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दिव्यचाप विजय चम्पू ]
( २१९ )
[ दूतघटोत्कच
'महाआर्यं सिद्धान्त' में अन्य विषयों के अतिरिक्त पाटीगणित, क्षेत्र व्यवहार तथा बीजगणित का भी समावेश है । इनके जीवन के सम्बन्ध में कुछ भी ज्ञात नहीं होता । आधारग्रन्थ--- १. भारतीय ज्योतिष - डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री २. भारतीय ज्योतिष का इतिहास - डॉ० गोरखप्रसाद ३. भारतीय ज्योतिष - शंकर बालकृष्ण दीक्षित ( हिन्दी अनुवाद ) ।
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दिव्यचाप विजय चम्पू – इस चम्पू काव्य के प्रणेता का नाम चक्रवर्ती वेंकटाचार्य है । इनके पिता का नाम शेलवार्य एवं पितामह का नाम वेंकटाचार्य था । इस चम्पू में छह स्तबक हैं जिसमें सुप्रसिद्ध पौराणिक कथा 'दर्भशयनम्' का वर्णन है । कथा का प्रारम्भ पौराणिक शैली में किया गया है तथा प्रसंगतः राम कथा का भी वर्णन है । कवि ने कथा के माध्यम से 'तिरुपुह्वाणि' की पवित्रता एवं धार्मिक महत्ता का प्रतिपादन किया है । यह काव्य अप्रकाशित है और इसका विवरण डी० सी० मद्रास १२३०२ में प्राप्त होता है । काव्य रचना का कारण कवि के शब्दों में इस प्रकार है
कवयः कति वानसन्ति तेषां कृतयो वातुलचातुरी गुणाः । रचयन्ति तथापि काव्यमन्ये रसयन्त्येव तदग्रपंडिताः ॥ आधारग्रन्थ – चम्पूकाव्य का आलोचनात्मक एवं छविनाथ त्रिपाठी ।
ऐतिहासिक अध्ययन - डॉ०
दूतघटोत्कच - इस नाटक के रचयिता महाकवि भास हैं। इसमें 'महाभारत' के पात्रों को आधार बना कर नवीन कथा कही गयी है । इसमें हिडिम्बा-पुत्र घटोत्कच द्वारा जयद्रथ के पास जाकर दौत्यकर्म करने का वर्णन है। अर्जुन द्वारा जयद्रथ के वध की प्रतिज्ञा करने पर, श्रीकृष्ण के आदेश से, घटोत्कच धृतराष्ट्र के पास जाता है तथा युद्ध के भयंकर दुष्परिणाम की ओर उनका ध्यान लगाता है । धृतराष्ट्र दुर्योधन को समझाते हैं, पर शकुनि की सलाह से वह उनकी एक भी नहीं सुनता । दुर्योधन
एवं घटोत्कच में वाद-विवाद होने लगता है और घटोत्कच दुर्योधन को युद्ध के लिए
ललकारता है, पर धृतराष्ट्र उसे शान्त कर देते हैं । अन्त में घटोत्कच अर्जुन द्वारा अभिमन्यु का बदला लेने की बात कह कर धमकी देते हुए चला जाता है। इसमें भरतवाक्य नहीं है और इसका कथानक काल्पनिक है । घटोत्कच के दूत बन कर जाने के कारण ही इसका नाम 'दूतघटोत्कच' है । इसका नायक घटोत्कच है और वह वीररस के प्रतीक के रूप में चित्रित है । दह अपनी अवमानना सहन नहीं करता और मुष्टिप्रहार करने को प्रस्तुत हो जाता है । वीरत्व के साथ-ही-साथ उसमें शालीनता एवं शिष्टता भी समान रूप से विद्यमान है । दुर्योधन, कणं एवं शकुनि का चरित परम्परागत है और वे अभिमानी एवं क्रूर व्यक्ति के रूप में चित्रित हैं । इस नाटक में बीर एवं करुण दोनों रसों का मिश्रण है । अभिमन्यु की मृत्यु के कारण करुण रस का वातावरण है तो घटोत्कच एवं दुर्योधनादि के विवाद में वीर रस की स्थिति है ।