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वाल्मीकि ]
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[ वाल्मीकि
२ - पुराणतस्वमीमांसा - श्रीकृष्णमणि त्रिपाठी । ३ - इतिहास पुराण का अनुशीलन - डॉ रामशंकर भट्टाचार्यं । ४- पुराणम् वर्ष ४ ( १९६२ ) पृ० ३६० - ३८३ ५ - पुराण - विमर्श - पं० बलदेव उपाध्याय ।
वाल्मीकि - संस्कृत के आदि कवि । इन्होंने 'रामायण' नामक आदि महाकाव्य की रचना की है [ दे० रामायण ] । वाल्मीकि के सम्बन्ध में कहा जाता है कि सर्वप्रथम इनके मुख से ही काव्य का आविर्भाव हुआ था । 'रामायण' के बालकाण्ड में यह कथा प्रारम्भ में ही मिलती है । तमसा नदी के किनारे महर्षि भ्रमण कर रहे थे, उसी समय एक व्याधा आया और उसने वहां विद्यमान क्रौंच पक्षी के जोड़े पर बाण-प्रहार किया । बाण के लगने से क्रौंच मर गया । ओर क्रौंची करुण स्वर में आर्तनाद करने लगी । इस करुण दृश्य को देखते ही महर्षि के हृदय में करुणा का नैसर्गिक स्रोत फूट पड़ा और उनके मुख से अकस्मात् शाप के रूप में काव्य की वेगवती धारा प्रवाहित हो गयी । उन्होंने व्याधे को शाप देते हुए कहा कि जाओ, तुम्हें जीवन में कभी भी शान्ति न मिले क्योंकि तुमने प्यार करते हुए क्रौंच मिथुन में से एक को मार दिया । मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः । यत् क्रौंचमिथुनादेकमवधीः काममोहितम् ॥ कवि का शोक श्लोक में परिणत हो गया, जो सम-अक्षर युक्त चार पादों का था । इसी श्लोक के साथ संस्कृत वाग्धारा का जन्म हुआ और इसी में महाकाव्य की गरिमा संपृक्त हुई । वाल्मिकी को सच्चा कवि हृदय प्राप्त हुआ था और उनमें महान् कवि के सभी गुण विद्यमान थे। कहा जाता है कि 'मानिषाद' वाली कविता को सुनकर स्वयं ब्रह्माजी ऋषि के समक्ष उपस्थित होकर बोले कि - महर्षे ! आप आद्यकवि हैं, अब आपके 'प्रातिभचक्षु का उन्मेष हुआ है। महाकवि भवभूति ने इस घटना का वर्णन 'उत्तररामचरित' नामक नाटक में किया है— ऋषे प्रबुद्धोऽसि वागात्मनि ब्रह्मणि । तद् ब्रूहि रामचरितम् । अव्याहतज्योतिरार्ष ते चक्षुः प्रतिभाति । आद्यः कविरसि । समाक्षरैश्चतुभिः पादैर्गोतो महर्षिणा । सोऽनुव्याहरणाद् भूयः शोकः श्लोकत्वमागतः ॥ १।२।४० | महाकवि कालिदास ने भी इस घटना का वर्णन किया है-तामभ्यगच्छद् रुदितानुसारी कविः कुशेध्माहरणाय यातः । निषादविद्वाण्डजदर्शनोत्थः इलोकत्वमापद्यत यस्य शोकः ।। रघुवंश १४।७० । ध्वनिकार ने भी अपने ग्रन्थ में इस तथ्य की अभिव्यक्ति की है- - काव्यस्यात्मा स एवार्थस्तथा चादिकवेः पुरा । क्रौंचद्वन्द्ववियोगोत्थः शोकः श्लोकत्वमागतः ॥ ध्वन्यालोक १।५ ।
वाल्मीकि ने 'रामायण' के माध्यम से महाराज रामचन्द्र के पावन, लोकविश्रुत तथा आदर्श चरित का वर्णन किया है। इसमें कवि ने कल्पना, भावना, शैली एवं चरित की उदात्तता का अप्रतिम रूप प्रस्तुत किया है। वाल्मीकि नैसर्गिक कवि हैं । जिनकी लेखनी किसी विषय का वर्णन करते समय उसका चित्र खींच देती है । कवि प्राकृतिक दृश्यों का वर्णन करते समय उनका यथाथ रूप शब्दों द्वारा मूर्तित कर देता है । वाल्मीकि रसपेशल कवि हैं और इनकी दृष्टि मुख्यतः रस-सृष्टि की ओर रही है । रामायण में मनोरम उपमाओं तथा उत्प्रेक्षाओं की विराट् दृश्यावली दिखाई पड़ती है । कवि किसी विषय का वर्णन करते समय, अप्रस्तुत विधान के रूप में, अलङ्कारों की