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ऐतिहासिक महाकाव्य ]
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[ ऐतिहासिक महाकाव्य
'जगडूचरित' एक जैन धर्मात्मा सेठ का प्रशस्तिकाव्य है । इसकी रचना सात सर्गों में हुई है । इसमें एक साधारण व्यापारी की जीवन-गाथा वर्णित है, जिसने १२५६-५८ के बीच पड़े दुर्भिक्ष में गुजरात - वासियों की अत्यधिक सहायता की थी । सोलहवीं शती में रुद्रकवि ने मयूरगिरि के शासकों की प्रशस्ति में 'राष्टीढवंश' नामक काव्य लिखा था, जिसका प्रकाशन १९१७ ई० में हुआ है । इसमें बीस सर्ग हैं। दो महिलाओंतंजोर के राजा की पत्नी रामभद्रम्ब तथा गंगादेवी ने क्रमशः 'रघुनाथाभ्युदय' तथा 'मधुराविजय' नामक काव्यों की रचना की है । गंगादेवी ने 'मधुराविजय' में अपने पति की ही विजय - गाथा का गान किया है ।
सोलहवीं शती से बीसवीं शती तक संस्कृत में अनेक ऐतिहासिक काव्यों की रचना हुई है उनका विवरण इस प्रकार है- रुद्रकवि ने द्वितीय काव्य 'जहांगीर शाहचरित' लिखा है जिसमें आठ उल्लासों में जहांगीर की यशगाथा है । मिथिला के वैद्यनाथ नामक कवि ने १६ वीं शती में 'ताराचन्द्रोदय' नामक महाकाव्य लिखा जिसमें बीस सगं हैं। इसमें मैथिलनरेश ताराचन्द्र का जीवनवृत्त है । इसी शती में चन्द्रशेखर ने 'राजसुर्जन चरित' नामक महाकाव्य का बीस सर्गों में प्रणयन किया । कवि विश्वनाथ कृत 'जगत्प्रकाश' काव्य सोलहवीं शती में लिखा गया है । इसमें राणकवंशी नरेश कामदेव तथा जगतसिंह का चौदह सर्गों में वर्णन है । सोलहवीं शताब्दी के अन्तिम भाग वाणीनाथ कवि ने कच्छ के जामवंशी नरेशों का 'जामविजय' महाकाव्य में वर्णन किया है। मुसलमानी राज्य की स्थापना के पश्चात् अनेक कवियों ने कई बादशाहों or जीवनवृत्त लिखा है । उदयराज कवि ने अपने 'राजविनोद' नामक काव्य में सुल्तान मुहम्मद का प्रशस्तिगान किया है । रामराज कवि का 'महमूदचरित' भी एक प्रसिद्ध रचना है । कालिदास विद्याविनोद नामक कवि ने शिवा जी का जीवनवृत्त 'शिवाजी चरित' नामक काव्य में प्रस्तुत किया है । १८ वीं शती के पूर्वार्द्ध में लक्ष्मीधर कवि ने 'अब्दुल्लाह चरित' की रचना की जिसमें अब्दुलाह नामक मन्त्री की कथा है । इसमें मुगल साम्राज्य की संध्या का यथार्थ चित्र अंकित है तथा लगभग २०० अरबी-फारसी शब्दों को संस्कृत रूप में संयोजित किया गया है । अंगरेजी राज्य की स्थापना एवं
प्रसार के पश्चात् अँगरेज राजाओं की प्रशस्ति में कई ऐतिहासिक काव्य लिखे गए हैं । १८१३ ई० में 'इतिहास - तमोमणि' नामक काव्यग्रन्थ में अंगरेजों के भारतवर्ष पर आधिपत्य प्राप्त करने का वृत्तान्त वर्णित है । विनायक मैट्ट कवि कृत 'अंगरेज - चन्द्रिका' १८०१ ई० में लिखी गयी, जिसमें अंगरेजी राज्य की स्थापना का वर्णन है । इस विषय के अन्य ग्रन्थ हैं- रामस्वामी राजा रचित ! राजाङ्गलमहोद्यान', राजवर्मालिखित 'आंग्ल साम्राज्य' तथा परवस्तुरंगाचायं कृत 'आंग्लाधिराज - स्वागत' ।
गणपति शास्त्री ( जन्म १८६० ई० ) ने विक्टोरिया की यशगाथा 'चक्रवर्तिनीगुणमाला' नामक काव्य में वर्णित की है । विजयराघवाचार्य ने ( जन्म १८८४ ई० ) 'गान्धी माहात्म्य', 'तिलक वैदग्ध्य', तथा 'नेहरू - विजय' नामक ग्रन्थों की रचना कर महात्मा गान्धी, बालगंगाधर तिलक एवं पं० मोतीलाल नेहरू की राष्ट्रसेवाओं का वर्णन किया है । बंगाल के श्रीश्वर विद्यालंकार कवि ने विक्टोरिया के जीवन पर १२ सर्गों
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