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मनुस्मृति ]
[ मनुस्मृति
का वर्णन षष्ठ अध्याय में है । सप्तम अध्याय में व्यवहार ( मुकदमों के नियम ), कर एवं राजधमं वर्णित हैं । अष्टम अध्याय में साक्षियों के प्रश्न करने का विधान तथा नवम में पति-पत्नी का साथ तथा पृथक् रहने पर धर्म का वर्णन, धन-सम्पत्ति का विभाजन, द्यूतविधि, चोर, जेबकट तथा विष देकर यात्रियों के धन लेने आदि के निवारणों का कथन तथा वैश्य और शुद्धों के धर्म का अनुष्ठान वर्णित है । दशम अध्याय में वर्णसंकरों की उत्पत्ति तथा आपत्तिकाल में जीविका साधनोपदेश का कथन किया गया है |कादश अध्याय में प्रायश्चित्त की विधि एवं द्वादश में तीन प्रकार की सांसारिक गतियों, मोक्षप्रद आत्मज्ञान, विहित तथा निषिद्ध गुण-दोषों की परीक्षा, देशधमं, जातिधमं एवं पाखण्ड धर्मो का विवेचन है [ १।१११-११८ ] ।
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'मनुस्मृति' का वयं विषय अत्यन्त व्यापक है। इसमें राजशास्त्र, धर्मशास्त्र, सामाजिक नियम तथा समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र एवं हिन्दूविधि की विस्तारपूर्वक चर्चा की गयी है। राजशास्त्र में अन्तर्गत राज्य का स्वरूप, राज्य की उत्पत्ति, राजा का स्वरूप, मन्त्रि-परिषद्, मन्त्रिपरिषद् की सदस्य संख्या, सदस्य योग्यता, कार्यप्रणाली, न्यायलयों का संघटन एवं कार्यप्रणाली. दण्डविधान, दण्डदान - सिद्धान्त कोश- वृद्धि के सिद्धान्त, लाभकर, षाड्गुण्य मन्त्र, युद्धसंचालन, युद्धनियम आदि विषय वर्णित हैं । धर्मशास्त्र - इसमें धर्म की परिभाषा, धर्म के उपादान, वेद, स्मृति, भद्र लोगों का आचार, आत्मतुष्टि, कर्मविवेचन, क्षेत्रज्ञ, भूतात्मजीव, नरक कष्ट, सत्व, रज, तम का विवेचन, निःश्रेयस की उत्पत्ति, आत्मज्ञान, प्रवृत्त एवं निवृत्त का वर्णन है । सामाजिक विधिइसके अन्तर्गत वर्णित विषयों की सूची इस प्रकार है- पति-पत्नी के व्यवहारानुकूल कर्तव्य, बच्चे पर अधिकार का नियम, प्रथम पत्नी का कब अतिक्रमण किया जाय, विवाह की अवस्था, बंटवारा, इसकी अवधि, ज्येष्ठ पुत्र का विशेष भाग, गोद का पुत्र, पुत्रिका, दायभाग, स्त्रीधन के प्रकार, स्त्रीधन का उत्तराधिकार, वसीयत से हटाने के कारण, माता एवं पितामह उत्तराधिकारी के रूप में आदि । 'मनुस्मृति' के अनेक टीकाकार हो गए हैं - मेघतिथि, गोविन्दराजकुल्लूकं ।
इनके अतिरिक्त कुछ अन्य टीकाकार ऐसे हैं जिनकी कृतियाँ उपलब्ध नहीं हैं, पर उनके नाम मिलते हैं। 'मनुस्मृति' के निर्माणकाल के सम्बन्ध में अभी तक कोई निश्चित मत नहीं निर्धारित किया जा सका है। डॉ० काणे के अनुसार अन्तःसाक्ष्य के आधार पर इसका समय ई० पू० दूसरी शताब्दी है । डा० बुहलर ने अपनी शोधों के आधार पर यह निर्णय दिया कि 'महाभारत' के १२ में वह १३ वें पर्षों में किसी मानवधर्मशास्त्र का कथन है। हॉप्किन्स के अनुसार 'महाभारत' के १३ वे पर्व में 'मनुस्मृति' का उल्लेख है । इससे 'मनुस्मृति' 'महाभारत' से पूर्ववर्ती ज्ञात होती है । 'महाभारत' ( ३।५४ ) प्राचेतस का एक वचन उधृत है जो मनुस्मृति में भी प्राप्त हो जाता है ।
आधारग्रन्थ - १. मनुस्मृति - ( हिन्दी अनुवाद सहित ) - चौखम्बा प्रकाशन, अनु० पं० हरिगोविन्द शास्त्री । २. धर्मशास्त्र का इतिहास- डॉ० पा० वा० काणे ( हिन्दी