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वेदाङ्ग ]
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[ वेदाङ्ग
तीव्र
प्रवहमान है। वैदिकयुगीन षियों ने प्रकृति के बाह्य सौन्दर्य पर मुग्ध होकर अपने हृदय की भावधारा की जो अभिव्यक्ति की है वह वैदिक साहित्य की अमूल्य निधि है । प्रकृति के कोमल एवं रौद्र रूपों को देखते हुए उन पर दिव्यत्व का आरोप किया और अपने योग-क्षेम की कामना कर उनकी कृपा की याचना की । तद्युगीन आर्यों के जीवन में प्राकृतिक शक्तियाँ नित्य योग देती थीं । वरुण, सविता, उषा, अभि, इन्द्र आदि के प्रति उनके भावोद्गारों में उत्कृष्ट कोटि का काव्यतत्त्व विद्यमान है जिनमें रस, अलंकार छन्द-विधान एवं संगीततत्त्व की अपूर्व छटा दिखाई पड़ती है । चिरकुमारी उषा के अधखुले लावण्य को देखकर उनके हृदय में जो भावाभिव्यक्ति हुई है उसमें भावना और कल्पना का सघन तथा संश्लिष्ट आवेग प्रस्फुटित हुआ है । क्रमशः वैदिक काव्य में चिन्तन तत्त्व का प्रवेश होता गया और 'कस्मै देवाय हविषा विधेम' के द्वारा वैदिक ऋषियों ने अपनी रहस्यमयी वृत्ति की अभिव्यक्ति की । वैदिक सूक्तों में, नाना प्रकार के देवताओं का यज्ञ में आवाहन करने के लिए नाना प्रकार के छन्दों का विधान किया गया है। इन सूक्तों में भावों का वैविध्य तथा काय कला का भव्य एवं रुचिकर रूप अभिव्यक्त हुआ है । उषा सम्बन्धी मन्त्रों में सौन्दर्यभावना का आधिक्य है, तो इन्द्र-विषयक मन्त्रों में तेजस्विता का भाव स्पन्दित है। अभि के वर्णन में स्वाभाविकता प्रदर्शित की गयी है, तो वरुण के वर्णन में हृदय के मधुर एवं कोमल भावों की व्यंजना है ।
आधारग्रन्थ- वैदिक साहित्य और संस्कृति - पं० वलदेव उपाध्याय ।
अर्थ जानने एवं उसके कर्म
वेदाङ्ग - वेदाङ्ग ऐसे ग्रन्थों को कहते हैं जो वेद का काण्ड में सहायक हों । वेद का वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने के लिए वेदाङ्गों की रचना हुई है । ऐसे ग्रन्थों के ६ वर्ग हैं - शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष । अङ्ग का अर्थ उपकारक होता है । वेद का अज होने से इनकी उपयोगिता असंदिग्ध है। वैदिक मन्त्रों का शुद्ध उच्चारण करने, कर्मकाण्ड का शुद्ध रूप से प्रतिपादन करने, वैदिक साहित्य में उपन्यस्त शब्दों का निर्माण एवं उनकी शुद्धता का निर्णय करने, प्रत्येक वैदिक मन्त्र के छन्दों का ज्ञान प्राप्त करने, यज्ञ-सम्पादन का विशिष्ट समय जानने एवं वैदिक शब्दों के अर्थबोध के लिए छह पृथक् शास्त्रों की उद्भावना हुई जिससे उपर्युक्त सभी समस्याओं का निराकरण हुआ। इन्हें ही
वेदाङ्ग कहा गया ।
रहता है। इसमें
१. शिक्षा - स्वर एवं वर्णों के उच्चारण का नियम शिक्षा में उदात्त, अनुदात्त एवं स्वरित इन तीनों स्वरों की उच्चारण-विधि का वर्णन होता है । शिक्षाग्रन्थों की संख्या बहुल है, जिनमें आधुनिक ध्वनिविज्ञान का वैज्ञानिक अध्ययन किया गया है [ दे० शिक्षा ]। २. कल्प - वेदों का मुख्य उद्देश्य है वैदिक कर्मकाण्ड तथा यज्ञों का विधान करना । वैदिक कर्मकाण्ड के विस्तार को देखते हुए उसे सूत्रबद्ध करने के लिए कल्पों की रचना हुई है । कल्प में यज्ञ के प्रयोगों का समर्थन किया जाता है । प्रत्येक वेद के पृथक्-पृथक् कल्प हैं, जिनके चार विभाग किये गए हैंक - श्रौतसूत्र - इनमें वेदविहित दर्शपूर्णमास प्रभुति नाना प्रकार के यज्ञों का प्रतिपादन