________________
भावप्रकाश ]
( ३४९ )
[ भास्कराचार्य
द्रुतविलम्बित, वंशस्थ, वैतालीय, प्रमिताक्षरा, स्वागता एवं पुष्पिताग्रा इनके अत्यन्त प्रिय छन्द हैं । इनकी शैली अलंकृत होते हुए भी सरस है ।
आधारग्रन्थ - १ - संस्कृत साहित्य का इतिहास - कीथ ( हिन्दी अनुवाद) । २संस्कृत - कवि-दर्शन — डॉ० भोलाशंकर व्यास । ३ - संस्कृत काव्यकार - डॉ० हरिदत्त शास्त्री । ४ – संस्कृत सुकवि समीक्षा - पं० बलदेव उपाध्याय । ५ - संस्कृत के महाकवि ओर काव्य - डॉ० रामजी उपाध्याय । ६ - भारतीय संस्कृति - डॉ० देवराज । ७किरातार्जुनीयम् - हिन्दी टीका - रामप्रताप शास्त्री ।
भावप्रकाश - आयुर्वेद का सुप्रसिद्ध ग्रन्थ । इस ग्रन्थ की गणना आयुर्वेदशास्त्र के लघुत्री के रूप में होती है । प्रणेता भावमिश्र हैं जो श्रीमिश्रलटक के पुत्र थे । 'भावप्रकाश' की एक प्राचीन प्रति १५५८ ई० की प्राप्त होती है, अतः इसका रचनाकाल इसी के लगभग ज्ञात होता है । फिरङ्ग रोग का वर्णन होने के कारण विद्वानों ने इसका समय १५ वीं शताब्दी के लगभग माना है । फिरंग रोग का सम्बन्ध पोचंगीज रोग से है । इसमें तीन खण्ड हैं- पूर्व, मध्य एवं उत्तर । प्रथम खण्ड में अश्विनीकुमार तथा आयुर्वेद की उत्पत्ति का वर्णन है तथा इसी खण्ड में गर्भप्रकरण, दोष तथा धातुवर्णन, दिनचर्या, ऋतुचर्या, धातुओं का जारण- मारण, पंचकर्म विधि आदि का विवेचन है । मध्यम खण्ड में ज्वरादि की चिकित्सा तथा अन्तिम खण्ड में वाजीकरण अधिकार है । इस ग्रन्थ में लेखक ने समसामयिक प्रचलित सभी चिकित्साविधि का वर्णन किया है । भावमिश्र ने 'गुणरत्नमाला' नामक चिकित्सा-विषयक ग्रन्थ की भी रचना की थी जो हस्तलेख के रूप में इण्डिया ऑफिस पुस्तकालय में है [ ३० जोली मेडिसिन पृ० ] । इस ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशन चौखम्बा विद्याभवन से हो चुका है । टीका का नाम विद्योतिनी हिन्दी टीका है ।
आधारग्रन्थ - आयुर्वेद का बृहत् इतिहास - श्री अत्रिदेव विद्यालंकार ।
भास्कराचार्य - भारतवर्ष के अत्यन्त प्रतिभाशाली ज्योतिर्विद् । इनका जन्मकाल १११४ ई० है । ये विज्जडविड नामक ग्राम के निवासी थे । इनके पिता का नाम महेश्वर उपाध्याय था जो इनके गुरु भी थे । इनके कथन से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है - आसीन्महेश्वर इति प्रथितः पृथिव्यामाचार्य वयपदवीं विदुषा प्रयत्नः । लब्धाबोधकलिकां तत एव चक्रे तज्जेन बीजगणितं लघु भास्करेण || इन्होंने लीलावती, बीजगणित, सिद्धान्तशरोमणि, करणकुतूहल एवं सर्वतोभद्र नामक ग्रन्थों की रचना की है । 'शिद्धान्तशिरोमणि' में ब्रह्मगुप्त, पृथूदक स्वामी, आर्यभट्ट एवं लल्ल के सिद्धान्तों का प्रभाव है । इन्होंने स्वयं इस ग्रन्थ पर 'वासना' नामक भाष्य की भी रचना की है । 'सिद्धान्तशिरोमणि' में उसका निर्माणकाल भी दिया हुआ है । रसगुणपूर्ण महीसमशकनृपसमयेऽभवन्ममोत्पत्तिः । रसगुणवर्षेण मया विद्धान्तशिरोमणीरचितः ॥ इसके अनुसार इसका रचनाकाल ११५० ई० है । 'लीलावती' ग्रन्थ लीलावती संज्ञक लड़की को सम्बोधित कर लिखा गया है जो प्रश्नोत्तर के रूप में है । यह पाटीगणित एवं क्षेत्रमिति का ग्रन्थ है । भास्कराचार्य ने मुख्यतः गणित ज्योतिष का ही वर्णन किया है, फलित