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ऐतिहासिक महाकाव्य ]
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[ऐतिहासिक महाकाव्य
ऐतिहासिक महाकाव्य-संस्कृत में इतिहास को आधार बना कर लिखे गए काव्यों की संख्या बहुत अधिक है। ऐतिहासिक कथावस्तु के आधार पर निर्मित महाकाव्य पृथक् वर्ग का साहित्य उपस्थित करते हैं । 'राजकीय दान और समारोहों के अवसर पर रचित प्रशंसात्मक काव्यों से ही इस वर्ग की उत्पत्ति हुई थी जो बाद में शैली और काव्य-रूप के प्रभाव के कारण महाकाव्य के आकार तक बढ़ गए।' संस्कृत साहित्य का नवीन इतिहास पृ० ३००-३०१ । कवियों ने अपने आश्रयदाताओं के यश को स्थायी बनाने के लिए उनके वृत्त को मनोरम शैली में लिखा है। इन काव्यों की गणना शुद्ध साहित्य में ही होती है, इतिहास में नहीं। इनमें किसी आश्रयदाता विशेष के जीवन की ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन होता है अथवा उनकी वंश-परम्परा की कहानी प्रस्तुत की जाती है। इन ग्रन्थों में ऐतिहासिक तथ्यों की अपेक्षा भाषासौष्ठव तथा वर्णवैचित्र्य का प्राधान्य रहता है। ऐतिहासिक महाकाव्यों के रचयिता अधिकांशतः राज्याश्रित होते थे; अतः वे ऐसी घटनाओं या तथ्यों के समावेश करने में पूर्णतया स्वतन्त्र नहीं थे, जो उनके आश्रयदाता की रुचि के प्रतिकूल हों। इनमें मुख्यतः उच्चकोटि का काव्य-तत्त्व विद्यमान रहता था। अभिलेखों में कतिपय राजाओं की उत्कीर्ण प्रशस्तियां इतिहास का सुन्दर रूप प्रस्तुत करती हैं। ऐसे ऐतिहासिक काव्यों में पद्मगुप्त परिमल रचित 'नवसाहसाङ्कचरित', विल्हण का 'विक्रमांकदेवचरित', कल्हणकृत 'राजतरंगिणी' आदि ग्रन्थ उत्कृष्ट कोटि के हैं। 'विक्रमांकदेवचरित' में धारा के प्रसिद्ध राजा भोजराज के पिता सिन्धुराज एवं शशिप्रभा की प्रणयकथा वर्णित है। इसकी रचना १००५ ई० में हुई थी। कल्हण को 'राजतरंगिणी' में आठवीं शताब्दी के शंकुक कवि का 'भुवन अभ्युदय' नामक महाकाव्य का उल्लेख है, जो उपलब्ध नहीं होता। इसमें मम्म एवं उत्पल दो सामन्तों के बीच हुए भीषण संघर्ष की चर्चा थी। संभवतः यह ग्रन्थ प्रथम ऐतिहासिक महाकाव्य होता। महाकवि विल्हण ने १०८८ ई. में 'विक्रमांकदेवचरित' नामक महाकाव्य की रचना की। [ दे० विल्हण ] इसमें विक्रमादित्य एवं उनके वंश का विस्तृत वर्णन है तथा ऐतिहासिक विवरणों एवं तथ्यों की दृष्टि से यह उत्कृष्ट कोटि का काव्य है। महाकवि कल्हणकृत 'राजतरंगिणी' संस्कृत ऐतिहासिक काव्य की महान् उपलब्धि है। इसमें काश्मीर के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, साहित्यिक एवं भौगोलिक तथ्यों का रसात्मक वर्णन है । इसका रचनाकाल १०५० ई० है। [दे० कल्हण ] जैन आचार्य हेमचन्द्रकृत 'कुमारपालचरित' सुन्दर ऐतिहासिक काव्य है। इसमें कुमारपाल तथा उनके पूर्वज गुजरात के राजाओं का वर्णन है। इनका समय १०८९.से ११७३ ई० है। [ दे० हेमचन्द्र ] विक्रम की तेरहवीं शताब्दी में सोमेश्वर ने 'सुरथोत्सव' नामक महाकाव्य में गुजराजनरेश वस्तुपाल का चरित, वणित किया था। अरिसिंह कृत 'सुकृतसंकीर्तन' नामक काव्य में राजा वस्तुपाल का जीवनचरित ग्यारह सर्गों में वर्णित है। रणथम्भौर के राजा हम्मीर के शौर्य का चित्रण नयचन्द्रसूरि नामक कवि ने 'हम्मीर महाकाव्य' में किया है। [दे. हम्मीरमहाकाव्य ] जयानक कवि कृत 'पृथ्वीराजविजय' नामक महाकाव्य उनकी समसामयिक रचना है [ दे० पृथ्वीराजविजय ] सर्वानन्द का