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नममाला]
( २२९ )
[नरसिंह कवि
१३ वीं शताब्दी के बीच मानते हैं। 'अभिनयदर्पण' में ३२४ श्लोक हैं और भगवान् शंकर की वन्दना करने के उपरान्त नाट्यशास्त्र की परम्परा एवं अभिनयविधि का वर्णन है। इसमें अभिनय के तीन भेद बताये गए हैं-नाट्य, नृत और नृत्य और तीनों के प्रयोगकाल का भी निर्देश है । नाट्य के छह तत्त्व कहे गए हैं-नृत्य, गीत, अभिनय, भाव, रस और ताल। इनमें से अभिनय के चार प्रकार बताये गए हैंआंगिक, वाचिक आहार्य और सात्विक । इसमें मुख्य रूप से सोलह प्रकार के अभिनय एवं उनके भेदों का वर्णन है और अभिनयकाल तथा १३ हस्तमुद्राओं का उल्लेख है । हस्तगति की भांति इसमें पादगति का भी वर्णन है और उसके भी तेरह प्रकार माने गए हैं। शास्त्र एवं लोक दोनों के ही विचार से 'अभिनय-दर्पण' एक उत्कृष्ट ग्रन्थ है । इसका अंगरेजी अनुवाद डॉ. मनमोहन घोष ने किया है। हिन्दी अनुवाद श्रीवाचस्पतिशास्त्री 'गैरोला' ने किया है।
आधारग्रन्थ-भारतीय नाट्य परम्परा और अभिनय-दर्पण -श्रीवाचस्पति शास्त्री।
नर्ममाला-यह हास्योपदेशक या व्यंग्य काव्य है जिसके रचयिता क्षेमेन्द्र हैं। पुस्तक की रचना के उद्देश्य पर विचार करते हुए लेखक ने सज्जनों के विनोद को ही अपना लक्ष्य बनाया है।
अपि सुजन-विनोदायोम्भिता हास्यसिद्धः ।
कथयति फलभूतं सर्वलोकोपदेशम् ॥ ३॥१४४ नममाला ॥ इसमें तीन परिच्छेद या परिहास हैं। इनमें कायस्थ, नियोगी आदि अधिकारियों की.घृणित लीलाओं का सूक्ष्म दृष्टि से वर्णन है । कवि ने समकालीन समाज एवं धर्म का पर्यवेक्षण करते हुए उनकी बुराइयों का चित्रण किया है, किन्तु कहीं-कहीं वर्णन ग्राम्य, भोंड़ा एवं उद्वेगजनक हो गया है। इसमें घूस लेना, जालसाजी या कूटलेख का वर्णन बड़ा ही हृदयग्राही है। क्षेमेन्द्र की यह रचना संस्कृत-साहित्य में सर्वथा नवीन क्षितिज का उद्घाटन करने वाली है।
नरचन्द्र उपाध्याय-ज्योतिषशास्त्र के आचार्य । इनका समय चौदहवीं शताब्दी है। इन्होंने ज्योतिषशास्त्रविषयक अनेक ग्रन्थों की रचना की थी, किन्तु सम्प्रति 'बेड़ाजातकवृत्ति', 'प्रश्नशतक' 'प्रश्नचतुर्विशतिका', 'जन्मसमुद्रसटीक', 'लग्नविचार' तथा 'ज्योतिषप्रकाश' नामक ग्रन्थ प्राप्त होते हैं। 'बेड़ाजातकवृत्ति' का रचनाकाल सं० १३२४ माघ सुदी ८ रविवार बतलाया जाता है। इस ग्रन्थ में १०५० श्लोक हैं। 'ज्योतिषप्रकाश' फलित ज्योतिष की महत्त्वपूर्ण रचना है जिसमें मुहुत्तं एवं संहिता का सुन्दर विवेचन है। 'बेड़ाजातकवृत्ति' में लग्न तथा चन्द्रमा के द्वारा सभी फलों पर विचार है।
आधारग्रंथ-भारतीय ज्योतिष-डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री ।
नरसिंह कवि-अलंकारशास्त्र के आचार्य। इन्होंने 'नम्जराजयशोभूषण' नामक की रचना विद्यानाथ कृत 'प्रतापगद्रयशोभूषण' के अनुकरण पर की है। यह अन्य मैसूर राज्य के मन्त्री नम्जराज की स्तुति में लिखा गया है। इसमें सात विलास है