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वत्सभट्ट ]
( ४८३ )
[ वत्सराज
२६ अवतार वर्णित हैं तथा शैव व्रतों एवं शैवतीथों का विशद विवेचन है । इसके उत्तर भाग में शैवतन्त्रों के अनुसार ही पशु, पाश और पशुपति का वर्णन है । इसमें लिंगोपासना के सम्बन्ध में एक कथा भी दी गयी है कि किस प्रकार शिव के वनवास करते समय मुनि पत्नियां उनसे प्रेम करने लगीं और मुनियों ने उन्हें शाप दिया । इसके ९२ वें अध्याय में काशी का विशद विवेचन है तथा उससे सम्बद्ध अनेक तीर्थो के विवरण दिये गये हैं । इसमें उत्तरार्द्ध के कई अध्याय गद्य में ही लिखित हैं तथा ११वें ध्याय में शिव की प्रसिद्ध अष्टमूर्तियों के वैदिक नाम उल्लिखित हैं। इसकी रचनातिथि के सम्बन्ध में अभी तक कोई सुनिश्चित विचार स्थित नहीं हो सका है, पर कतिपय विद्वान् इसका रचना - काल सातवीं एवं आठवीं शताब्दी स्वीकार करते हैं । इसमें कल्कि और बौद्ध अवतारों के भी नाम हैं तथा ९ वें अध्याय में योगान्तरायों का जो वर्णन किया गया है, वह 'व्यासभाष्य' से अक्षरशः मिलता-जुलता है । 'व्यासभाष्य' का रचना -काल षष्ठ शतक है, अतः इससे भी इसके समय पर प्रकाश पड़ता है । इसका निर्देश अलबेरुनी तथा उसके परवर्ती लक्ष्मीधर भट्ट के 'कल्पतरु' में भी प्राप्त होता है । अलबेरुनी का समय १०३० ई० है । 'कल्पतरु' में 'लिंगपुराण' के अनेक उद्धरण प्रस्तुत किये गए हैं । इन्हीं आधारों पर विद्वानों ने इसका समय आठवीं एवं नवीं शताब्दी के बीच स्वीकार किया है, किन्तु यह तिथि अभी प्रामाणिक नहीं मानी जा सकती एवं इस पर अभी सम्यक् अनुशीलन अपेक्षित है । 'लिंगपुराण' चैवव्रतों एवं अनुष्ठानों का प्रतिपादन करने वाला अत्यन्त महनीय पुराण है जिसमें शैव दर्शन के अनेक तत्त्व भरे हुए हैं ।
आधारग्रन्थ - १. लिंगपुराण - नवलकिशोर प्रेस, लखनऊ । २. पुराण-विमर्श - पं० बलदेव उपाध्याय । ३. पुराणतस्वमीमांसा - श्रीकृष्णमणि त्रिपाठी । ४. पुराणम् ( द्वितीय भाग १९६० ) पृ० ७६ - ८१ ।
वत्सभट्टि - इनकी कोई पुस्तक उपलब्ध नहीं होती कीर्ति के रूप में एकमात्र मन्दसौर - प्रशस्ति प्राप्त होती है, जो कुमारगुप्त के राज्यकाल में उत्कीर्णित हुई थी । इसका रचनाकाल मालव संवत् ५२९ है । इस प्रशस्ति में रेशम बुनकरों द्वारा निर्मित एक सूर्य मन्दिर का वर्णन किया गया है जिसका निर्माण ४३७ ई० में हुआ था एवं इसका पुनरुद्धार ४७३ ई० में हुआ 'मन्दसौर - प्रशस्ति' में कुल ४४ श्लोक हैं। इसके प्रारम्भिक श्लोकों में भगवान् भास्कर की स्तुति एवं बाद के छन्दों में दशपुर ( मन्दसौर) का मनोरम वर्णन है । कवि ने इसमें तत्कालीन नरेश नरपतिबन्धुवर्मा का प्रशस्ति गान किया है, जिनका समय पांचवीं शताब्दी है । काव्यशास्त्रीय दृष्टि से यह प्रशस्ति उच्चकोटि की है तथा इस पर महाकवि कालिदास की छाया परिलक्षित होती है ।
वत्सराज - संस्कृत के नाटककार हैं जो कालिंजर-नरेश परमर्दिदेव के मंत्री थे । इनका समय ११६३ से १२०३ ईस्वी तक के मध्य है । इनके द्वारा रचित छह नाटक प्रसिद्ध हैं । १. कर्पूरचरित - इसमें धूत के खिलाड़ी कपूर के मनोरंजक अनुभवों का वर्णन किया गया है। यह एकांकी भाण है । २. किरातार्जुनीय - इसकी रचना