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मित्रमित्र ]
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[ मीनाक्षीकल्याण चम्पू
'मालविका मिमित्र' में पांच अंक हैं, पर कथावस्तु के संविधान की दृष्टि से यह नाटक न होकर नाटिका है। इसमें कथावस्तु राजप्रासाद एवं प्रमदवन के सीमित क्षेत्र में ही घटित होती है तथा इसका मुख्य वयं विषय प्रणय-कथा है। शास्त्रीय दृष्टि से अमिमित्र धीरोदात्त नायक है, पर उसे धीरललित ही माना जायगा। इसका अंगी रस शृङ्गार है तथा विदूषक की उक्तियों के द्वारा हास्यरस की सृष्टि हुई है। इसमें पांच अंकों के अतिरिक्त अन्य तत्व नाटिका के ही हैं। नाटिका में चार अंक होते हैं। यह ऐतिहासिक नाटक है। इसमें कवि ने कई ऐतिहासिक घटनाओं का कुशलतापूर्वक समावेश किया है। इसकी भाषा मनोहर तथा चित्ताकर्षक है और बीच-बीच में विनोदपूर्ण श्लेषोक्तियों का समावेश कर संवाद को अधिक आकर्षक बनाया गया है ।
मित्र मिश्र-ये संस्कृत के राजधर्म निबन्धकार हैं। इन्होंने 'वीरमित्रोदय' नामक वृहद् निबन्ध का प्रणयन किया था जिसमें धर्मशास्त्र के सभी विषयों के अतिरिक्त राजनीतिशास्त्र का भी निरूपण है। इसी ग्रन्थ का एक अंश 'राजनीतिप्रकाश' है जिसमें राजशास्त्र का विवेचन किया गया है । मित्र मिश्र ओड़छानरेश श्री वीरसिंह के आश्रित थे जिनका शासनकाल सं० १६०५ से १६२७ तक था। उन्हीं से प्रेरणा ग्रहण कर 'राजनीतिप्रकाश' की रचना हुई थी। इनके पिता का नाम परशुराम पण्डित एवं पितामह का नाम हंसपण्डित था। मित्रमित्र ने याज्ञवल्क्यस्मृति के ऊपर भाष्य की भी रचना की है। 'वीरमित्रोदय' २२ प्रकाश में विभाजित है. जिनके नाम इस प्रकार हैंपरिभाषा, संस्कार, आह्निक, पूजा, प्रतिष्ठा, राजनीति, व्यवहार, शुद्धि, श्राद्ध, तीर्थ, दान, व्रत, समय, ज्योतिष, शान्ति, कर्मविपाक, चिकित्सा, प्रायश्चित्त, प्रकीर्ण, लक्षण, भक्ति तथा मोक्ष । इस ग्रन्थ की रचना पद्यों में हुई है और सभी प्रकाश अपने में विशाल पन्य हैं। व्रतप्रकाश एवं संस्कारप्रकाश में श्लोकों को संख्या क्रमशः २२६५० एवं १७४१५ है। 'राजनीतिप्रकाश' में राजशास्त्र के सभी विषयों का वर्णन है। इसमें वर्णित विषयों की सूची इस प्रकार है-राजशब्दार्थविचार, राजप्रशंसा, राज्याभि-कविहितकाल, राज्याभिषेकनिषितकाल, राज्याधिकार-निर्णय, राज्याभिषेक, राज्याभिषेकोतरकृत्य, प्रतिमास-प्रतिसंवत्सराभिषेक, राजगुण, विहितराजधर्म, प्रतिसिद्धराजधर्म अनुजीविवृत्त, दुर्गलक्षण, दुगंगृहनिर्माण, राष्ट्र, कोश, दण्ड, मित्र, षाड्गुण्यनीति, युद्ध, युद्धोपरान्त व्यवस्था, देवयात्रा, इन्द्रध्वजोड्रायविधि, नीराजशान्ति, देवपूजा,, लोहाभिसारिकविधि आदि। ___ आधारग्रन्थ-१. भारतीय राजशास्त्र प्रणेता-डॉ. श्यामलाल पाण्डेय । २. धर्मशास्त्र का इतिहास ( हिन्दी अनुवाद ) भाग-१ पी०वी० काणे।
मीनाक्षीकल्याण चम्पू-इस चम्पू काव्य के रचयिता का नाम कन्दुकुरी नाप है । ये तेलुगु ब्राह्मण थे। इसमें कवि ने पाण्डदेशीय प्रथम नरेश कुलशेखर (मलयध्वज) की पुत्री मीनाक्षी का शिव के साथ विवाह का वर्णन किया है। मीनाक्षी स्वयं पार्वती हैं । इस चम्पू काव्य की सण्डित प्रति प्राप्त हुई है जिसमें इनके केवल दो ही आश्वास हैं। प्रारम्भ में गणेश तथा मीनाक्षी की वन्दना की गयी है। यह ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है और इसका विवरण ही० सी० मद्रास १९६७ में प्राप्त होता है।