________________
नलचम्पू]
( २३० )
[नलचम्पू
जिसमें नायक, काव्य, ध्वनि, रस, दोष, नाटक एवं अलंकार का विवेचन है। प्रत्येक विषय के उदाहरण में नजराज सम्बन्धी स्तुतिपरक श्लोक दिये गए हैं और नाटक के विवेचन में षष्ठ विलास में स्वतन्त्ररूप से एक नाटक की रचना कर दी गयी है। दक्षिण नायक का उदाहरण देखिए
धम्मिल्ले नवमल्लिकाः स्तनतटे पाटीरचर्या गले, हारं मध्यतले दुकूलममलं दत्वा यश:कैतवात् । यः प्राग् दक्षिणपश्चिमोत्तरदिशाः कान्ताः समं लालय
भास्ते निस्तुलचातुरीकृतपदः धीनम्जराजाग्रणीः । इसका प्रकाशन गायकवाड ओरियन्ट सीरीज ग्रन्थ सं० ४७ से हो चुका है।
आधारग्रन्थ-१. भारतीय साहित्यशास्त्र भाग १, आ० बलदेव उपाध्याय ।
नलचम्पू-यह महाकवि चिविक्रमभट्ट विरचित संस्कृत का प्रसिद्ध चम्पू काव्य है। इसमें निषष नरेश महाराज नल एवं भीमसुता दमयन्ती की प्रणयकथा वर्णित है । पुस्तक का विभाजन उच्छ्वासों में हुआ है और कुल सात उच्छ्वास हैं [ दे० त्रिवि. क्रमभट्ट] । प्रथम उच्छ्वास-इसका प्रारम्भ चन्द्रशेखर भगवान् शंकर तथा कवियों के वाग्विलास की प्रशंसा से हुआ है। सत्काव्य-प्रशंसा, खलनिन्दा एवं सज्जन-प्रशंसा के पश्चात् वाल्मीकि, व्यास, गुणाढय एवं बाण की प्रशंसा की गयी है। तदनन्तर कवि स्वकाव्य का उद्देश्य एवं अपने वंश का वर्णन करता है। "चम्पूकाव्य की प्रशंसा, आर्यावर्त-वर्णन, आवित्तं के निवासियों का सौख्यवर्णन, आर्यावर्त के अन्तर्गत विविध जनपदों एवं निषधा नगरी का वर्णन करने के पश्चात् नल एवं उनके मन्त्री का वर्णन किया गया है जिसका नाम श्रुतशील है। नल का व्यावहारिक जीवन-वर्णन, वर्षा-वर्णन करने के बाद एक उपद्रवी सूकर का कथन किया गया है जिसे मारने के लिए राजा आखेट के लिए प्रस्थान करता है। चिरकाल तक युद्ध करने के पश्चात् सूकर सम्राटू के ऊपर नल नरेश विजय प्राप्त करते हैं। आखेट के बाद उजड़े हुए वन का वर्णन तथा आखेट के कारण थके हुए नल का शालवृक्ष के नीचे विश्राम करना वर्णित है। इसी बीच दक्षिण देश से एक पथिक का आगमन होता है और वह वार्तालाप के क्रम में दक्षिण दिशा-तीर-भूमि एवं युवती, दमयन्ती, का वर्णन करता है । पथिक ने यह भी सूचना दी कि उस युवती ( दमयन्ती) के समक्ष एक युवक ( राजा नल ) की भी प्रशंसा किसी पथिक द्वारा हो रही थी। उसके रूप-सौन्दयं का वर्णन सुन कर दमयन्ती के प्रति नल का आकर्षण होता है और पथिक चला जाता है । तत्पश्चात् कवि ने कामक्लान्त नल का वर्णन किया है।
द्वितीय उच्छ्वास-वर्षा-काल की समाप्ति तथा शरद् ऋतु का आगमन, किन्नर मिथुन द्वारा गाये गए तीन श्लोक, गीत ध्वनि से उत्कण्ठित राजा का वन-विहार तथा बन-मालिका द्वारा वन-सुषमा वर्णन । मनोविनोद के हेतु घूमते हुए नल के समक्ष श्वेत पंखों से पृथ्वी को सुशोभित करती हुई हंसों की मंडली का उतरना एवं भूख की तृप्ति के लिए कमलनाल का तोड़ने लगना। कोतुकवश नल का उन्हें पकड़ने का