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मण्डन मिश्र ]
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[ मनोदूत
मण्डन मिश्र - मिथिला के प्रसिद्ध दार्शनिक तथा कुमारिल भट्ट के अनुयायी आ० मण्डन मिश्र का भारतीयदर्शन के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है । ये भट्टपरम्परा के [ मीमांसा दर्शन की एक शाखा विशेष जिसके प्रवर्तक कुमारिल भट्ट थे, ] आचार्य थे । इनका जन्म मिथिला में हुआ था और ये शंकराचार्य के समकालीन थे । शंकराचार्य से इनका शास्त्रार्थं इतिहास प्रसिद्ध है जिसकी मध्यस्थता इनकी पत्नी ने की थी [ दे० शंकराचार्य ]। इनकी पत्नी का नाम भारती था जो पति के समान ही महाविदुषी थीं। इनका समय ६२० ई० से ७१० के मध्य माना जाता है। कहा जाता हैं कि शंकर द्वारा मण्डन मिश्र के पराजित हो जाने पर भारती ने उनसे काम-शास्त्रविषयक प्रश्न किया था जिसका कि वे उत्तर नहीं दे सके और एतदर्थं उन्होंने ६ मास की अवधि मांगी थी । मण्डन मिश्र कर्मकाण्ड के असाधारण विद्वान् थे और उनके ग्रन्थों में इनका अखण्ड वैदुष्य प्रतिभासित होता है । इनके ग्रन्थ हैं — विधिविवेक, विभ्रमविवेक, भावनाविवेक, मीमांसानुक्रमणिका, स्फोटसिद्धि, ब्रह्मसिद्धि, नैष्कम्यं सिद्धि तथा तैत्तिरीय और बृहदारण्यक उपनिषद भाष्य पर वार्तिक । 'विधिविवेक' में विधिलिङ्ग का विवेचन है तथा 'विभ्रमविवेक' में पाँच प्रकार की ख्यातियों की व्याख्या की गयी | 'भावनाविवेक' में भावना के स्वरूप का विवेचन है जिस पर इनके शिष्य उम्बेक ( महाकवि भवभूति ) की टीका है । 'मीमांसानुक्रमणिका' प्रकरण ग्रन्थ है जिसमें ausafir का मीमांसा-विषयक ज्ञान प्रोद्भासित होता है । 'स्फोटसिद्धि' में वर्णवादियों के विचार का खण्डन कर मीमांसा दर्शन के प्राणभूत तत्व स्फोट-सिद्धान्त का निरूपण किया गया है । इनके पुत्र जयमिश्र भी मीमांसा दर्शन के प्रकाण्ड विद्वान् थे । इन्होंने उम्बेक रचित 'तात्पर्यटीका' की पूर्ति की थी ।
आधारग्रन्थ – १ – भारतीयदर्शन - आ० बलदेव उपाध्यय । २ – मीमांसादर्शनपं० मण्डन मिश्र |
मथुरानाथ - नवद्वीप ( बङ्गाल ) के प्रसिद्ध नव्य नैयायिक मथुरानाथ हैं । [ नव्य न्याय के लिए दे० न्यायदर्शन || इनका समय १६ वीं शताब्दी है । इन्होंने नव्यन्याय के तीन प्रसिद्ध ग्रन्थों - आलोक, चिन्तामणि एवं दीधिति - के ऊपर 'रहस्य' नामक टीका लिखी है । इनकी टीकाएँ दार्शनिक जगत् में मौलिक ग्रन्थ के रूप में मान्य हैं और इनमें मूल ग्रन्थों के गूढ़ार्थं का सम्यक् उद्घाटन किया गया है। आधारग्रन्थ-- भारतीयदर्शन-- --आ० बलदेव उपाध्याय । मनोदूत - इस सन्देश -काव्य के रचयिता तैलङ्ग रचनाकाल वि० सं० १८१४ है । इसकी रचना कवि ने के पिता का नाम श्रीरामकृष्ण एवं वितामह का का रहने वाला माना जाता है। 'मनोदूत' की इसमें २०२ शिखरिणी छन्द हैं और चीर-हरण के श्रीकृष्ण के पास सन्देश भेजने का वर्णन है । द्रोपदी अपने मन को श्रीकृष्ण के पास दूत बनाकर भेजती है । कवि ने प्रारम्भ में मन की अत्यधिक प्रशंसा की है । तत्पश्चात् द्वारकापुरी का रम्य वर्णन है । इसमें कृष्णभक्ति एवं भगवान् की अनन्त
ब्रजनाथ हैं। इस काव्य का बुन्द्रावन में की थी। कवि नाम भूधरभट्ट था। कवि पञ्चनद रचना का आधार 'मेघदूत' है ! समय असहाय द्रोपदी द्वारा भगवान्