________________
आनन्द वृन्दावन चम्पू]
( ४७ )
[ आदि पुराण
वन्दे कृष्णपदारविन्दयुगलं यस्मिन् कुरंगीदृशां । वक्षोजप्रणयीकृते विलसति स्निग्धोऽङ्गरागः स्वतः ।। काश्मीरं तलशोणिमोपरितनः कस्तूरिका नीलिमा ।
श्रीखण्डं नखचन्द्रकांतलहरी निर्व्याजमातन्वते ॥ १११ आधार ग्रन्थ-चम्पूकाव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ० छविनाथ त्रिपाठी।
आचार्य विजय चम्पू-इस चम्पू काव्य के प्रणेता कवि तार्किक सिंह वेदान्ताचार्य हैं । इनके पिता का नाम वेंकटाचार्य था। ये कौशिक गोत्रोत्पन्न थे। यह चम्पूकाव्य खण्डित रूप में ही प्राप्त है जिसमें छह स्तबक हैं। इसमें प्रसिद्ध दार्शनिक आचार्य वेदान्तदेशिक का जीवनवृत्त वर्णित है तथा अद्वैत वेदान्ती कृष्णमिश्र प्रभृति के साथ उनके शास्त्रार्थ का उल्लेख किया गया है। वेदान्तदेशिक चौदहवीं शताब्दी के मध्य भाग में हुए थे, अतः इसका रचनाकाल उनके बाद का ही है। कवि ने प्रारम्भ में वेदान्तचार्यों की वन्दना की है। इसमें दर्शन एवं काव्य का सम्यक् स्फुरण दिखाई पड़ता है। आचार्य विजय चम्पू की भाषाशैली बाणभट्ट एवं दण्डी से प्रभावित है। यह ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है और इसका विवरण डिस्क्रिप्टिव कैटलॉग, मद्रास, १२३६५ में प्राप्त होता है। कवि वेदान्तदेशिक की कथा को प्राचीनोक्ति कहता है
कल्पद्रुः कविवादिहंसविदुषः प्रज्ञासुधावारिधे
__ र्जातः कश्चन कल्पितार्थ विततिश्चम्पूप्रबन्धात्मना । प्राचीनोक्तिवतंसदेशिककथामाध्वी भजन् षष्टक
स्तस्यासौ स्तबकः करोतु सुमनः कर्णावतंसश्रियम् ॥ आधार ग्रन्थ-चम्पूकाव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक विवरण-डॉ छविनाथ त्रिपाठी ।
आनन्दरंग विजय चम्पू-इस चम्पू-काव्य के प्रणेता का नाम श्रीनिवास कवि है। उनके पिता का नाम गङ्गाधर तथा माता का नाम पार्वती था। ये श्रीवत्सगोत्रो. त्पन्न ब्राह्मण थे। इस चम्पू की रचना आठ स्तबकों में हुई है। इसमें कवि ने प्रसिद्ध फेच शासक डुप्ले के प्रमुख सेवक तथा पाण्डिचेरी-निवासी आनन्दरंग के जीवनवृत्त का वर्णन किया है । ऐतिहासिक दृष्टि से इस काव्य का महत्त्व असंदिग्ध है। विजयनगर तथा चन्द्रगिरि के राजवंशों का वर्णन इसकी बहुत बड़ी विशेषता है। इसका निर्माणकाल १८ वीं शताब्दी है। वरकविकुलमौलिस्फारमाणिक्य कान्तिधुमणिकिरणपुजप्रोल्लसत्पादपद्मः। निखिलनिगममूत्तिः स्फूतिरीशस्य साक्षाज्जयति जगति तातो यस्य गंगाधरायः ॥ इस ग्रन्थ का प्रकाशन मद्रास से हो चुका है। सम्पादक हैं डॉ० वी० राघवन् ।
आधार ग्रन्थ-चम्पूकाव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ० छविनाथ त्रिपाठी।
आदि पुराण-चौबीस जैन पुराणों में सर्वाधिक प्रसिद्ध पुराण आदि पुराण है। इसमें प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की कथाएं वर्णित हैं। इस पुराण में ४७ पर्व हैं तथा