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कादम्बरी]
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[कादम्बरी
हुआ। इसकी कथा का स्रोत 'बृहत्कथा के राजा सुमनस की कहानी में दिखाई पड़ता है, क्योंकि इसमें भी 'बृहत्कथा' की भांति शाप एवं पुनर्जन्म की कथानकरूढ़ियां प्रयुक्त हुई हैं। इसमें एक कथा के भीतर दूसरी कथा की योजना करने में 'बृहत्कथा' की ही रूढ़ि ग्रहण की गयी है । लोककथा की अन्य कहानियों की भांति इसमें प्रथम पुरुष की शैली अपनायी गयी है तथा जाबालि की कथा में अन्य पुरुष की शैली प्रयुक्त हुई है। इसमें कवि ने लोक-कथा की अनेक रूढ़ियों का प्रयोग किया है; जैसे मनुष्य की भांति बोलने वाला सर्वशास्त्रविद् शुक, त्रिकालदर्शी महात्मा जाबालि, किन्नर, गन्धर्व एवं अप्सराएं, शाप से आकृति-परिवर्तन, पुनर्जन्म की मान्यता तथा पुनर्जन्म के स्मरण की कथा। इसके पात्र दण्डी आदि की तरह जगत् के यथार्थवादी धरातल के पात्र न होकर चन्द्रलोक, गन्धर्वलोक एवं मत्यलोक में स्वच्छन्दतापूर्वक विचरण करने वाले आदर्शवादी पात्र हैं। कवि ने पात्रों के चारित्रिक पार्थक्य की अपेक्षा कथा कहने की शैली के प्रति अधिक रुचि प्रदर्शित की है। किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि इसमें चारित्रिक सूक्ष्मताओं का विश्लेषण कम है। "कादंबरी के चरित्र भले ही आदर्शवादी बाण के हाथ की कठपुतली जरूर हैं, पर बाण ने उनका संचालन इतनी कुशलता से किया है कि उनमें चेतनता संक्रान्त हो गयी है। शुकनास का बुद्धिमान तथा स्वामिभक्त चरित्र, वैशंपायन की सच्ची मित्रता और महाश्वेता के आदर्श प्रणयी चरित्र को रेखाओं को बाण की तूलिका ने स्पष्टतः अंकित किया है। पर बाण का मन तो नायक-नायिका की प्रणय-दशाओं, प्रकृति के विविध चित्रों और काव्यमय वातावरण की सृष्टि करने में विशेष रमता है।" संस्कृत-कवि-दर्शन-प्रथम संस्करण पृ० ५००-१
डॉ. कीथ का कहना है कि-"वास्तव में, यह एक विचित्र कहानी है, और उन लोगों के प्रति जिनको पुनर्जन्म में अथवा इस मयंजीवन के अनन्तर पुनर्मिलन में भी विश्वास नहीं है इसकी प्ररोचना गम्भीर रूप से अवश्य ही कम हो जानी चाहिए । उनको यह सारी कथा, निकम्मी नहीं तो, असंगत अद्भुत कथा के रूप में ही प्रतीत होती है, जिसके आकर्षण से हीन पात्र एक अवास्तविक वातावरण में ही रहते हैं। परन्तु भारतीय विश्वास की दृष्टि से वस्तु-स्थिति बिल्कुल भिन्न है। कथा को हम ओचित्य के साथ मानवीय प्रेम की कोमलता, देवी आश्वासन की कृपा, मृत्युजनित शोक और कारुण्य, और प्रेम के प्रति अविचल सच्चाई के परिणामस्वरूप मृत्यु के पश्चात् पुनर्मिलन की स्थिर आशा से परिपूर्ण मान सकते हैं । कथा में अद्भुत घटनाओं का अंश भी भारतीय विचारधारा के लिए विशेष आकर्षण का विषय है, चन्द्रमा और पुण्डरीक के आश्चर्य से पूर्ण इतिवृत में भी उस विचार-धारा के लिए कोई ऐसी बात नहीं है जो आकर्षक न हो।" संस्कृत साहित्य का इतिहास पृ० ३८४ ।
'कादम्बरी' का महत्त्व साहित्यिक एवं सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टियों से है। कवि ने तत्कालीन भारतीय जीवन-दर्शन एवं सांस्कृतिक परम्परा को दृष्टि में रख कर उस युग के लोक-मानस की अभिव्यक्ति की है। बाण ने 'कादम्बरी' के अद्भुत कथा-शिल्प को राज-प्रासाद की भांति सजाया है। "कादम्बरी के अद्भुत कथा-शिल्प को राजप्रासाद