________________
J
भट्टलोहट]
(३२३)
[ भट्टलोट
गुरवः के रूप में उद्धृत किया है। इनके उल्लेख से ज्ञात होता है कि भट्टतीत ने 'नाटयशास्त्र' की टीका लिखी थी। पठितोदेशक्रमस्तु अस्मदुपाध्यायपरम्परागत । भट्टतोत का रचनाकाल ९५० से ९८० के बीच माना जाता है। भट्टतौत के मत से मोक्षप्रद होने के कारण शान्तरस सभी रसों में श्रेष्ठ है-मोक्षफलत्वेन चायं (शान्तोरसः) परमपुरुषार्थनिष्ठत्वात्सर्वरसेभ्यः प्रधानतमः। सचायमस्मदुपाध्यायभट्टतौतेन काव्यकौतुके अस्माभिश्च तद्विवरणे बहुतरकृतनिर्णयः पूर्वपक्षसिद्धान्त इत्यलं बहुना।' लोचन पृ० २२१ कारिका ३. २६ । हेमचन्द्र ने काव्यानुशासन में काव्यकौतुक के तीन श्लोक उद्धृत किये हैं
'नागऋषिकविरित्युक्तमृषिश्च किला दर्शनात् । विचित्र भावधर्माशतत्वप्रख्या च दर्शनम् ॥ स तत्वदर्शनादेवशास्त्रोषु पठितः कविः। दर्शनावर्णनाच्चाथरूडालोके कवि श्रुतिः ।। तथाहि दर्शने स्वच्छेनित्येप्यादिकविमुंनि(नेः?)। नोदिता कविता लोके यावज्जाता न वर्णना।'
काव्यानुशासन पृ० ३१६ मैसूर संस्करण । आधारग्रन्थ-संस्कृतकाव्यशास्त्र का इतिहास-डॉ. पा० वा० काणे।
भट्टलोल्लट-काव्यशास्त्र के आचार्य। ये भरतकृत 'नाट्यशास्त्र' के प्रासन टीकाकार एवं उत्पत्तिवाद. नाम रससिद्धान्त के प्रवर्तक हैं । सम्प्रति इनका कोई अन्य उपलब्ध नहीं होता पर अभिनवभारती, काव्यप्रकाश (४५), काव्यानुशासन (पृ. ६७), ध्वन्यालोकलोचन, (पृ. १८४), महिनाप की तरला टीका (पृ० ८५, ५८) तथा गोविन्द ठक्कुर कृत काव्यप्रदीप (४५) इनके विचार एवं उद्धरण प्राप्त होते हैं। राजशेखर तथा हेमचन्द्र के ग्रन्थों में इनके कई श्लोक 'भापराविति' के नाम से उपलब्ध होते हैं, जिससे शात होता है कि इनके पिता का नाम अपराजित था। नाम के आधार पर इनका काश्मीरी होना सिद्ध होता है। ये उबट के परवर्ती थे, क्योंकि अभिनवगुप्त ने उद्भट के मत का खण्डन करने के लिए इनके नाम का उल्लेख किया है। भरतसूत्र के व्याख्याकारों में लोहट का नाम प्रथम है। इनके अनुसार रस की उत्पत्ति अनुकार्य में या मूल पात्रों में होती है और गौणरूप में अनुसन्धान के कारण नट को भी इसका अनुभव होता है। "विभाव, अनुभाव आदि के संयोग से अनुकार्य राम आदि में रस की उत्पत्ति होती है। उनमें भी विभाव सीता आदि मुख्य रूप से इनके उत्पादक होते हैं। अनुभाव उस उत्पन्न हुए रस को बोधित करने वाले होते हैं और व्यभिचारीभाव उस उत्पन्न रस के परिपोषक होते हैं । अतः स्थायीभावों के साथ विभावों का उत्पाद-उत्पादक, अनुभावों का गम्य-गमकं और व्यभिचारियों का पोष्य-पोषक सम्बन्ध होता है।' काव्यप्रकाश व्याख्या आ० विश्वेश्वर पृ० १०१। काव्यमीमांसा में भट्टलोबट के तीन स्लोक उद्धत है-"बस्तु नाम निस्सीमा असाथः। किन्तु रसपत एवं निबन्यो