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चक्रदत्त]
[चण्डेश्वर
हुआ है। अनुवादक एवं सम्पादक हैं-डॉ० स्व. वासुदेव शरण अग्रवाल एवं डॉ. मोतीचन्द्र]
चक्रदत्त-आयुर्वेदशास्त्र का प्रसिद्ध ग्रन्थ । इस ग्रन्थ के रचयिता का नाम चक्रपाणि दत्त है। इनका समय ग्यारहवीं शताब्दी है । लेखक के पिता का नाम नारायण था जो गौड़ाधिपति नयपाल की पाकशाला के अधिकारी थे। चक्रपाणि सर्वतोमुखी प्रतिभा के व्यक्ति थे। इन्होंने वैद्यक ग्रन्थों के अतिरिक्त शिशुपालवध, कादम्बरी, दशकुमारचरित एवं न्यायसूत्र की भी टीका लिखी थी। चिकित्साशास्त्राविषयक इनके ग्रन्थों के नाम हैं—वैद्यकोष, आयुर्वेददीपिका (नरक की टीका), भानुमति (सुश्रुत की टीका ) द्रव्यगुणसंग्रह, सारसंग्रह, व्यंग्यदरिद्रशुभंकरणम् तथा चक्रदत्त (चिकित्सासंग्रह ) । चक्रदत्त को लेखक ने "चिकित्सासंग्रह' कहा है पर वह चक्रदत्त के ही नाम से विख्यात है। इस ग्रन्थ की रचना वृन्द कृत 'सिद्धयोग' के आधार पर हुई है। इसमें वृन्द की अपेक्षा योगों की संख्या अधिक प्राप्त होती है तथा भस्मों और धातुओं का प्रयोग भी अधिक है। इस पर श्री निश्चल ने रत्नप्रभा तथा शिवदास सेन ने तत्त्वचन्द्रिका नामक टीकायें लिखी हैं। इसकी हिन्दी टीका श्रीजगदीश्वर प्रसाद त्रिपाठी ने की है।
आधार ग्रन्थ-आयुर्वेद का बृहत् इतिहास-श्री अत्रिदेव विद्यालंकार ।
चण्डेश्वर-संस्कृत के राजधर्मनिबन्धकार । ये मिथिला नरेश हरिसिंहदेव के मन्त्री थे। इनके पिता का नाम वीरेश्वर एवं पितामह का नाम देवादित्य था । चण्डेश्वर का समय चौदहवीं शताब्दी का प्रथम चरण है। इन्होंने 'निबन्धरत्नाकर' नामक विशाल ग्रन्थ की रचना की है। यह ग्रन्थ सात भागों में विभक्त है जिसके (भागों के ) नाम हैं-कृत्यरत्नाकर, दानरत्नाकर, व्यवहाररत्नाकर, शुद्धिरत्नाकर, पूजारत्नाकर, विवादरत्नाकर एवं गृहस्थरत्नाकर । इनकी अन्य कृतियां हैं-राजनीतिरत्नाकर, शिववाक्यावली एवं देववाक्यावली। राजनीतिरत्नाकर सोलह तरंगों में विभक्त है जिसके प्रतिपाच राजनीति-विषयक विविध विषय हैं। इसके सोलह तरंगों के विषयों की सूची इस प्रकार है-राज्ञोनिरूपण, अमात्यनिरूपण, पुरोहितनिरूपण, प्राविवाक निरूपण, सभ्यनिरूपण, दुर्गनिरूपण, मन्त्रिनिरूपण, कोशनिरूपण, बलनिरूपण, सेनानीनिरूपण, इतादिनिरूपण, राजकृत्यनिरूपण, दण्डनिरूपण, राजकृत्यराज्यदानम्, पुरोहितादिकृत राज्य दानम् तथा अभिषेकनिरूपण। चण्डेश्वर में राजनीतिरत्नाकर के विषय का चयन करते समय धर्मशास्त्रों, रामायण, महाभारत तथानीतिग्रन्थों के वचनों को भी उद्धृत किया है। राज्य का स्वरूप, राज्य की उत्पत्ति, राजा की आवश्यकता तथा उसकी योग्यता, राजा के भेद, उत्तराधिकार विधि, अमात्य की आवश्यकता, मन्त्रणा, पुरोहित, सभा, दुर्ग, कोश, शक्ति, बल, बल-भेद, सेना के पदाधिकारी, मित्र, अनुजीवी, इत, चर, प्रतिहार, षाड्गुण्य मन्त्र आदि विषयों पर चण्डेश्वर ने विद्वतापूर्ण विचार व्यक्त किया है । इनके कुछ वचन देखें
प्रजारक्षको राजेत्यर्थः । राजशब्दोऽपि नात्र क्षत्रियजातिपरः । अमात्यं विना राज्यकार्य न निर्वहति बहुभिः सह न मंत्रयेत् ।