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रामचन्द्रचम्पू]
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[रामचन्द्र गुणचन्द्र
समग्र ग्रन्य प्राप्त नहीं होते, पर छोटे-छोटे प्रबंधों को लेकर लगभग तीस ग्रन्थ उपलब्ध हो चुके हैं । इन्होंने रूपकों के अन्तर्गत नाटक, प्रकरण, नाटिका तथा व्यायोग का वर्णन किया है। इनमें नाटकों के नाम इस प्रकार हैं-'नलविलास' एवं 'सत्यहरिश्चन्द्र' दोनों ही नाटक प्रकाशित हो चुके हैं। 'यादवाभ्युदय', 'राघवाभ्युदय' तथा 'रघुविलास' नामक तीन ग्रन्थ अप्रकाशित हैं तथा इनके उद्धरण 'नाट्यदर्पण' में प्राप्त होते हैं । इन्होंने तीन प्रकरणों की भी रचना की है जिसमें 'कौमुदी मित्रानन्द' का प्रकाशन हो चुका है, किन्तु 'रोहिणीमृगांकप्रकरण' एवं 'मलिकामकरंद' 'नाट्यदर्पण' में ही उद्धृत हैं। इन्होंने 'वनमाला' नामक नाटिका की भी रचना की थी जो अप्रकाशित है। इसके 'नाट्यदर्पण' में उद्धरण प्राप्त होते हैं, जिससे पता चलता है कि इसमें नल-दमयन्ती की कथा वर्णित है। इन्होंने 'निर्भयभीम' नामक व्यायोग की रचना की है जो प्रकाशित हो चुका है । उपर्युक्त सभी ग्रन्थों के प्रणयन से ज्ञात होता है कि रामचन्द्र प्रतिभाशाली व्यक्ति थे, जिन्होंने व्यापक रचना-कौशल एवं नाट्यचातुरी का परिचय दिया है। 'रघुविलास' को प्रस्तावना में इनकी प्रशस्ति इस प्रकार की गई है-पन्चप्रबन्धमिपञ्च मुखानकेन विद्वन्मनःसदसि नृत्यति यस्य कीर्तिः । विद्यात्रयीचरणचुम्बितकाव्यतन्द्र कस्तं न वेद सुकृती किल रामचन्द्रम् ॥
रामचन्द्रचम्पू-इस चम्पूकाव्य के रचयिता महाराज विश्वनाथ सिंह हैं । ये रीवा के नरेश थे और इनका शासनकाल १७२१ से १७४० ई. तक है। इसमें कवि ने आठ परिच्छेदों में रामायण की कथा का वर्णन किया है। पुस्तक का प्रारम्भ सीता की वन्दना से हुआ है। यह ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है और इसका विवरण मित्रा कैटलॉग, वोल १, सं० ७३ में प्राप्त होता है।
माधारग्रन्थ-चम्पूकाव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ. छविनाथ त्रिपाठी।
रामचन्द्र गुणचन्द्र-नाट्यशास्त्र के आचार्य। दोनों ही आचार्य हेमचन्द्राचार्य के शिष्य एवं प्रसिद्ध जैन विद्वान् थे। दोनों की सम्मिलित रचना 'नाट्यदर्पण' है। इनमें गुणचन्द्र की अन्य कृति प्राप्त नहीं होती पर रामचन्द्र के अनेक ग्रन्थ प्राप्त होते हैं जिनमें नाटकों की संख्या अधिक है। इनके ११ नाटकों के उबरण 'नाट्यदर्पण' में प्राप्त होते हैं। इन्हें 'प्रबन्धशतकर्ता' कहा जाता है। दोनों ही पाचार्य गुजरात के तीन राजाओं-सिवराज, कुमरपाल तथा अजयपाल के समय में विद्यमान थे। इनका समय १२ वीं शताब्दी है। कहा जाता है कि अजयपाल के आदेश से रामचन्द्र को मृत्युदण्ड मिला था। 'नाट्यदर्पण' नाट्यशास्त्र का अत्यन्त महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसकी रचना कारिकाशैली में हुई है जिस पर स्वयं ग्रन्थकार ने वृत्ति लिखी है। ग्रन्थ चार विवेक ( अध्याय ) में विभक्त है। प्रथम विवेक में नाटक के तत्वों का विवेचन है तथा द्वितीय में प्रकरणादि रूपक के नी भेद वर्णित हैं। तृतीय विवेक में नाट्यवृत्ति, अभिनय एवं रसों का विस्तृत विवेचन एवं चतुर्थ में नायक-नायिका-भेद, स्त्रियों के अलंकार तथा उपरूपक के भेदों का वर्णन है। इसमें रस को केवल सुसारमक न मानकर दुःखात्मक भी सिद्ध किया गया है। इसमें लगभग ३५ ऐसे नाटकों के