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उदर सन्देश ]
भक्तिप्रीतिप्रणयसहितं मानवम्भाशोतं. चेतोस्माकं, गुणवगुणं मोदुहां देहमेतत् । विक्रीतं ते युगपदुभसं स्वीकृतं च स्वयाको हल्लासि त्यजसि च वपु ष कोऽयं विचारः ।।
आधारग्रन्थ-१. संस्कृत के सन्देश काव्य-डॉ० रामकुमार आचार्य : २. हिस्ट्री ऑफ संस्कृत क्लासिकल लिटटेवर - दासगुप्त एवं दे...
उद्धव सन्देश-इस सन्देशकाव्य के रचयिता प्रसिद्ध वैष्णव आचार्य रूप गोस्वामी हैं । [ इनके परिचय के लिए दे० रूप गोस्वामी ] यह काव्य 'श्रीमद्भागवत' के दशम स्कन्ध की एतद्विषयक कथा पर आश्रित है। इसमें श्रीकृष्ण अपना सन्देश उद्धव द्वारा गोपियों के पास भेजते हैं । इस काव्य का निर्माण 'मेघदूत' के अनुकरण पर किया गया है जिसमें कुल १३१ श्लोक हैं। कृष्ण की विरहावस्था का वर्णन, दूतत्व करने के लिए उनकी उद्धव से प्रार्थना, मथुरा से गोकुल तक के मार्ग का वर्णन, यमुना-सरस्वती सङ्गम, अम्बिका कानन, अक्रूर तीर्थ, कोटिकारव्यप्रदेश, मैट्टिकरवनं, कालियहद आदि का वर्णन तथा राधा की विरहविवशता एवं श्रीकृष्ण के पुनर्मिलन का आश्वासन आदि विषय इस काव्य में विशेषरूप से वणित हैं : सम्पूर्ण काव्य मन्दाक्रान्ता वृत्त में रचित हैं
और कहीं-कहीं मेघदूत के श्लोकों की छाप दिखाई पड़ती है। विप्रलम्भश्रृंगार के अनुरूप कोमलकान्त पदावली का संनिवेश इस काव्य की अपनी विशेषता है । श्रीकृष्ण के भूख से राधा की विरहावस्था का वर्णन देखिए-
RATE सा पल्यंके किशलयदलैः कल्पिते लत्र सुप्ता गुप्ता नीरस्तबकित दृशॉ चक्रवाल सखीनाम् । द्रष्टव्या ते कशिमकलिका कण्ठनालोपकण्ठस्पन्वेनान्तर्वपुरनुमितप्राणसङ्गा वराङ्गी ॥ ११७
रूप गोस्वामी का दूसरा सन्देशकाव्य 'हंसदूत' है जिसमें 'श्रीमद्भागवत' की कथा के आधार पर राधा हंस के द्वारा श्रीकृष्ण के पास प्रेम-सन्देशा भिजवाती है। इस काव्य के प्रारम्भ में श्रीकृष्ण की बदना की गई है। इसकी शैली मधुर एक सरस है तम वैदर्भी रीति एवं माधुर्य गुण दोनों का समावेश है।
आधारमन्थ-संस्कृत के सन्देशकाव्य-डॉ० रामकुमार आचार्य
उन्ट: अलंकारसास्त्र के आचार्य । दाहोंने 'काव्यालंकारसारसंग्रह' नामक प्रसिद्ध अलंकार - ग्रन्थ की रचना की है। [दे० काव्यालं लस्सारसंग्रह ] नाम से ये काश्मीरी ब्राह्मण सिद्ध होते हैं। इनका समय अमः शताब्दी का अन्तिम चरण एवं नवम शताब्दी का प्रथम चरण माना जाता है। कल्हण की रािजतरंगिणी' से ज्ञातहोता है कि ये काश्मीरनरेश जयापीड़ के सभापण्डित थे और उन्हें प्रतिदिमा एक लाख दीनार वेतन के रूप में प्राप्त होता या विद्धान कीनारलक्षेण प्रत्यहं कृत्तवेतनः । भट्टोभूदुइटस्तस्या भूमिभ: सभापतिः ॥४१४९५
जयापीड़ा का शासनकाल ७७९ ई० से १३ ईप तक माना जाता है। अभी तक इनके तीन मन्थों का विवरण प्राप्त होता है। मामह-विवरण, कुमारसम्भव काव्या. एवं काव्यालंकारसारसंग्रह । भामह-विवरण- भामहः कृतः काव्यालंकार' की टीका है जो सम्प्रति अनुपलब्ध है। [कहा जाता है कि इटली से यह ग्रंथ प्रकाशित हो गया है। पर भारत में अभी तक नहीं आ सका है] इस ग्रस्थ का उल्लेख प्रतिहारेन्दुराज ते अपनी 'लघुविवृत्ति' में किया है-विशेषोक्तिलक्षणे च भामहविधरणे भट्टोझटेन एकदेश