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गौतम]
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[गौरी मायूर माहात्म्य चम्पू
इति श्रीविद्वत्कदम्बहेरम्बसकलविपुलकविकुलतिलकमहाराष्ट्रदेशवारिधिसुधानिधिभारद्वाजकुलकासारराजहंसकाशीस्थजगद्गुरुश्रीमद्दीक्षितकविसोमराजसूरिवरसूनुश्रीकामराजसूरिवरतनयश्रीब्रजराजकविराजात्मकबालकविश्रीजीवराजविरचितायां चम्पूविहारसमाख्यायां स्वनिर्मितगोपालचम्पूव्याख्यायां पूर्वाधं समाप्तम् ।
आधार ग्रन्थ-चम्पू-काव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ. छविनाथ त्रिपाठी।
गौतम-[समय विक्रम पूर्वचतुर्थ शतक] न्यायसूत्र के रचयिता महर्षि गौतम हैं । दे० न्यायदर्शन ] न्यायशास्त्र के निर्माण का श्रेय इन्हें ही दिया जाता है, यद्यपि इस सम्बन्ध में मत विभिन्नता भी कम नहीं है । 'पपपुराण' (उत्तरखन बध्याय २६६), 'स्कन्दपुराण' ( कालिकाखण्ड, अध्याय १७ ), 'नैषधचरित' (सर्ग १७ ) 'गान्धवंतन्त्र' तथा 'विश्वनाथवृत्ति' प्रभृति प्रन्यों में गौतम को ही न्यायशास्त्र का प्रवर्तक कहा गया पर, ठीक इसके विपरीत कतिपय ग्रन्थों में अक्षपाद को न्यायशास्त्र का रचयिता बतलाया गया है । ऐसे अन्यों में 'न्यायभाष्य', 'न्यायवात्तिकतात्पर्यटीका' तथा 'न्यायमन्जरी' के नाम हैं । एक तीसरा मत कविवर भास का है जिनके अनुसार न्यायशास्त्र के रचयिता मेधातिथि हैं। प्राचीन विद्वानों ने गौतम को ही अक्षपाद कहा है और इस सम्बन्ध में एक कथा भी प्रसिद्ध है । [दे० हिन्दी तर्क भाषा-भूमिका पृ० २०-२१ आ० विश्वेश्वर] पर, आधुनिक विद्वानों ने इस सम्बन्ध में अनेक विवादास्पद विचार व्यक्त किये हैं जिससे यह प्रश्न अधिक उलझ गया है। डॉ० सुरेन्द्रनाथदास गुप्त ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ 'हिस्ट्री ऑफ इणियन फिलॉसफी' भाग २ पृ. ३९३-९४ में गौतम को काल्पनिक व्यक्ति मानकर न्यायसूत्र का प्रणेता अक्षपाद को स्वीकार किया है। पर, विद्वान् इनके मत से सहमत नहीं हैं । 'महाभारत' में गौतम और मेधातिथि को अभिन्न माना गया है।
मेधातिथिमहाप्राज्ञो गौतमस्तपसि स्थितः । शान्तिपर्व, अध्याय २६५।४५ , यहां एक नाम वंशबोधक तथा द्वितीय नामबोधक है। इस समस्या का समाधान न्यायशास्त्र के विकास की दो धाराओं के आधार पर किया गया है जिसके अनुसार प्राचीन न्याय की दो पद्धतियां थीं-अध्यात्मप्रधान एवं तकंप्रधान । इनमें प्रथम धारा के प्रवर्तक गौतम एवं द्वितीय के प्रतिष्ठापक अक्षपाद माने गये हैं। इस प्रकार प्राचीन न्याय का निर्माण महर्षि गौतम और अक्षपाद इन दोनों महापुरुषों के सम्मिलित प्रयल का फल है। हिन्दी तक भाषा-भूमिका पृ० २४ । ___ न्यायसूत्र में पांच अध्याय हैं और प्रत्येक अध्याय दो आह्निकों में विभक्त है । इसमें षोडश पदार्थों का विवेचन है-प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टान्त, सिद्धान्त, अवयव, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितण्डा, हेत्वाभास, छल, जाति एवं निग्रहस्थान । इनके विवरण के लिए दे० न्यायदर्शन । सन्दर्भ-१. भारतीय दर्शन-आ० बलदेव उपाध्याय, २. हिन्दी तकभाषा-आ० विश्वेश्वर ।
गौरी मायूर माहात्म्य चम्पू-इस चम्पू काव्य के रचयिता अप्पा दीक्षित हैं। ये मयूरवरम् के निकट किनपुर के रहने वाले थे। इनका समय सत्रहवीं शताब्दी का अन्तिम एवं अट्ठारहवीं शताब्दी का आदि चरण है। यह चम्पू पांच तरङ्गों में विभक्त