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. काव्यादर्श]
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[काव्यादर्श
है तथा उसकी सोलह योनियों बतलायी गयी हैं। नवम अध्याय में अर्थ के सात प्रकारों का वर्णन एवं मुक्तक तथा प्रबन्ध काव्य का विवेचन है। दशम अध्याय का वयं विषय कवि एवं राजचर्या है। इसमें कवि के गृह, मित्र, परिचारक, लेखक एवं उसकी भाषा की चर्चा की गयी है और इसी क्रम में बतलाया गया है कि कवि किस प्रकार काव्य-पाठ करे। राजाओं के लिए कविगोष्ठियों के आयोजन का भी निर्देश किया गया है। एकादश अध्याय में शब्दहरण का वर्णन है और उसके दोष-गुण वर्णित हैं । द्वादश अध्याय का विषय अर्थ-हरण है और उसके कई प्रकारों का विवेचन है । त्रयोदश अध्याय में अर्थहरण के आलेख्य एवं प्रख्य आदि भेद वर्णित हैं। चतुर्दश से षोडश अध्याय तक कविसमय का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। सप्तदश अध्याय का सम्बन्ध भूगोल से है। इसमें देश-विभाग का वर्णन है जो भारत के प्राचीन भूगोल विद्या का सुन्दर निदर्शन है। अष्टादश अध्याय का नाम कालविभाग है । इसमें प्राचीन भारतीय कालविभाग का निरूपण किया गया है। इस अध्याय में यह भी दिखाया गया है कि कवि किस विषय का किस ऋतु में वर्णन करे। 'काव्यमीमांसा' में वर्णित विषयों को देखकर ज्ञात होता है कि यह विविध विषयों का ज्ञान देनेवाला विशाल ज्ञानकोश है। इस पर पण्डित मधुसूदन शास्त्री ने संस्कृत में 'मधुसूदनी' विवृति लिखी है जो चौखम्बा विद्याभवन से प्रकाशित है। काव्यमीमांसा के दो हिन्दी अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं
आधारग्रन्थ-क. पं० केदारनाथ शर्मा 'सारस्वत' कृत अनुवाद बिहार राष्ट्रभाषापरिषद्, पटना सं० २०११ ख. डॉ० गंगासागरराय कृत अनुवाद चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, १९६४ ई० ।
काव्यादर्श-काव्यशास्त्र का सुप्रसिद्ध ग्रन्थ । इसके रचयिता आ० दण्डी हैं । [दे० आचार्य दण्डी ] यह अलंकार सम्प्रदाय एवं रीतिसम्प्रदाय का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। 'काव्यादर्श' तीन परिच्छेदों में विभक्त है। इसमें कुल मिलाकर ६६० श्लोक हैं। प्रथम परिच्छेद में काव्य-लक्षण, काव्य-भेद-गद्य, पद्य एवं मिश्र, आख्यायिका एवं कथा, वैदर्भी तथा गोडी-मार्ग, दस गुण-विवेचन, अनुप्रास-वर्णन तथा कवि के तीन गुण-प्रतिभा, श्रुति एवं अभियोग का निरूपण है। द्वितीय परिच्छेद में अलंकारों का विशद वर्णन है । इसमें अलंकार की परिभाषा तथा ३५ अलंकारों के लक्षणोदाहरण प्रस्तुत किये गए हैं। वर्णित अलंकार हैं-स्वभावोक्ति, उपमा, रूपक, दीपक, आवृत्ति, आक्षेप, अर्थान्तरन्यास, व्यतिरेक, विभावना, समासोक्ति, अतिशयोक्ति, उत्प्रेक्षा, हेतु, सूक्ष्म लेश, यथासांख्य, प्रेयः, रसवत्, ऊर्जस्वि, पर्यायोक्त, समाहित, उदात्त, अपहनुति, श्लेष, विशेषोक्ति, तुल्ययोगिता, विरोध, अप्रस्तुतप्रशंसा, व्याजोक्ति, निदर्शना, सहोक्ति, परिवृत्ति, आशीः, संकीर्ण एवं भाविक । तृतीय परिच्छेद में यमक एवं उसके ३१५ प्रकारों का निर्देश, चित्रबन्धगोमूत्रिका, सर्वतोभद्र एवं वर्ण नियम, १६ प्रकार की प्रहेलिका एवं दस प्रकार के दोषों का विवेचन है। 'काव्यादर्श' पर दो प्रसिद्ध प्राचीन टीकाएँ हैं-प्रथम टीका के लेखक हैं तरुण वाचस्पति एवं द्वितीय टीका का नाम 'हृदयंगमा' है जो किसी अज्ञात लेखक की रचना है । मद्रास से प्रकाशित प्रो० रङ्गाचार्य