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जैमिनि ]
[ दुष्टिराज
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आधार ग्रन्थ-संस्कृत के सन्देश काव्य - डॉ० रामकुमार आचार्य ।
जैमिनि - मीमांसा - दर्शन के सूत्रकार के रूप में महर्षि जैमिनि का नाम प्रसिद्ध है । इनका समय वि० पू० ३०० संवत् है । इनके जीवन के सम्बन्ध कुछ भी ज्ञात नहीं है। एक मात्र विष्णुशर्मा कृत 'पञ्चतन्त्र' में हाथी द्वारा जैमिनि के कुचल दिये जाने की घटना का उल्लेख है ।
कर्तुरहरत् प्राणान् प्रियान् पाणिनेः
सिंहो व्याकरणस्य मीमांसाकृतमुन्ममाथ सहसा हस्ती मुनिं जैमिनिम् ॥
मित्रसम्प्राप्ति ३६ श्लोक || महर्षि जैमिनि मीमांसा दर्शन के प्रवर्तक न होकर उसके सूत्रकार माने जाते हैं, क्योंकि इन्होंने अपने पूर्ववर्ती तथा समसामयिक आठ आचार्यों का नामोल्लेख किया है, वे हैं - आत्रेय, आदमरथ्य, कार्ष्णाजिनि, बादरि, ऐतिशायन, कामुकायन, लाबुकायन एवं आलेखन | पर इन आचार्यों के कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं होते । जैमिनि कृत 'मीमांसासूत्र' १६ अध्यायों में विभक्त है जिसमें इस दर्शन के मूलभूत सिद्धान्तों का निरूपण है । इसके प्रारम्भिक १२ अध्याय 'द्वादशलक्षणी' के नाम से अभिहित किये जाते हैं एवं शेष चार अध्यायों का नाम 'संकर्षणकांड' या 'देवताकांड है । मीमांसा - सूत्रों की कुल संख्या २६४४ है जो ९०९ अधिकरणों में विभक्त हैं। इसके १२ अध्यायों में क्रमशः निम्नांकित विषयों का विवेचन है- धर्मविषयक प्रमाण, एक धर्म का अन्य धर्म से भेद, अङ्गत्व, प्रयोज्य प्रयोजक, क्रम, यज्ञकर्ता के अधिकार, अतिदेश ( सप्तम एवं अष्टम में एक ही विषय का वर्णन है ) ऊह, बाध, तन्त्र तथा प्रसङ्ग । इस पर अनेक वृत्तियों एवं भाष्यों की रचना हुई है। आचार्य उपवर्ष 'मीमांसासूत्र' के प्राचीनतम वृत्तिकार हैं जिनका उल्लेख शबरस्वामी कृत मीमांसाभाष्य' ( १|१|५ ) तथा शंकर रचित 'शारीरकभाष्य' ( ३।३।५३ ) में है । इनका समय १०० से २०० ई० पू० है । भवदास नामक अन्य प्राचीन वृत्तिकार का समय यही है । कुमारिलभट्ट ने श्लोकवार्तिक के प्रतिज्ञासूत्र श्लोक ६३ में इनका उल्लेख किया है । [ मीमांसासूत्र का हिन्दी अनुवाद श्रीराम शर्मा ने किया है ] |
आधार ग्रन्थ - १. इण्डियन फिलॉसफी - भाग - २ - डॉ० राधाकृष्णन् २. भारतीय दर्शन - आ० बलदेव उपाध्याय ।
जैमिनीय ब्राह्मण - यह 'सामवेद' का ब्राह्मण है जो पूर्णरूप से अभी तक प्राप्त नहीं हो सका है । यह ब्राह्मण विपुलकाय एवं यागानुष्ठान के महत्व का प्रतिपादक है । डॉ० रघुवीर द्वारा सम्पादित होकर नागपुर से १९५४ ई० में प्रकाशित ।
दुण्डिराज - ज्योतिषशास्त्र के आचार्यं । ये पार्थपुरा के निवासी थे। इनके पिता का नाम नृसिंह दैवज्ञ एवं गुरु का नाम ज्ञानराज था। इनका आविर्भाव काल १५४१ ई० है । इन्होंने 'जातकाभरण' नामक फलितज्योतिष का एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा है जिसमें दो हजार श्लोक हैं ।
आधार ग्रन्थ - भारतीय ज्योतिष - डॉ नेमिचन्द्र शास्त्री ।