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माघ ]
[ माघ
नाट्यशास्त्र, व्याकरण, संगीतशास्त्र तथा अलंकारशास्त्र, कामशास्त्र एवं अश्वविद्या के भी परिशीलन का परिचय महाकवि माघ ने यत्र-तत्र दिया है ।
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महाकवि माघ अलंकृत शैली के कवि हैं । इनका प्रत्येक वर्णन, प्रत्येक भाव, संकृत भाषा में ही अभिव्यक्त किया गया है । इनका काव्य कठिनता के लिए प्रसिद्ध है, और कवि ने कहीं-कहीं चित्रालंकार का प्रयोग कर इसे जानबूझ कर कठिन बना दिया है । राजराजीरुरोजा जेर जिरेऽजोऽजरोऽरजाः । रेजारिजू रजोर्जार्जी रराजजुंरजर्जरः ॥ १९।१०२ । जहाँ तक महाकाव्य की इतिवृत्तात्मकता एवं महाकाव्यात्मक गरिमा का प्रश्न है, "शिशुपालवध' सफल नहीं कहा जा सकता। माघ का ध्यान इति
- निर्वाहकता की ओर नहीं है । इस दृष्टि से भारवि अवश्य ही माघ से अच्छे हैं। माघ की कथावस्तु महाकाव्य के लिए अत्यन्त अनुपयुक्त है। इन्होंने विविध प्रकार के वर्णनों के द्वारा अल्प कथा को विस्तृत महाकाव्य का रूप दिया है । महाकाध्य के लिए प्रासङ्गिक वर्णनों का सन्तुलन एवं मूल कथा के साथ उनका सम्बन्ध होना चाहिए। 'शिशुपालवध' की कथावस्तु में चतुर्थ से लेकर त्रयोदश सगं तक का वर्णन अप्रासंगिक-सा लगता है । मूलकथा प्रथम, द्वितीय, चतुर्दश एवं बीसवें सगं तक ही सीमित रहती है । कवि ने अप्रासंगिक गौण वर्णनों पर अधिक ध्यान देकर पुस्तक की कलेवरवृद्धि की है । निष्पक्ष आलोचक की निगाह से देखने पर, माघ में यह बहुत बड़ा दोष दिखाई देता है, और शिशुपालवध के वीररसपूर्ण इतिवृत्त में अप्रासंगिक शृङ्गार लीलाओं का पूरे ६ सर्ग में विस्तार से वर्णन ऐसा लगता है, जैसे किसी पुरानी सूती रजाई के बीचो-बीच बड़ी-सी रेशम की बढ़िया थिकली लगा दी है । माघ का शृङ्गार प्रबन्ध- प्रकृति का न होकर मुक्तक- प्रकृति का अधिक है, जिसे जबर्दस्ती प्रबन्ध काव्य में 'फिट इन' कर दिया गया है। इस थिकली ने रजाई की सुन्दरता तो बढ़ा दी है, पर स्वयं की सुन्दरता कम कर दी है । माघ निश्चित रूप से एक सफल मुक्तक कवि ( अमरुक की तरह ) हो सकते थे । भारवि के इतिवृत्त में अप्सराओं की वनविहारादि शृङ्गार चेष्टाएँ फिर भी ठीक बैठ जाती हैं। पर राजसूय यज्ञ में सम्मिलित होने वाले यदुओं की केवल पड़ाव की रात ( रैवतक पर्वत पर का पड़ाव अधिक से अधिक दो-तीन दिन रहा होगा ) में की गई ऐसी विलासपूर्ण चेष्टाएँ काव्य की कथा में कहाँ तक खप सकती हैं। संस्कृत -कविदर्शन पृ० १७७-७८ ॥ प्रथम संस्करण ।
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शिशुपालवध का अंगीरस वीर है, और अन्य रस- विशेषतः शृङ्गार-अंगरस है । पर पानगोष्टी, जलविहार, रतिविलास आदि की बहुलता देख कर लगता है कि अंगरस ने अंगीरस को धरदबोचा है । फिर भी किसी भी रस की व्यब्जना में माघ की कुशल लेखनी उसका चित्र उपस्थित कर देती है । वीररस का उदाहरण लीजिएआयन्तीनासविरतरयं राजकानीकिनामित्थं सेन्यैः सममलघुभिः श्रीपते म्मिमभिः । मासोदोघे मुंहुरिव महद्वारिघेरापगानां दोलायुद्धं कृतगुरुत रध्वान मौद्धत्यभाजाम् ।। १८८० " एक दूसरे की भोर बड़ी तेजी से बढ़ती हुई, शत्रु राजाओं की उद्धत सेनाओं का