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बडदेव मित्र ]
(१५६ )
[खण्डदेव मित्र
'कविकण्ठाभरण' एवं 'सुवृत्ततिलक' नामक तीन काव्यशास्त्रीय ग्रन्थ लिखे हैं । ये औचित्य सम्प्रदाय के प्रवत्तंक माने जाते हैं। [ इनके काव्यशास्त्रीय विचार के लिए दे० आ० क्षेमेन्द्र ] क्षेमेन्द्र के नाम पर ३३ ग्रन्थ प्रचलित हैं, जिनमें १८ प्रकाशित एवं १५ अप्रकाशित हैं। प्रकाशित ग्रन्थों का नाम इस प्रकार है-रामायणमंजरी, भारतमंजरी, बृहत्कथामंजरी, दशावतारचरित, बौद्धावदानकल्पलता, चारवशतक, देशोपदेश, दपंदलन, चतुर्वर्गसंग्रह, कलाविलास, नर्ममाला, कविकण्ठाभरण, औचित्यविचारचर्चा, सुवृत्ततिलक, लोकप्रकाशकोष, नीतिकल्पतर एवं व्यासाष्टक । अप्रकाशित रचनाओं के नाम इस प्रकार है-नृपाली ( इसका निर्देश राजतरंगिणी तथा कविकष्ठाभरण में है ), शशिवंश महाकाव्य, पथकादम्बरी, चित्रभारतनाटक, लावण्यमंबरी, कनकजानकी, मुक्तावली, अमृततरजमहाकाव्य, पवनपंचाशिका, विनयवती, मुनिमतमीमांसा, नीतिलता, अवसरसार, ललितरत्नमाला, कविकणिका। इनकी तीन संदिग्ध रचनायें भी हैंहस्तिप्रकाश, स्पन्दनिर्णय तथा स्पन्दसन्दोह । ___ उपयुक्त ग्रन्थों की संख्या से ज्ञात होता है कि क्षेमेन्द्र बहुवस्तुस्पर्शिनी प्रतिभा से सम्पन्न थे। इन कृतियों में इन्होंने अनेकानेक विषयों का विवेचन किया है। 'दशावतारचरित' इनका प्रसिद्ध महाकाव्य है जिसमें विष्णु के दस प्रसिद्ध अवतारों का वर्णन किया गया है। भाषा पर क्षेमेन्द्र का पूर्ण प्रभुत्व है। इन्होंने विषयानुरूप भाषा का प्रयोग कर उसे प्राणवन्त बनाया है। व्यंग्य एवं हास्योत्पादक रचना के तो ये संस्कृत के एकमात्र प्रयोक्ता हैं।
आधार ग्रन्थ-१. आचार्य क्षेमेन्द्र-डॉ. मनमोहन गौतम । २. क्षेमेन्द्र-ए स्टडीडॉ० सूर्यकान्त शास्त्री।
खण्डदेव मिथ-ये भाट्टमत के ( मीमांसा-दर्शन का एक सिद्धान्त ) अनुयायी थे। इनका जन्म काशी में हुआ था। इनका समय (निधन-काल १७२२) विक्रम संवत् है। पण्डितराज जगन्नाथ । 'रसगंगाधर' नामक काव्यशास्त्रीय ग्रन्थ के प्रणेता) के पिता पेरभट्ट के ये गुरु थे। सहदेव मिश्र ने भाट्ट मत के इतिहास. में 'नव्यमत' की स्थापना कर नवयुग का समारम्भ किया था। नव्यन्याय (न्याय दर्शन की एक शाखा) की भांति इन्होंने मीमांसा दर्शन में 'नव्यमत' की उभावना की थी। जीवन के अन्तिम दिनों में इन्होंने संन्यास ग्रहण कर लिया था। इनके पिता का नाम रुद्देव था। संन्यासी हो जाने के पश्चात् खण्डदेव मित्र का नाम 'श्रीधरेनयतीन्द्र' हो गया था। इन्होंने तीन उच्चस्तरीय अन्यों की रचना की है, वे हैं-मीमांसा-कौस्तुभ' ( भाट्टकौस्तुभ , 'भाट्टदीपिका' एवं 'भाट्टरहस्य' । 'भाट्टकोस्तुभ' मीमांसासूत्रों पर रचित विशद टीका ग्रन्थ है। भाट्टदीपिका इनका सर्वोत्तम ग्रन्थ है। इसके ऊपर तीन टीकाएँ प्राप्त होती हैं-सम्मुभट्टरचित 'प्रभावली, भास्करराय कृत 'भाट्टचन्द्रिका' एवं वाम्छेश्वरयम्बा प्रणीत 'भादृचिन्तामणि' । 'भाट्टरहस्य' का विषय शाब्दबोध है। नैयायिक प्रणाली पर रचित होने के कारण इसकी भाषा भी दुरुह हो गयी है। इस ग्रन्थ में प्रसंगानुसार लेखक ने भावावं एवं लकारा प्रभृति विषयों का विवेचन मीमांसक की दृष्टि से किया है। सहदेव मीमांसा-दर्शन के प्रौढ़ सक है।