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उत्तररामचरित ]
[ उत्तररामचरित
कवि ने यथासम्भव राम के चरित्र को आदर्श मानव के रूप में चित्रित करने का प्रयास किया है पर वह उनके पूर्वगृहीत देवी रूप से अप्रभावित नहीं रह सका। शम्बूक द्वारा वे भगवान् के रूप में प्रस्तुत किये गये हैं।
सीता-सीता 'उत्तररामचरित' की नायिका एवं राम की सहधर्मिणी हैं। प्रारम्भ में ऋषि अष्टावक्र इनके महत्त्व को प्रदर्शित करते हुए इन्हें पृथ्वी-तनया प्रजापतितुल्य राजा जनक की दुहिता एवं श्रीराम की पत्नी के रूप में सम्बोधित करते हैं।
विश्वम्भरा भगवती भवतीमसूत राजा प्रजापतिसमो जनकः पिता ते । तेषां वधूस्त्वमसि नन्दिनि पार्थिवानां येषां कुलेषु सविता च गुरुवयं च ॥ ११९
सीता जन्म से ही गङ्गा की भाँति पावन हैं तथा पावनता के निकर्ष पर पूर्णतया खरी उतरती हैं। वियोग की अग्नि में तप्त होकर उनकी पावनता भव्य एवं प्रोज्ज्वल हो उठती है । राम स्वयं उनकी पवित्रता की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि 'जन्म से ही पवित्र के लिए अन्य पावनों से क्या ? तीर्थ का जल और अग्नि दूसरी वस्तुओं से पवित्र नहीं किये जाते।'
उत्पत्तिपरिपूतायाः किमस्याः पावनान्तरैः ।
तीर्थोदकं च वह्निश्च नान्यतः शुद्धिमहंतः ॥ २॥१३ सीता, सती, साध्वी आदर्श पत्नी हैं एवं राम के प्रति उनके मन में असीम अनुराग है। राजा जनक भी उनके चरित्र की उच्चता का बखान करते हुए अघाते नहीं एवं पृथ्वी को कठोर बताते हैं।
त्वं वह्निमुनयो वशिष्ठगृहिणी गङ्गा च यस्या विदुहिात्म्यं यदि वा रघोः कुलगुरुर्देवः स्वयं भास्करः। विद्यां वागिव यामसूत भवता शुद्धिंगतायाः पुन
स्तस्यास्त्वद्दुहितुस्तथा विशसनं किं दारुणेभृष्यथाः ? ४.५ 'हे कठोरहृदया पृथ्वी जिसको महिमा तुम, अग्नि, ऋषिगण, वशिष्ठजाया, अरुन्धती, गङ्गा, रघुवंश के कुलगुरु वशिष्ठ या स्वयं सूर्यदेव जानते हैं और जिस प्रकार विद्या को सरस्वती उत्पन्न करती हैं, उसी प्रकार जिसको तुमने उत्पन्न किया है और फिर जो अमि से शुद्ध हो चुकी है, उस अपनी पुत्री के प्रति इस प्रकार की हिंसा को तुमने कैसे सहन किया ?
सीता की पवित्रता को गङ्गा एवं पृथ्वी ने भी स्वीकार किया है । वे सीता के सम्पर्क से भी अपने को पावन मानती हैं-आवयोरपि यत्सङ्गात्पवित्रत्वं प्रवृष्यते । निर्वासन की स्थिति में भी राम के प्रति सीता का अनन्य प्रेम विद्यमान रहता है । ययपि वे राम को 'आर्यपुत्र' के स्थान पर 'राजा' शब्द से ही संबोधित कर अपने हृदय का क्षोभ व्यक्त करती हैं तथापि दण्डकारण्य में उनके मूच्छित होने पर अपने शीतल उपचार से उन्हें स्वस्थ कर देती हैं । राम को क्षीणकाय देखकर उनका मूच्छित हो जाना राम के प्रति अखण्ड स्नेह का परिचायक है। राम की विरहावस्था को देखकर तथा अपने वियोग में आँसू बहाते हुए पाकर उनका सारा क्षोभ तिरोहित हो जाता है । अश्वमेध में अपनी स्वर्ण-प्रतिमा के स्थापन की बात सुनकर उनकी सारी