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ऋग्वेद ]
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प्रकट किया है।
के एक मन्त्र में कहा गया है कि जो मनुष्य अपने लिए उपयोग करता है, वह पाप को खाता है तात्पर्य को समझने में विद्वानों ने गहरा मतभेद विद्वान् इन्हें किसी दानी राजा के धन से आप्यायित ऋषियों के किन्तु भारतीय परम्परा वेदों को अपीरुषेय मानती चली आ रही है, इसलिए आधुनिक विद्वानों के कथन को वह युक्तियुक्त नहीं मानती । उनके अनुसार दानस्तुतियों के आधार पर आगे चल कर आख्यानों की कल्पना कर ली गयी है । प्राचीन मन्त्र व्याख्याओं का अध्ययन करते हुए अनेक भारतीय विद्वान् इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि ये दानस्तुतियाँ अनेक स्थानों पर वास्तविक दानस्तुति न होकर उसका आभास - मात्र हैं । निरुक्तकार एवं दुर्गाचार्य प्रभृति टीकाकारों ने इन्हें दानस्तुति माना ही नहीं है [ दे० युधिष्ठिर मीमांसक - ऋग्वेद की कतिपय दानस्तुतियों पर विचार पृ० ३-७ ]
संवादसूक्त — ऋग्वेद के कतिपय संवादसूक्तों में नाटक एवं काव्य के तत्त्व उपलब्ध होते हैं । कथोपकथन की प्रधानता के कारण इन्हें संवादसूक्त कहा जाता है । इन संवादों में भारतीय नाटक एवं प्रबन्धकाव्यों के सूत्र मिलते हैं । ऐसे सूक्तों की संख्या २० के लगभग है जिनमें तीन अत्यन्त प्रसिद्ध हैं - पुरूरवा - उर्वशी - संवाद ( १० ८५), यम-यमी - संवाद ( १०।१० ) तथा सरमापणि-संवाद ( १०।१३० ) । पुरूरवा - उर्वशी - संवाद में रोमांचक प्रेम का निदर्शन है तो यम-यमी -संवाद में यमी द्वारा अनेक प्रकार के प्रलोभन देने पर भी यम का उससे अनैसर्गिक सम्बन्ध स्थापित न करने का वर्णन है । दोनों ही संवादों का साहित्यिक महत्त्व अत्यधिक है तथा ये हृदयावर्जंक एवं कलात्मक हैं । तृतीय संवाद में पणि लोगों द्वारा आयं लोगों की गाय चुरा कर अंधेरी गुफा में डाल देने पर इन्द्र का अपनी शूनी सरमा को उनके पास भेजने का वर्णन है, जो आर्यों के शौर्य एवं पौरुष का वर्णन कर उन्हें धमकाती है । इसमें तत्कालीन समाज की एक झलक दिखलाई पड़ती है ।
[ ऋग्वेद
धन का दान न कर स्वयं अपने
इन दानस्तुतियों
के स्वरूप एवं आधुनिक युग के उद्गार मानते हैं,
ऋग्वेद में अनेक लौकिक सूक्त हैं जिनमें लौकिक या ऐहिक विषयों तथा यन्त्र-मन्त्र की चर्चा है । ऐसे सूक्त दशम मण्डल में हैं और इनकी संख्या तीस से अधिक नहीं है । दो छोटे-छोटे ऐसे भी सूक्त हैं जिनमें शकुनशास्त्र का वर्णन है। एक सूक्त राजयक्ष्मा से विमुक्त होने के लिए उपदिष्ट है । लगभग २० ऐसे सूक्त हैं, जिनका सम्बन्ध सामाजिक रीतियों, दाताओं की उदारता, नैतिक प्रश्न तथा जीवन की कतिपय समस्याओं से है । दशम मण्डल का ८५ वां सूक्त विवाह सूक्त है, जिसमें विवाह सम्बन्धी कुछ विषयों का वर्णन है तथा ५ सूक्त ऐसे हैं जो अन्त्येष्टि संस्कार से सम्बद्ध हैं । ऐहिक सूक्तों में ही चार सुक्त नीतिपरक हैं, जिन्हें हितोपदेशसूक्त कहा जाता है ।
दार्शनिकसूक्त - ऋग्वेद के दार्शनिक सूक्तों के अन्तर्गत नासदीयसूक्त ( १०।१२९ ) पुरुषसूक्त (१०/९०), हिरण्यगर्भसूक्त (१०।१२१ ) तथा वाक्सूक्त ( १०।१४५ ) आते हैं। इनका सम्बन्ध उपनिषदों के दार्शनिक विवेचन से है । नासदीय सूक्त में भारतीय रहस्यवाद का प्रथम आभास प्राप्त होता है तथा दार्शनिक चिंतन का अलौकिक रूप दृष्टिगत होता है। इसमें पुरुष के विश्वव्यापी रूप का वर्णन है ।