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पपगुप्त परिमल]
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[पद्मपुराण
डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल । १३ पतम्जलिकालीन भारत-डॉ० प्रभुदयाल अग्निहोत्री। १४ संस्कृत व्याकरणशास्त्र का इतिहास-भाग १, २, पं० युधिष्ठिर मीमांसक। १५ संस्कृत व्याकरण का संक्षिप्त इतिहास-पं० रमाकान्त मिश्र।
पद्मगुप्त परिमल-ये संस्कृत के प्रसिद्ध ऐतिहासिक महाकाव्य 'नवसाहसासचरित' के प्रणेता हैं । इसमें धारानरेश भोजराज के पिता सिन्धुराज या नवसाहसाङ्क का शशिप्रभा नामक राजकुमारी से विवाह वर्णित है । परिमल सिन्धुराज के ज्येष्ठ भ्राता राजा मुंज के सभापण्डित थे। यह ग्रन्थ १००५ ई० के आसपास लिखा गया था। इसमें १८ सगं हैं जिसके १२ वें सर्ग में सिन्धुराज के समस्त पूर्वपुरुषों ( परमारवंशी राजाओं) का कालक्रम से वर्णन है, जिसकी सत्यता की पुष्टि शिलालेखों से होती है। इसमें कालिदास की रससिद्ध सुकुमार मार्ग की पद्धति अपनायी गयी है। यह इतिहास एवं काव्य दोनों ही दृष्टियों से समान रूप से उपयोगी है।
[हिन्दी अनुवाद सहित चौखम्बा विद्याभवन से प्रकाशित ] - पद्मपुराण-इसे पुराणों में क्रमानुसार द्वितीय स्थान प्राप्त है। यह बृहदाकार पुराण लगभग पचास हजार श्लोकों से युक्त है तथा इसमें कुल ६४१ अध्याय हैं। इसके दो संस्करण प्राप्त हैं-देवनागरी तथा बंगाली। आनन्दाश्रम से सन् १८९४ ई० में बी० एन० माण्डलिक द्वारा यह पुराण चार भागों में प्रकाशित हुआ था जिसमें छह खण हैं-आदि, भूमि, ब्रह्मा, पाताल, सृष्टि एवं उत्तरखण्ड । इसके उत्तरखण्ड में इस बात का उल्लेख है कि मूलतः इसमें पाँच ही खण्ड थे, छह खण्डों की कल्पना परवर्ती है । 'पद्मपुराण' की श्लोक संख्या भिन्न-भिन्न पुराणों में भिन्न-भिन्न है । 'मत्स्यपुराण' के ५३ वें अध्याय में इसकी श्लोक संख्या ५५ हजार कही गयी है, किन्तु 'ब्रह्मपुराण' के अनुसार इसमें ५९ हजार श्लोक हैं। इसी प्रकार खण्डों के क्रम में भी मतभेद दिखाई पड़ता है । बंगाली संस्करण हस्तलिखित पोथियों में ही प्राप्त होता है जिसमें पांच खम मिलते हैं।
१. सृष्टिखण्ड-इसका प्रारम्भ भूमिका के रूप में हुआ है जिसमें ८२ अध्याय हैं। इसमें लोमहर्षण द्वारा अपने पुत्र उग्रश्रवा को नैमिषारण्य में एकत्र मुनियों के समक्ष पुराण सुनाने के लिए भेजने का वर्णन है तथा वे शौनक ऋषि के अनुरोध पर ऋषियों को 'पपपुराण' की कथा सुनाते हैं । इसके इस नाम का रहस्य बताया गया है कि इसमें सृष्टि के प्रारम्भ में कमल से ब्रह्मा की उत्पत्ति का कथन किया गया था। सृष्टिखण्ड भी पांच पर्वो में विभक्त है । इसमें इस पृथ्वी को पद्म कहा गया है तथा कमल पुष्प पर बैठे हुए ब्रह्मा द्वारा विस्तृत ब्रह्माण्ड की सृष्टि का निर्माण करने के सम्बन्ध में किये गए सन्देह का इसी कारण निराकरण किया गया है कि पृथ्वी कमल है
तच्च पचं पुराभूतं पृथिवीरूपमुत्तमम् ।
यत्पन सा रसादेवी पृथिवी परिचक्षते ॥ सृष्टिखण्ड अध्याय ४० । क. पौष्करपर्व-इस खण्ड में देवता, पितर, मनुष्य एवं मुनि सम्बन्धी नौ प्रकार की सृष्टि का वर्णन किया गया है। सृष्टि के सामान्य वर्णन के पश्चात् सूर्यवंश तथा