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मुद्राराक्षास]
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[मुद्राराक्षस
और उससे कहता है कि राक्षस के कहने पर उसने ही विषकन्या के द्वारा पर्वतेश्वर को मरवाया है। इस समय वह दूसरा नीच कर्म भी कराना चाहता है जिससे वह अत्यधिक भयभीत है। क्षपणक के वार्तालाप को सुनकर मलय केतु के मन में राक्षस के प्रति आशङ्काएं उत्पन्न होने लगती हैं और वह राक्षस से विरोध करने लग जाता है। अभी तक मलयकेतु यही समझता था कि उसके पिता को चाणक्य ने मरवाया है, पर क्षपणक की बातों ( छिप कर श्रवण करने से ) से उसे विश्वास हो गया कि राक्षस के ही द्वारा उसके पिता का वध कराया गया है। भागुरायण बड़ी कठिनता से उसे समझाने का प्रयास करता है, कि सम्भव है कि राक्षस का कार्य न्यायोचित हो, और चाहे जो भी हो. प्रतिशोध लेने में शीघ्रता नहीं करनी चाहिए। इसी समय बिना मुद्रा (पारपत्र ) के भागने की चेष्टा में सिद्धार्थक पकड़ लिया जाता है और उससे कूटलेख छीन लिया जाता है। जब उससे उस रहस्यपूर्ण लेख के संबन्ध में पूछा जाता है तो वह पीटे जाने के भय से बताता है कि इसे राक्षस ने चन्द्रगुप्त को देने के लिए भेजा है। पीटे जाते समय राक्षस की नामांकित मुद्रा की आभूषणों की पेटी भी गिर जाती है तथा लेख में अंकित मौखिक सन्देश उससे पूछा जाता है। वह मलयकेतु के मन की बात कहता है, जिसके अनुसार चाणक्य को हटा कर राक्षस को मन्त्री बनाने की बात है। मलयकेतु राक्षस के समक्ष अभी प्रमाण प्रस्तुत कर देता है तथा राक्षस के समीप भागुरायण के परामर्श से शकटदास के अन्य लेख से उसका मिलान करता है। इस प्रकार की समानता देख कर राक्षस भी किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है। राक्षस पर्वतेश्वर का आभूषण पहने हुए दिखाई पड़ता है, पर उन्हें उसने आभूषण विक्रेताओं से क्रय किया था। राक्षस और चन्द्रगुप्त की कूटमंत्रणा प्रमाणित हो जाती है और मलयकेतु राक्षस को मन्त्रिपद से निष्कासित कर देता है। वह अन्य पांच राजाओं को भी मार डालने का आदेश देता है। चाणक्य के कौशल की सफलता चरम सीमा पर पहुंच जाती है और मलयकेतु तथा राक्षस दोनों में फूट हो जाती है।
षष्ठ अंक के प्रवेशक से विदित होता है कि पांच राजाओं के मारे जाने से अन्य नरेशों ने भी मलयकेतु का साथ छोड़ दिया है। इसी बीच भागुरायण आदि के द्वारा मलयकेतु बन्दी बना लिया जाता है और चाणक्य उसकी सेना पर भी अधिकार कर लेता है। अमात्य राक्षस मलयकेतु के सैन्य शिविर से हट कर कहीं पाटलिपुत्र में ही छिपे हुए हैं, जहां चाणक्य का गुप्तचर उनके पीछे लगा हुआ है। चाणक्य सिद्धार्थक ए सुसिद्धार्थक को आदेश देता है कि वे अंडी चन्दनदास को वध्यभूमि में लाकर मार डालें। अमात्य राक्षस अपनी स्थिति पर खिन्न है, तथा अपने मित्र चन्दनदास को नहीं बचा सकने के कारण चिन्तित है। अमात्य राक्षस पाटलिपुत्र के जीर्णोद्यान में चिन्तित दिखाई पड़ते हैं, उसी समय एक व्यक्ति, जो चाणक्य का गुप्तचर है, गले में रस्सी बांध करे आत्महत्या करना चाहता है । राक्षस के पूछने पर वह बताता है कि उसका मित्र जिष्णुदास अपने मित्र चन्दनदास की मृत्यु का समाचार सुनने के. पूर्व ही बग्नि मे प्रवेश करने के लिये चला गया है, अतः वह मित्र के मरने के पूर्व ही बात्म