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भैष्मीपरिणय चम्पू]
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[भोसल वंशावली चम्पू
की दार्शनिक एवं मनोवैज्ञानिक व्याख्या प्रस्तुत की है। इन्होंने शृङ्गार रस का महत्व स्थापित करते हुए सभी रसों का अन्तर्भाव उसी ( श्रृंगार ) में कर दिया है । शृङ्गारवीरकरुणाद्भुतरौद्रहास्यबीभत्सवत्सलभयानकशान्तनाम्नः । आम्नासिषुदंशरसान् सुधियो वयं तु शृङ्गारमेव रसनाद् रसमामनामः ॥ शृङ्गारप्रकाश । इन्होंने रस, अहंकार, अभिमान एवं शृङ्गार को पर्यायवाची शब्द मान कर रस को अहंकार से उत्पन्न माना है । श्रृंगार को मूल रस मानकर भोज ने अलंकारशास्त्र के इतिहास में नवीन व्यवस्था स्थापित की है। इन्होंने अलंकारों के तीन भेद-शब्दालंकार, अर्थालंकार एवं उभयालंकार मान कर तीनों के २४-२४ प्रकार से ७२ भेद किये हैं और पद, वाक्य तथा वाक्यार्थ प्रत्येक के १६ भेदों का निरूपण किया है। इनके अनुसार शब्द एवं अर्थ प्रत्येक के २४ गुण होते हैं। भोज के काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों के परिचय के लिए दे० सरस्वतीकण्ठाभरण एवं शृङ्गारप्रकाश। इन्होंने पूर्ववर्ती सभी काव्यशास्त्रीय सिद्धान्तों का विवेचन कर समन्वयवादी परम्परा की स्थापना की है और इसी दृष्टि से इनका महत्त्व है।
__ आधारग्रन्थ-१-शृङ्गारप्रकाश-डॉ० वी० राघवन् । २-भारतीय साहित्यशास्त्र भाग १-आ० बलदेव उपाध्याय ।
भैष्मीपरिणय चम्पू-इस चम्पू के रचयिता श्री निवासमखिन् हैं। इनके पिता का नाम लक्ष्मीधर था। इनका समय सत्रहवीं शताब्दी का मध्योत्तर है। इस चम्पू में श्रीमद्भागवत के आधार पर श्रीकृष्ण एवं रुक्मिणी के विवाह का वनंन है। इसमें गद्य एवं पद्य दोनों में यमक का सुन्दर समावेश किया गया है। यह चम्पू अप्रकाशित है और इसका अपूर्ण हस्तलेख उपलब्ध है। इसका विवरण डिस्क्रिप्टिव कैटलाग, मद्रास १२३३३ में प्राप्त होता है । ध्वन्यध्वन्यधिकं चमत्कृितियुता अस्याभुताः सूक्तयः । सारस्येन सुधा सुधा विदधिरे तां शर्करा शकराम् ।। ___ आधारग्रन्थ-चम्पू काव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ. छविनाथ त्रिपाठी।
भोजप्रबन्ध-यह बल्लाल सेन द्वारा रचित अपने ढंग का अनूठा काव्य है । इसकी रचना गद्य एवं पद्य दोनों में ही हुई है। 'भोजप्रबन्ध' का रचनाकाल १६ वीं शताब्दी है। इसमें धारा-नरेश महाराज भोज की विभिन्न कवियों द्वारा की गयी प्रशस्ति का वर्णन है। इसका गद्य साधरण है किन्तु पद्य रोचक एवं प्रौढ़ हैं । इस ग्रन्थ की एक विशेषता यह है कि रचयिता ने कालिदास, भवभूति, माघ तथा दण्डी को भी राजा भोज के दरबार में उपस्थित किया है। इसमें अल्प प्रसिद्ध कवियों का भी विवरण है । ऐतिहासिक दृष्टि से भले ही इसका महत्व न हो पर साहित्यिक दृष्टि से यह उपादेय ग्रन्थ है । 'भोजप्रबन्ध' की लोकप्रियता का कारण इसके पद्य हैं। [ हिन्दी अनुवाद के साथ चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी से प्रकाशित ] ।
भोसल वंशावली चम्पू-इस चम्पू काव्य के प्रणेता वेंकटेश कवि हैं । ये शरभोजी के राजकवि थे। कवि का रचनाकाल १७११ से १७२८ ई. के मध्य है।