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मनुस्मृति ]
( ३७८ )
[ मनुस्मृति
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१।११४१२, २०३३।१३ । 'शतपथ ब्राह्मण' में मनु तथा प्रलय की कहानी का वर्णन है । 'तैतिरीय संहिता' तथा 'ऐतरेय ब्राह्मण' में मनु के सम्बन्ध में कहा गया है कि उन्होंने अपनी सम्पत्ति को पुत्रों में बाँट दिया है, पर एक पुत्र नाभानेदिष्ट को कुछ भी नहीं दिया । 'महाभारत' के शान्तिपर्व में मनु को कहीं तो स्वयम्भुव मनु एवं कहीं प्राचेतस मनु कहा गया है [ शान्तिपर्व २१।१२, ५७।४३ ]। इन विवरणों से मनु पुराणपुरुष सिद्ध होते हैं । शान्तिपर्व में ( ३३६।३८-४६ ) इस प्रकार का कथन है कि ब्रह्मा ने एक सहस्र श्लोकों में धर्म पर लिखा था जिसे मनु ने धर्मशास्त्र के रूप में उद्घोषित किया और उस पर उशना तथा बृहस्पति ने शास्त्रों का निर्माण किया । 'मनुस्मृति' ( १।३२३३ ) के अनुसार ब्रह्मा से विराट् का उद्भव हुआ जिससे मनु उत्पन्न हुए तथा मनु से भृगु, नारद आदि ऋषियों की उत्पत्ति हुई । ब्रह्मा द्वारा मनु से दस ऋषियों ने ज्ञान प्राप्त किया [ मनुस्मृति ११५८ 'मनुस्मृति' के लेखक मनु ही माने जाते हैं, पर विद्वानों का कथन है कि मनु ने 'मनुस्मृति' की रचना नहीं की है बल्कि इस ग्रन्थ को प्रामाणिक एवं प्राचीन बनाने के लिए ही लेखक के रूप में मनु का नाम दे दिया है । मैक्समूलर एवं डॉ० बुहलर के अनुसार 'मनुस्मृति' मानवचरण के धर्मसूत्र का ही संशोधित रूप है । 'महाभारत' में स्वायम्भुव मनु एवं प्राचेतस मनु व्यक्ति माने गए हैं। स्वायम्भुव मनु धर्मशास्त्रकार माने गये हैं एवं अर्थशास्त्रकार कहा गया है। कहीं-कहीं केवल मनु को राजधमं या अर्थविद्या का रचयिता कहा गया है । डॉ० काणे का अनुमान है कि "आरम्भ में मनु के नाम से दो ग्रन्थ रहें होंगे । जब कौटिल्य 'मानवों' की ओर संकेत करते हैं तो वहीं संभवतः वे प्राचेतस मनु की बात उठाते हैं ।" पृ० ४३ धर्मशास्त्र का इतिहास भाग १ ( हिन्दी अनुवाद ) । 'नारदस्मृति' में मनु धर्मशास्त्र के प्रणेता कहे गए हैं और 'स्कन्दपुराण' में भी स्वयम्भुव मनु को धर्मशास्त्र का आदि प्रणेता कहा गया है। डॉ० श्यामलाल पाण्डेय ने मनु को ही 'मनुस्मृति' का मूल लेखक मानते हुए अपना निष्कर्ष दिया है- " इन समस्त प्रमाणों के आधार पर इस विषय में दो मत नहीं हैं कि स्वायम्भुव मनु आदि धर्मशास्त्रप्रणेता हैं, और धर्मशास्त्रविषयक सम्पूर्ण ज्ञान उन्हीं के द्वारा प्रारम्भ किया गया है। उन्हीं से गुरु-शिष्य परम्परा द्वारा उस धर्मशास्त्र का विकास हुआ है, और यह कार्य उस काल तक चलता रहा, जिस काल में प्रस्तुत मानवधर्मशास्त्र की रचना हुई है ।" प्राचीन भारतीय राजशास्त्र प्रणेता पृ० २२ ।
नामक दो पृथक् प्राचेतस मनु को
मनुस्मृति' में बारह अध्याय तथा २६९४ श्लोक हैं। इसमें अध्यायानुसार उसका विषय दिया गया है । तदनुसार प्रथम अध्याय में संसार की उत्पत्ति, द्वितीय में जातिकर्म आदि संस्कारविधि, ब्रह्मचयंव्रत विधि तथा गुरु के अभिवादन की विधि है। तृतीय अध्याय में ब्रह्मचर्य व्रत की समाप्ति के पश्चात् गुरुकुल से गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने के पूर्व स्नानरूप संस्कार विशेष का विधान किया गया है तथा इसी अध्याय में पंचमहायज्ञ और नित्य श्राद्धविधि का वर्णन है। चतुर्थ अध्याय में जीविकाओं (ऋतु, अमृत आदि ) लक्षण गृह आश्रमियों के नियम हैं । भक्ष्याभक्ष्य शोच तथा जल-मिट्टी आदि के द्वारा द्रव्यों की शुद्धि का वर्णन पंचम अध्याय में है । वानप्रस्थधर्मं, यतिधर्म