिक
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