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पतन्जलि ]
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[पतन्जलि
यिता को एक ही व्यक्ति कहा गया है। लैसेन एवं गावे ने भाष्यकार तथा योगसूत्रकार को एक ही माना है। परस्पर असम्बद्ध विषयों पर समान अधिकार के साथ प्रामाणिक ग्रन्थ लिखने के कारण भैक्समूलर ने तीनों लेखक को एक ही माना है। भारतीय परम्परा महाभाष्यकार पतन्जलि का 'चरकसंहिता' तथा योगदर्शन के साथ सम्बन्ध स्थापित करते हुए तीनों का कर्ता एक ही व्यक्ति को मानती है। पर कतिपय विद्वान् यह मानते हैं कि 'पातंजलशाखा' "निदानसूत्र' एवं योगदर्शन के लेखक एक ही पतंजलि थे और वे अति प्राचीन ऋषि हैं । पाणिनि ने भी उपकादि गण में ( २।४।६९ ) पतन्जलि पद रखा है, अतः महाभाष्यकार पतन्जलि इनसे भिन्न व्यक्ति सिद्ध होते हैं। महाभाष्यकार उपयुक्त तीनों ग्रन्थों के रचयिताओं से सर्वथा भिन्न हैं और अर्वाचीन भी।
पतन्जलि के जीवन के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं है। रामभद्र दीक्षितकृत 'पतजलिचरित' के अनुसार ये शेषावतार थे। पर कोई आवश्यक नहीं कि इस काव्य की सारी बातें सही हों। पतन्जलि गोनर्द के निवासी थे और उनकी माता का नाम गोणिका था।
पतजलि की रचनाएं-महाराज समुद्रगुप्तकृत 'कृष्णचरित' में पतन्जलि को १-'महानन्द' या 'महानन्दमय' काव्य का रचयिता कहा गया है
महानन्दमयं काव्यं योगदर्शनमद्भुतम् ।
योगव्याख्यानभूतं तद् रचितं चित्तदोषहृत् ॥ 'सदुक्तिकर्णामृत' में भाष्यकार के नाम से अधोलिखित श्लोक उद्धृत किया गया है
यद्यपि स्वच्छभावेन दर्शयत्यम्बुधिर्मणीन् ।
तथापि जानुदन्नोयमिति चेतसि मा कृथाः ।। महानन्द काव्य में काव्य के बहाने योग का वर्णन किया गया है।
२. साहित्यशास्त्र-शारदातनय रचित 'भावप्रकाशन' में किसी वासुकि आचार्यकृत साहित्यशास्त्रीय ग्रन्थ का उल्लेख है जिसमें भावों द्वारा रसोत्पत्ति का कथन किया गया है।
उत्पत्तिस्तु रसानां या पुरा वासुकिनोदिता । नानाद्रव्योषधैः पाकैव्यंजनं भाष्यते यथा । एवं भावा भावयन्ति रसानभिनयैः सह ।
इति वासुकिनाऽप्युक्तो भावेभ्यो रससम्भवः । पृ० ४७ इससे ज्ञात होता है कि पतन्जलि ने कोई काव्यशास्त्रीय ग्रन्थ लिखा होगा।
३. लोहशास्त्र-शिवदास कृत 'चक्रदत्त' ( वैद्यक ग्रन्थ ) की टीका में लोहशास्त्र नामक ग्रन्थ के रचयिता पतन्जलि बताए गए हैं।
४. सिद्धान्तसारावली-इसके भी रचयिता पतन्जलि कहे गए हैं।
५. कोश- अनेक कोश-ग्रन्थों की टीकाओं में वासुकि, शेष, फणिपति तथा भोगीन्द्र आदि नामों द्वारा रचित कोश-ग्रन्थ के उद्धरण प्राप्त होते हैं ।
६. महाभाष्य-व्याकरणग्रन्थ [ दे० महाभाष्य ]