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नित्यानन्द ]
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[ नित्यानन्द
नैघटुककाण्ड कहे जाते हैं तथा इनके शब्दों की व्याख्या निरुक्त के द्वितीय एवं तृतीय अध्यायों में की गयी है । इनकी शब्द संख्या १३४१ है जिनमें से २३० शब्दों की ही व्याख्या की गयी है । चतुर्थ अध्याय को नैगमकाण्ड एवं पञ्चम को दैवतकाण्ड कहते हैं । नैगमकाण्ड में तीन खण्ड हैं जिनमें ६२, ८४ तथा १३२ पद हैं । ये किसी के पर्याय न होकर स्वतन्त्र हैं । नैगमकाण्ड के शब्दों का यथार्थ ज्ञान नहीं होता । दैवतकाण्ड के ६ खण्डों की पद संख्या ३, १३, ३६, ३२, ३६ तथा ३१ है जिनमें विभिन्न देवताओं के नाम हैं । इन शब्दों की व्याख्या 'निरुक्त' के सातवें से बारहवें अध्याय तक हुई है । डॉ० लक्ष्मण सरूप के अनुसार 'निघण्टु' एक व्यक्ति की रचना नहीं है पर राजवाडे ने इनके कथन का सप्रमाण खण्डन किया है ।
'महाभारत' में प्रजापति काश्यप को 'निघण्टु' का रचयिता माना गया है । वृषो हि भगवान् धर्मः ख्यातो लोकेषु भारत । निघण्टुकपदाख्याने विद्धि मां वृषमुत्तमम् ॥ कपिवराहः श्रेष्ठश्च धर्मश्च वृष उच्यते । तस्माद् वृषाकपिप्राह कश्यपो मां प्रजापतिः ॥
महाभारत मोक्षधर्मपर्व, ३४२१८६-८७ कतिपय विद्वान् इस विचार को प्रामाणिक न मानकर निरुक्त और निघण्टु दोनों का ही रचयिता यास्क को ही स्वीकार करते हैं । स्वामी दयानन्द एवं पं० भगवद्दत्त जी के अनुसार जितने निरुक्तकार हैं वे सभी निघण्टु के रचयिता हैं । आधुनिक विद्वान् रॉथ, कर्मकर, लक्ष्मण सरूप तथा प्राचीन टीकाकार स्कन्द, दुर्ग एवं महेश्वर ने निघण्टु के प्रणेता अज्ञातनामा लेखक को माना है। दुर्ग ने लिखा है - " तस्यैषा ' सा पुनरियं त इमं गवादिदेवपल्यन्त समाम्नातवन्तः ।" इनके अनुसार निघण्टु श्रुतषियों द्वारा किया गया संग्रह है । अभी तक निश्चित रूप से यह मत प्रकट नहीं किया जा सका है कि निघण्टु का लेखक कौन है । सम्प्रति निघण्टु की एक ही व्याख्या उपलब्ध है, जिसके लेखक है देवराज यज्वा ।
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आधारग्रन्थ - १. निरुक्त - ( हिन्दी व्याख्या ) पं० भगवद्दत २. हिन्दी निरुक्तपं० उमाशंकर 'ऋषि' ३. निघण्टु और निरुक्त - ( हिन्दी अनुवाद ) - डॉ लक्ष्मण सरूप ४. वैदिक वाङ्मय का इतिहास – पं० भगवद्दत्त ।
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नित्यानन्द – ज्योतिषशास्त्र के आचार्य । इनका समय १७ बीं शताब्दी का प्रारम्भ है । इन्होंने १६३९ ई० में 'सिद्धान्तराज' संज्ञक महनीय ज्योतिषग्रन्थ की रचना की थी । ये इन्द्रप्रस्थपुर के निवासी थे । इनके पिता का नाम देवदत्त था । ये गौड़ वंशीय ब्राह्मण थे । 'सिद्धान्तराज' ग्रहणत का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । इसमें वर्णित विषयों के शीर्षक इस प्रकार हैं
ॐ
मीमांसाध्याय, मध्यमाधिकार, स्पष्टाधिकार, भ-ग्रहयुत्यधिकार, भ-ग्रहों के उन्नतांशिसाधनाधिकार, भुवनकोश, गोलबन्धाधिकार तथा यात्राधिकार ।
आधारग्रन्थ - भारतीय ज्योतिष - डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री ।