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भाण]
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[भानुदत्त
[दे. महाभाष्य ७।२।४५ ] विद्वानों का कथन है कि भागुरि का व्याकरण 'अष्टाध्यायी' से भी विस्तृत था तथा 'शब्दशक्तिप्रकाशिका' के उद्धृत वचनों से ज्ञात होता है कि उसकी रचना श्लोक में हुई थी [शब्दशक्तिप्रकाशिका पृ० ४४४, काशी] । इनकी कृतियों के नाम हैं-'भागुरि व्याकरण', 'सामवेदीयशाखा', 'ब्राह्मण', 'अलंकार ग्रन्थ', 'त्रिकाण्डकोश', 'सांख्यभाष्य' तथा 'देवतग्रन्थ' । सोमेश्वर कवि ने 'साहित्यकल्पद्रुम' में भागुरि का मत प्रस्तुत किया है जो यथासंख्य अलंकार के प्रकरण में है। अभिनवगुप्तकृत 'ध्वन्यालोकलोचन' में भी भागुरि का रसविषयक विचा उद्धृत है [ तृतीय उद्योत पृ० ३८६ । भागुरि की प्रतिभा बहुमुखी थी और इन्होंने कई शास्त्रों की रचना की थी।
आधारग्रन्थ-१-संस्कृत व्याकरणशास्त्र का इतिहास भाग १-५० युधिष्ठिर मीमांसक । २-वैदिक वाङ्मय का इतिहास भाग-१५० भगवदत्त ।
भाण-रूपक का एक प्रकार जिसमें धूतं एवं विट का वर्णन होता है। इसमें एक अंक रहता है। संस्कृत में 'भाण' का अधिक महत्व है और इस पर अनेक प्रन्थ लिखे जा चुके हैं। 'चतुर्भाणी' के माम से केरल में रचित चार भाग प्रकाशित हो चुके हैं जिनके रचयिता वररुचि, ईश्वरदत्त, श्यामलिक एवं शूद्रक हैं [दे० चतुर्भाणी] । अन्य भाणों का विवरण इस प्रकार है-उभयाभिसारिका-इसके प्रणेता वररुचि माने जाते हैं जिनका समय ई० पू० तृतीय शतक है। इसकी भाषा-शैली सशक्त एवं प्रौढ़ है। पमप्राभृतक-इस भाण के रचयिता 'शूद्रक' हैं (दे० शूद्रक ] । इसके उद्धरण अनेक ग्रन्थों में प्राप्त होते हैं। हेमचन्द्र के 'काव्यानुसासन' (पृ० १८८ ) में भी इसका एक पद्य प्राप्त होता है। इसमें प्राचीन समय के कलाकार मूलदेव की कथा वर्णित है। धूतविटसंवाद-इसके लेखक ईश्वरदत्त हैं। इसमें विट एवं धुत के संवाद कामिनियों एवं वेश्याओं के विषय में प्रस्तुत किये गये हैं। इसके उढरण भोजकृत 'शृङ्गारप्रकाश' एवं हेमचन्द्र के 'काव्यानुशासन' में प्राप्त होते हैं। पादताडितक-इसके रचयिता श्यामिलक हैं। इसका एक पद्य क्षेमेन्द्रकृत 'औचित्यविचारचर्चा' में प्राप्त होता है। अभिनवगुप्त ने भी श्यामिलक के नाम का निर्देश किया है, अतः इनका समय ८ वीं एवं नवीं शताब्दी के बीच निश्चित होता है। संस्कृत के अन्य भागों में बामनभट्ट रचित ( १६ वीं शताब्दी के बाद ) 'शृङ्गारभूषण', रामभद्रदीक्षित कृत 'शृङ्गारतिलक,' वरदाचार्य कृत 'वसन्ततिलक', शंकर कवि विरचित 'शारदातिलक', नल्लाकवि विरचित 'शृङ्गारसर्वस्व' ( सत्रहवीं सदी) तथा युवराज रचित 'रससदन भाण' प्रसिद्ध हैं।
आधारग्रन्थ-संस्कृत साहित्य का इतिहास-आ० बलदेव उपाध्याय ।
भानुदत्त-अलंकारशास्त्र के आचार्य । इनका समय १३ वीं शताब्दी का अन्तिम चरण एवं चौदहवीं शताब्दी का आरम्भिक काल है। ये मिथिला निवासी थे। 'इन्होंने अपने ग्रन्थ 'रसमंजरी' में अपने को 'विदेहभूः' लिखा है जिससे इनका मैथिल होना सिद्ध होता है। इनके पिता का नाम गणेश्वर था। तातो यस्य गणेश्वरः कविकुलालंकारचूडामणिः । देशो यस्य विदेहभूः सुरसरित कडोलकीर्मीरिता ॥ रस