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धनन्जय ]
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[धनब्जय
बानकीपरिणय तथा चित्ररत्नाकर प्रकाशित हो चुके हैं। द्रौपदीपरिणयचम्पू का प्रकाशन श्रीवा णी विलास प्रेस, श्रीरंगम् से हो चुका है। यह चम्पू ६ आश्वासों में विभाजित है। इसमें पांचाली के स्वयंवर से लेकर धृतराष्ट्र द्वारा पाण्डवों को आधा राज्य देने तथा युधिष्ठिर के राज्य करने तक की घटनायें वर्णित हैं। इसकी कथा का बाधार महाभारत के आदिपर्व की एतद्विषयक घटना है। कवि ने अपनी ओर से कोई परिवर्तन नहीं किया है। अन्य के प्रत्येक अध्याय में कवि-परिचय दिया गया है
पुत्रं चक्रकवि गुणैकवसतिः श्रीलोकनाथः सुधीरम्बा सा च पतिव्रता प्रसुषुवे यं मानितं सूरिभिः । तस्याभूद् द्रुपदात्मजापरिणये चम्पू-प्रबन्धे महा
नाश्वासः प्रथमो विदर्भतनया पाणिग्रहभ्रातरि ॥ पृ० १७ आधारग्रन्थ-चम्पू-काव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ. छविनाथ त्रिपाठी।
धनञ्जय-नाट्यशास्त्र के आचार्य । इन्होंने 'दशरूपक' नामक सुप्रसिद्ध नाट्यशास्त्रीय ग्रन्थ की रचना की है [दे० दशरूपक]। इनका समय दशमशताब्दी का अन्तिम चरण है। धनन्जय के पिता का नाम विष्णु एवं भाई का नाम धनिक था । धनिक ने 'दशरूपक' की 'अवलोक' नामक टीका लिखी है जो अपने में स्वतन्त्र ग्रन्थ है। परमारवंशी राजा मुन्ज के दरबार में दशरूपक का निर्माण हुआ था। मुज का शासन काल ९७४ से ९९४ ई० तक है। स्वयं लेखक ने भी इस तथ्य का स्पष्टीकरण किया है
विष्णोः सुतेनापि धनंजयेन विद्वन्मनोरागनिबन्धहेतुः ।
आविष्कृतं मुजमहीशगोष्ठीवैदग्ध्यभाजा दशरूपमेतत् ॥ दशरूपक ४८६ 'दशरूपक' में चार प्रकाश एवं तीन सौ कारिकायें हैं। इस पर धनिक की व्याख्या के अतिरिक्त बहुरूप मिश्र की भी टीका प्राप्त होती है। धनिक के 'अवलोक' पर भी नृसिंह की टीका है। इन्होंने भोजकृत 'सरस्वतीकण्ठाभरण' की भी टीका लिखी है। दशरूपक में रूपक सम्बन्धी प्रमुख प्रश्नों पर विस्तारपूर्वक विचार किया गया है और रस के सम्बन्ध में अनेक नवीन तथ्य प्रकट किये गए हैं। धनन्जय एवं धनिक दोनों ही ध्वनि विरोधी आचार्य हैं। ये रस को व्यंग न मान कर भाव्य मानते हैं। अर्थात् इनके अनुसार रस और काव्य का सम्बन्ध भाव-भावक का है। न रसादीनांकाव्येन सह व्यंग्यव्यंजकभावः किं तर्हि भाव्यभावकसम्बन्धः । काव्यं हि भावकं भाव्या रसादयः । अवलोकटीका, दशरूपक ४।३० । ___इन्होंने शान्त रस को नाटक के लिए अनुपयुक्त माना है क्योंकि शम की अवस्था में व्यक्ति की लौकिक क्रियाएँ लुप्त हो जाती हैं, अतः उसका अभिनय संभव नहीं है। इनकी यह भी मान्यता है कि रस का अनुभव दशंक या सामाजिक को होता है अनुकार्य को नहीं।
१५ सं० सा०