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बाणभट्ट ]
(३०१ )
[बाणभट्ट
मिला। कुछ दिनों तक वहाँ रहकर ये अपनी जन्मभूमि में आये और इन्होंने लोगों के आग्रह पर 'हर्षचरित' की रचना कर महाराज हर्षवर्धन की जीवन-गाथा सुनाई। 'हर्षचरित' की रचना करने के बाद इन्होंने अपने महान् ग्रन्थ 'कादम्बरी' का प्रणयन किया किन्तु इनके जीवन काल में यह ग्रन्थ पूर्ण न हो सका । उनको मृत्यु के पश्चात् उनके पुत्र ने 'कादम्बरी' के उत्तर भाग को पूरा किया और पिता की शैली में ही ग्रन्थ की रचना की। कुछ विद्वानों का यह भी कहना है कि कई स्थलों में बाणतनय ने अपने पिता से भी अधिक प्रौढ़ता प्रदर्शित की है। बाण की सन्तति के सम्बन्ध में किसी प्रकार का उल्लेख नहीं है। धनपाल की 'तिलकमब्जरी' में बाणतनय पुलिध्र का वर्णन है जिसके आधार पर विद्वानों ने इसका नाम पुलिनभट्ट निश्चित किया है। केवलोऽपि स्फुरन् बाणः करोति विमदान् कवीन् । किं पुनः क्लप्तसन्धानः पलिन्ध्रकृतसन्निधिः ।।
___ 'कादम्बरी के उत्तर भाग में बाणतनय ने पुस्तक-रचना के सम्बन्ध में अपना विचार व्यक्त किया है। इसने बताया है कि पिता के स्वर्गवासी होने पर उनका कथा-प्रबन्ध अपूर्ण रह गया जिससे सहृदय अत्यन्त दुःखित हुए। सज्जनों के दुःख को देखकर मैंने इसका लेखन प्रारम्भ किया है, कवित्व के दपं से नहीं। पिता जी के प्रभाव से ही मैं उनकी तरफ से लिख सका हूँ। 'कादम्बरी' का स्वाद लेकर तो मैं बिलकुल मतवाला हो गया हूँ। याते दिवं पितरि तद्वचसैव साध विच्छेदमाप भुवि यस्तु कथाप्रबन्धः । दुःखं सतां तदसमाप्तिकृतं विलोक्य प्रारब्ध एष च मया न कवित्व. दर्यात् ।। गद्ये कृतेऽपि गुरुणा तु तदान्तराणि यनिर्गतानि पितुरेव स मेऽनुभावः । + + + कादम्बरीरसभरेण समस्त एवं मत्तो न किञ्चिदपि चेतयते जनोऽयम् । भीतोऽमि यन्त्र रसवर्णविवजितेन तच्छेषमात्मवचसाप्यनुसंदधानः ॥ बाणकृत प्रसिद्ध तीन ग्रन्थ हैं'हर्षचरित', 'कादम्बरी' एवं 'चण्डीशतक'। 'हर्षचरित' में आठ उच्छवास हैं और इसमें महाराज हर्षवर्धन की जीवन-गाथा वर्णित है। यह संस्कृत की सर्वाधिक प्राचीन आख्यायिका है [ दे० हर्षचरित ] । कादम्बरी की कथा काल्पनिक है और शास्त्रीय दृष्टि से इसे कथा कहा जाता है [ दे० कादम्बरी] । 'चण्डीशतक' में कवि ने नग्धरा छन्द में भगवती दुर्गा की स्तुति एक सौ पदों में लिखी है। इनकी अन्य दो कृतियां भी प्रसिद्ध हैं-'पार्वती-परिणय' और 'मुकुटताडितक' पर विद्वान् इन्हें किसी अन्य बाणभट्ट नामधारी लेखक की रचना मानते हैं। बाणभट्ट के सम्बन्ध में अनेक कवियों की प्रशस्तियां उपलब्ध होती हैं, उनका विवरण इस प्रकार है
(१) जाता शिखण्डिनी प्राग् यथा शिखण्डी तथावगच्छामि । प्रागल्भ्यमधिकमाप्तुं वाणी बाणो बभूवेति ॥ आर्यासप्तशती ३७ । (२) बाणस्य हर्षचरिते निशितामुदीक्ष्य शक्ति न केऽत्र कवितास्त्रीमदं त्यजन्ति । मान्द्यं न कस्य च कवेरिह कालिदासवाचां रसेन रसितस्य भवत्यधृष्यम् ॥ (३) वागीश्वरं हन्त भजेऽभिनन्दमर्थेश्वरं वाक्पतिराजमीडे । रसेश्वरं स्तौमि च कालिदासं बाणं तु सर्वेश्वरमानतोऽस्मि । उदयसुन्दरी-सोड्ढल । ( ४ ) कादम्बरीसहोदर्या सुधया वै बुधे हृदि । हर्षाख्यायिकयाऽख्या